सुधा राजे का लेख - बचाईये बचपन लड़को का भी ।

बचाईये बचपन लड़को का भी
••••••••••••••••••••••••••••••••(सुधा राजे का लेख )
लड़कियों के बारे में बतियाते लोग प्राय:
लड़कों पर चुप लगा जाते हैं । मलिक राजकुमार के उपन्यास "बाईपास "में जो
समस्या घटनाक्रम में आयी है वह कितने ही पुरुषों के बाल्यकाल का भयानक
सत्य हो सकती है ।
एक मातृविहीन बच्चा जो हमारी संडे क्लासेस इन विलेज का हिस्सा रहा ,
उसका सच सुनकर झुरझुरी छूट जाती है ।
बरसों हो गये हर जगह से दबी सी कहीं खबर मिल जाती है परंतु लोग कान आंख
बंद करते रहते हैं ।
"""""बच्चाबाज़ी"""""
कहकर जिसे अघोषित स्वीकृति कुछ खास तरह के समूह समुदायों में मिली हुयी
है । थर्ड जेंडर और छोटे बच्चे जेल के कैदी और बाॅयज बुलीईंग के शिकार
लड़के ,
कभी इस समस्या पर सजगता नहीं दिखती ।
क्योंकि इससे
""पुरुष पवित्रता अपवित्रता का विचार नहीं जुड़ा है ""
घर के बड़ों और मुहल्ले के बड़ों के बीच बार बार बुलाया जाता ,और तोहफे
पाता आपका बच्चा या बच्चा रिश्तेदार कहीं इस तरह के ,,,,नर यौन शोषण का
शिकार तो नहीं हो रहा ।
बलात्कार की तरह इसपर भी कानून तो बना है ,परंतु लड़के की मर्यादा या
इज्जत आबरू लुटने जैसा विचार इससे जुड़ा न होने के कारण ,प्राय:अपराधी बच
जाते हैं मारपीट या डांट फटकार के बाद ।
म्यूचुअल रिलेशन के आधार पर ऐसे तमाम जोड़े आपकी आँखों के आसपास हो सकते
हैं किंतु सवाल उनका नहीं ,अबोध लड़कों और किशोरों का है जो घर के या पास
पड़ौस या स्कूल के छिपे हिंस्र पशुओं का शिकार बनकर भी चुप रह जाते हैं
और अपराधी को बल मिलता जाता है । ऐसे अनेक युवा प्रौढ़ लोग हैं जो बचपन
में ऐसे पशुवत हिंस्रनरपशुओं के यौनशोषण का शिकार रहे परंतु होश आने बड़े
और सक्षम होने पर भी न तो दंड दिला सकते न ही सामाजिक निंदा करके ऐसे
नरपशुओं का नकाब उतार सके । लड़कियों की सुरक्षा के साथ लड़कों की
सुरक्षा भी आज बहुत बड़ी आवश्यकता है ।©®सुधा राजे

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