सुधा राजे की "चिट्ठी"
हम जब एफ पर नये नये आये तो रोज दो चार को ब्लॉक करना पङता था 'कई बार
फ्रैंण्ड रिक्वेस्ट ब्लॉक हो जाती तो कई बार 'कोई न कोई मन दुखी करने
वाले संदेश भेज देता
कभी कभी "फेमिनिस्ट ''होने की टिप्पणी के साथ धमकियाँ मिलती
अकसर जैसे ही कोई फोटो अपलोड करते चोरी कॉपी पेस्ट और रचनायें तो अकसर ही
कभी कभी पूरी ग़जल गीत या लेख तक चोरी करके लोग ब्लॉग या प्रिंट तक में
अपने नाम से छाप ले गये """"""।
कई मंच पर बहुत सक्रिय कवियों ने व्यंग्य किये आजकल नई नई कवियत्रियाँ
पैदा होने लगी """
जबकि वास्तव में बाद में उनको पता चला कि सीनियर कौन है ।
फिर कुछ लोग हमें कविता सिखाने चल पङे कईयों ने तो सलाह दे डाली कि ""आप
लिखती ही क्यों है जब लिखना नहीं आता "
कई बार अश्लील मैसेज से भी दो चार होना पङा ।
सीखते गये
ठोकरें खा खा कर """
क्योंकि हमारे लिये एफ बी एक टाईम पास नहीं एक मंच रहा है '''जहाँ हर द्न
हम कई हजार लोगों को पढ़ते सुनते और "अपनी कहते हैं ''
अब तक अनेक बदलाव हमारी छोटी छोटी कोशिशों ने किये है ''
हमारी आवाज दूर दूर तक सुनी गयी और समझी भी गयी ।
अनेक शिकायतों पर अमल भी हुये
सोच भी कई लोगो की बदली
हमारे अनेक मित्र जिनकी वॉल पर किंचिंत "सीमाबाहर की बातें चित्र हुआ
करते थे ""आज वे सकारात्मक कह सुन रहे हैं ।
और एक बङा परिवार मेरे साथ है 'पाँच हजार मित्र बनाने में हमने कोई तेजी नहीं की '
आज एक एक कीमती मोती दमक रहा है ।
फिर भी हम कुछ दायरों से बाहर न लिखते हैं न पढ़ते है और न बर्दाश्त करते हैं ।
जिसकी वजह से 'किसी भी को भी अनफ्रैण्ड करने में 'पल नहीं लगाते अगर
'दायरा लांघने की कोशिश की ।
हमारी अनेक सहेलियों ने भी यही सब सहा होगा ।
चाहे वे पत्रकार हों या लेखिका या टीचर या गृहिणी ""'''
कितना संघर्ष करके टिकती हैं स्त्रियाँ 'यहाँ '
फिर परिजनों से भी सुनना पङ सकता है 'कठोर 'इसलिये सब कामकाज निबटाकर
'रात में ही अकसर महिलायें एफ बी या ट्विटर पर होती है 'या फिर सूर्योदय
से पहले ।
★इसपर भी हरीबत्ती देखी और चल पङे 'अलफतुए भैया मेसेज पर मेसेज '
क्यों कोई स्त्री आधी रात को सोशल मीडियापर ??
अब इन सङीगली सोच वालों ने कभी बौद्धिक श्रमजीवियों का जीवन देखा होता तो
समझते कि "लेखक रात को देर तक नहीं जागेगा तो क्या करेगा? लेकिन वह अभी
कुछ लिख रहा मूड बना रहा या समाचार फीड ले रहा होता है और केवल "स्त्री
होने के कारण "उसके देर रात ऑन लाईन दिखने पर अललटप्पुओं के दिमागी
चिपकुटपन की बत्तियाँ गुल्ल हो जातीं है!!!
ओये लङकी?
वो भी रात को,,
जो समाज घऱ से बाहर की बात पढ़ते कहते सुनते लिखते घऱ बैठी लङकी को नहीं झेल पाता
वह समूची लङकी को कैसे घर से बाहर रात को बरदाश्त कर सकता है
उस तरह के घोंचू सोचते कब हैं कि जिनके परिजन विदेश में रहते हैं वहाँ
सुबह की बात हो रही हो सकती है 'न्यूज व्यूज लेखन ईमेल प्रिंट चल रहा हो
सकता है ।
एफ बी चिलफट्टूशों की तरह महिला केवल फ्रैंड नहीं "परिवार भी जोङ कर रखती है ।
जिनके मायके दूर है पति परदेश में है उनसे कम खर्च में लंबी बात और फोटो
देखना शेयर करना सस्ता सरल कविसम्मेलन और अखबार भी तो यहीं है,,,
लगातार
टैगियों से परेशान
मैसेज से डिस्टर्ब
अभद्रजनों से ऊबी
और एंटीवुमैनिज्मवादियों से बहस बचाती
स्त्री की सोशल मीडिया पर दमदार उपस्थिति
क्या ये कम बङी जीत है
©®सुधा राजे
#fb thanks
--
फ्रैंण्ड रिक्वेस्ट ब्लॉक हो जाती तो कई बार 'कोई न कोई मन दुखी करने
वाले संदेश भेज देता
कभी कभी "फेमिनिस्ट ''होने की टिप्पणी के साथ धमकियाँ मिलती
अकसर जैसे ही कोई फोटो अपलोड करते चोरी कॉपी पेस्ट और रचनायें तो अकसर ही
कभी कभी पूरी ग़जल गीत या लेख तक चोरी करके लोग ब्लॉग या प्रिंट तक में
अपने नाम से छाप ले गये """"""।
कई मंच पर बहुत सक्रिय कवियों ने व्यंग्य किये आजकल नई नई कवियत्रियाँ
पैदा होने लगी """
जबकि वास्तव में बाद में उनको पता चला कि सीनियर कौन है ।
फिर कुछ लोग हमें कविता सिखाने चल पङे कईयों ने तो सलाह दे डाली कि ""आप
लिखती ही क्यों है जब लिखना नहीं आता "
कई बार अश्लील मैसेज से भी दो चार होना पङा ।
सीखते गये
ठोकरें खा खा कर """
क्योंकि हमारे लिये एफ बी एक टाईम पास नहीं एक मंच रहा है '''जहाँ हर द्न
हम कई हजार लोगों को पढ़ते सुनते और "अपनी कहते हैं ''
अब तक अनेक बदलाव हमारी छोटी छोटी कोशिशों ने किये है ''
हमारी आवाज दूर दूर तक सुनी गयी और समझी भी गयी ।
अनेक शिकायतों पर अमल भी हुये
सोच भी कई लोगो की बदली
हमारे अनेक मित्र जिनकी वॉल पर किंचिंत "सीमाबाहर की बातें चित्र हुआ
करते थे ""आज वे सकारात्मक कह सुन रहे हैं ।
और एक बङा परिवार मेरे साथ है 'पाँच हजार मित्र बनाने में हमने कोई तेजी नहीं की '
आज एक एक कीमती मोती दमक रहा है ।
फिर भी हम कुछ दायरों से बाहर न लिखते हैं न पढ़ते है और न बर्दाश्त करते हैं ।
जिसकी वजह से 'किसी भी को भी अनफ्रैण्ड करने में 'पल नहीं लगाते अगर
'दायरा लांघने की कोशिश की ।
हमारी अनेक सहेलियों ने भी यही सब सहा होगा ।
चाहे वे पत्रकार हों या लेखिका या टीचर या गृहिणी ""'''
कितना संघर्ष करके टिकती हैं स्त्रियाँ 'यहाँ '
फिर परिजनों से भी सुनना पङ सकता है 'कठोर 'इसलिये सब कामकाज निबटाकर
'रात में ही अकसर महिलायें एफ बी या ट्विटर पर होती है 'या फिर सूर्योदय
से पहले ।
★इसपर भी हरीबत्ती देखी और चल पङे 'अलफतुए भैया मेसेज पर मेसेज '
क्यों कोई स्त्री आधी रात को सोशल मीडियापर ??
अब इन सङीगली सोच वालों ने कभी बौद्धिक श्रमजीवियों का जीवन देखा होता तो
समझते कि "लेखक रात को देर तक नहीं जागेगा तो क्या करेगा? लेकिन वह अभी
कुछ लिख रहा मूड बना रहा या समाचार फीड ले रहा होता है और केवल "स्त्री
होने के कारण "उसके देर रात ऑन लाईन दिखने पर अललटप्पुओं के दिमागी
चिपकुटपन की बत्तियाँ गुल्ल हो जातीं है!!!
ओये लङकी?
वो भी रात को,,
जो समाज घऱ से बाहर की बात पढ़ते कहते सुनते लिखते घऱ बैठी लङकी को नहीं झेल पाता
वह समूची लङकी को कैसे घर से बाहर रात को बरदाश्त कर सकता है
उस तरह के घोंचू सोचते कब हैं कि जिनके परिजन विदेश में रहते हैं वहाँ
सुबह की बात हो रही हो सकती है 'न्यूज व्यूज लेखन ईमेल प्रिंट चल रहा हो
सकता है ।
एफ बी चिलफट्टूशों की तरह महिला केवल फ्रैंड नहीं "परिवार भी जोङ कर रखती है ।
जिनके मायके दूर है पति परदेश में है उनसे कम खर्च में लंबी बात और फोटो
देखना शेयर करना सस्ता सरल कविसम्मेलन और अखबार भी तो यहीं है,,,
लगातार
टैगियों से परेशान
मैसेज से डिस्टर्ब
अभद्रजनों से ऊबी
और एंटीवुमैनिज्मवादियों से बहस बचाती
स्त्री की सोशल मीडिया पर दमदार उपस्थिति
क्या ये कम बङी जीत है
©®सुधा राजे
#fb thanks
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