सुधा राजे का लेख - ​सबसे पहले देश।

​​
कड़वा आँखें खोल देने वाला सच ,
यह हालत कश्मीर में भी वहां सब लोग हिंदुस्तानी कहकर दुत्कारते हैं ,
,
यह हालत महाराष्ट्र में है वे भइये कहकर दुत्कारते हैं ,
यही हालत ,
पंजाब में है ,
वे भी गैर सिख को दुत्कारते हैं पुरबिया कहकर ,
यही हालत ,
पश्चिमी यूपी में है ""बिहारी बंगाली नेपाली गढ़वाली ""को
वे लोग भी ,
दुत्कारते हैं पुरबिया कहकर ,
,
मारते पीटते और बंधुआ तक बना कर रखते रहे हैं ।
,

उत्तराखंड आपदा ने पहाड़ियों के सब सरलता त्याग बलिदान के किस्से पिलपिले कर दिये वहां भी बहुत से लोग मैदानियों से नफरत करते हैं ।
,
सवाल है ,
​​
हिंदुस्तानी कौन हैं ??
??
यह समझाया ,समझा क्यों नहीं गया कि सब भारतवासी ,
कच्छ से काराकोरम तक नाथूला से अंडमान तक लक्ष्यद्वीप से डोकलाम चंबूघाटी तक ,
,
सब भारतीय हैं ,
,
,
यह संदेश क्यों नहीं पेबस्त हो पाया सीनों में ????
~
~
मध्यप्रदेश में सिंधी आत्मसात हो तो गये परंतु कुछ पृथक से ,
,
इलाहबाद में बंगाली त्यौहार तो हुये कुछ अलग से ,
,
दिल्ली में सिख पनप तो गये बस कुछ अलग से ,
,
महाराष्ट्र में छठ मनने तो लगा पर कुछ अलग से ,
,
,
पटना में रहता है उपेक्षित गुजराती मारवाड़ी और ,
,
एक प्रांत की बेटी दूसरे प्रांत ब्याही जाकर जीवन भर पनप ही नहीं पाती ,
,
,क्यों फेल हो गये सब दिमागदार लोग एक एक जन जन को यह समझा पाने में तुम सब ही तो हिंदुस्तान हो !!!!!!!!,
,
,
बस यही कुसूर है मुख्यधारा वाले लोगों का कि कोनों तक गये क्यों नहीं खबर प्रचार जागरण अपना देश के उजाले ,
,
,
यह अलगाव तो हर बस में सीट पर बैठती गैर प्रांतीय गैर मजहबी गैर जातीय सवारी पर हावी है ।
,
परंतु अरुणाचल तीनबीघा और कच्छ से नाथूला सियाचिन तक ""भारत भारतीय !!!!!!!!कहना कब आयेगा हर नागरिक को ????
,
,
हमने देखा "अनेक बार देखा ""
दिल्ली से दूर के सब प्रांत जिनकी सीमायें पाकिस्तान बांगलादेश चीन भूटान म्यनमार से सटी है """"""भारत "को एक पृथक चीज मानते हैं 
:
:ये किस की कमी रही कि "हम हिंदुस्तानी "एक अनपढ़ ग्रामीण से बुद्धिजीवी तक नहीं आत्मसात कर पाया ??
ये जु़ड़ न पाने की बीमारी कितनी बढ़ गयी थी किसी युग में कि जब बिहार पर गोलियां चलती थीं तो दख्खन में कोई नाराज नहीं होता था ,परंतु जो जो जानता है वह वह अधिक जिम्मेदार है मेरे भाई कि टूटन की वजह है क्या ,,,,,न जाति न मजहब ,,,,हमारा अंतस का निजाभिमान कि हिंदुस्तान बाद में पहले मेरी जाति ,मेरा मजहब मेरी इलाका ,

अपने अपने इलाके की गुंडई करने वाले जब दूसरे के इलाके में घुसते हैं तब पता चलता है कि हिंदुस्तानी होना क्या है
एक शायर धमकी देता है कि किरायेदार हो मकान मालिक नहीं तुम्हारे बाप का भारत नहीं ,
सोच ये पढ़े लिखों की है ,
निरक्षर का तो गांव ही हिंदुस्तान है
कशमीर की लड़कियों को "इंडिया " वालों को कोसते सुनकर कान में लावा सा गिरता है ,
बंधु यही रोना है ,
विभाजन की भयानक त्रासदी से गुजरे सिख ""पृथक खालिस्तान की गोद में जा बैठे थे ,
एक समय था कि हम सब सिख देखते ही ""थर्रा जाते थे "
फिर 
आज नक्सलाईट को देखकर ,
,
कश्मीरी को देखकर कुछ संदेह पनपने लगता है ,
आईये 
मिलकर 
कुछ हल खोजें कि ,
हर नागरिक दूसरे से कम से कम यह ताना तो न दे सके कि ""इंडिया वालो ""
यह गहन शोध का विषय है ,
कि 
क्यों एक क्षेत्र का व्यक्ति ,
शेष भारत के किसी नागरिक को "हिकारत से देखने लगता है ।
सामान्यीकरण करना पलायनवाद होगा ,समस्या की जड़ें हैं कहीं इतिहास के कड़वे अनुभवों में दफन । आज अमेरिकी लड़के किसी दाड़ी मूछ वाले को देखते ही उसपर हमला कर बैठते हैं ,यह ग्राऊण्ड जीरो उनकी सोच में बसा है ।
हम 
काला बुर्का टोपी दाड़ी ऊँचा पाजामा देखकर कुछ कपड़े ठीक करके परदा सा करने लगते हैं ।,
यह सोच कहीं है कि इस कम्युनिटी में एक स्त्री की स्वतंत्रता नाग़वार है ,
बिहारी जब महाराष्ट्र में होते हैं तो कुछ स्थानीय श्रमिकों के श्रम रोजगार छिनते हैं और वे नहीं चाहते कि उनसे कम रेट पर कोई काम करे भाव गिरे ,परंतु जाके पांव फटी बिंवाई सो ही जाने दर्द दवाई ,बिहारी मजदूर कहीं भी सबसे सस्ते दर भाव पर काम करने लगता है ।
गिरमिटिया कहकर मलेशिया मारीशस इंडोनेशिया और साऊथ अफ्रीका में भी बहुत विरोध बिहारी मजदूरों का हुआ परंतु वे बसते गये
कोई 
भी भारतीय किसी एक जाति या क्षेत्र का नहीं हर क्षेत्र से उठे यहां तक विदेश में बसे भारतीय और गैर भारतीय जो भारत की आजादी के समर्थक थे उनका ऋणी है ।
हां हर भारतीय
,
बदलना तो सोच को ही पड़ेगा ,
समस्या है कैसे ??
यूपी वाला गुजराती को गरियाने लगता है ,
जब गुजरात में फँसता है तब हिंदुस्तान याद आता है ।


(सादर कृपया उत्तर दें )
सविनय 
सुधा राजे

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