सुधा राजे का लेख :- "जीवन जीने के लिए है"।imp

जो दुःख से घबरा जाये वह न तो पुरुष कहलाने लायक है न ही हिन्द की नारी """"""
क्योंकि दुःख केवल एक वैचारिक अवस्था है,,, और वह योगी जो दरिद्र है खूब
हँस सकता है ',परंतु एक भोगी जो हर तरह से साधनवान है जरा पत्नी या
प्रेमिका रूठने या नौकरी में सस्पेन्ड हो जाने या धन की हानि या परिजन की
मृत्यु से घबराकर आत्महत्या कर डालते हैं!!!!!!!!!
कायर हैं वे सब
क्लीवता पौरूषहीनता या स्त्रीत्वविहीनता नहीं वरन "साहसहीनता " का ही
दूसरा नाम 'है ।
आत्महत्या
मतलब ईश्वर की बनाई एक अद्वितीय रचना का अंत करने का महापाप!!!
जो तुम बना नहीं सकते उसे तोङने का हक तुम्हें नहीं है ।
जीवन चाहे आप स्वयं का समझते हो अपनी देह अपने जीवन का स्वामी परंतु आप
हैं नहीं ',,,,
क्योंकि जो चीज आपने खरीदी नहीं बनाई नहीं जिसका मूल्य भी नहीं चुकाया वह
आपकी कैसे??
आप उस मुफ्त की मशीन तक के मालिक नहीं हो सकते जो केवल साईकिल में हवा भरती है!!!!
तो उस जटिल महामशीन के स्वामी कैसे हो सकते हो बिना मूल्य चुकाये जिसका
आप एक नाखून , एक बाल तक बनाना नहीं सीख पाये आज तक??????
इसका स्वामी है आपका ईश्वर आपकी माता आपके पिता आपकी पत्नी आपके बच्चे आप
पर आश्रित आपके परिवार देश समाज के वे सब लोग ""जिन जिन को आपके न होने
पर '''बुरा दयनीय और दुखी जीवन जीने को विवश होना पङेगा """

क्या आप मर जायें और संसार में एक का भी जीवन दुखी न हो ऐसा हो सकता है????
कदापि नहीं,,,
क्योंकि यदि आपका परिवार है तो परिवार की आशा और भविष्य वर्तमान के अनेक
छोटे बङे कार्य सुख दुख आपके हवाले हैं ।
और यदि आपका संसार में न कोई मित्र है न परिवार न शुभचिंतक तो भी,, चूकिं
आपको ईश्वर ने बनाकर भेजा है भारमुक्त करके तब तो आप और भी अधिक विशद
उत्तरदायित्व लेकर आये हैं उन सबके प्रति जो जो अनाथ हैं दयनीय हैं जिनका
कोई रक्तसंबंधी या परिवार मित्र या शुभचिंतक नहीं है, 'वे केवल आपकी ही
बाट जोह रहे हैं । उनके लिए ही ईश्वर ने आपको बनाकर भेजा है । जाकर
देखिये कुतना कार्य शेष है!!! आपको कई जन्म लेने पङेंगे तब पूरा होगा ये
महाकार्य, और इसके लिये ये देह रूपी यंत्र बीमार या कमजोर नहीं चल सकेगा
तो
आपका ही सबसे पहला कर्त्तव्य है कि वह मशीन पूर्ण स्वस्थ और सुचालित हो
उसके सब अंग सही सही कार्य कर रहे हों ।
आप इस देह रूपी यंत्र के केवल चालक मात्र है यह आपको केवल कर्त्तव्य पूरे
करने को सौ सवा सौ साल के पट्टे पर मिले 'संयंत्र की ही भाँति है ।आप रोज
व्यायाम नहीं करेंगे तो, रोज सही और संतुलित ढंग से चलना बैठना सोना खाना
नहीं रखेंगे तो, यह संयंत्र खराब हो जायेगा, 'आप इसको चलाना तक तो जानते
नहीं!!!! सीखने में ही सात से सत्तरह साल लग जाते है ।
देखो किसी नट को, एक्रोबेट को, किसी जिमनास्ट को, किसी धावक को, मल्ल को,
वह इसी पिलिपले रहने वाले शिशु असहाय शरीर को चलाना सीख कर ही कलाकार
खिलाङी नर्तक नट और जिमनास्ट या तैराक मल्ल या एक्रोबेट बना है ।
इस देह को जीतो, 'इसे अपने इशारों पर चलाना सीखो, यह खूब जानता है कि सही
स्वामी का कैसे आज्णापालन करना होता है ।
बढ़िया शरीर पैदाईशी नहीं मिलता निर्माण करना पङता है पाँच साल की आयु से
ही सीखने लगते हैं संगीत नबत्य युद्ध और खेल "'''तो क्यों नहीं इसे ढाल
लेते अपनी आवश्कताओं के अनुरूप ऐसे भी तो लोग है जिन्होने भूख नींद वासना
कामेच्छा और निर्बलता पर विजय पाकर "जितेन्द्रिय की उपाधि पाई, उनको न
किसी वस्त्र के आडंबर की आवश्यकता रही न लेप और आभूषणों की उनकी तो देह
ही दिगंबर सुंदर निर्विकार हो कर रही ',
प्राण इसका "रिचार्ज वाऊचर है चार्ज्ड बैटरी है 'और यह तब तक शिथिल नहीं
पङती जब तक कोई "यह न सोचे कि मैं तो इससे अच्छा कि मर जाऊँ,,,
क्यों सोचो फिर मरने की?
जिओ
जब अपने लिये जीने का बहाना न रहे तब ही जीवन का असली अर्थ समझ में आता
है, 'और यह भी समझ में आता है कि पीङा जब मुझे इस बात पर इतनी हुयी तो
मुझसे और भी जो वेग हैं वे ऐसी ही पीङा और इससे भी भयंकर दर्द दुख कैसे
झेलते होंगे ',
कुछ लोगों से मिलो तो सही जिन्होने जीवन का वरण किया, अरे मरना तो बङा
आसान है 'नब्ज काट लो फाँसी लगा लो पेङ के नीचे कूद पङो जहर खालो,
'""""""किंतु जीना कितना कठिन!!!!!! हर पल साँस लेनी पङती है, हर पल पेट
से हर कोशिका तक रक्त और ऊर्जा ऑक्सीजन और पोषण का प्रवाह जारी रखना पङता
है ।तीन मिनट को साँस न मिली और जीवन खत्म!!!!!!!!
जीकर दिखाओ, 'है हिम्मत तो जिओ 'मर तो बाद में भी सकते हो पहले ये सोचो
कि क्या क्या लाभ इस सवा सौ साल की आयु का संसार को तुम दे सकते थे और
दिया नहीं!!!!! क्या क्या ऐसा कर सकते थे कि कुछ लोग तो सुखी हो जाते!!!!
करोङ रुपया देकर भी अगर जीवन मिले तो करोङों लोग जीवन खरीदने को तैयार
बैठे है अपना और अपनो का ',कोई भला स्वस्थ देह के होते हुये गरीब कैले हो
सकता है????
ये मकान किसके लिये? शरीर के लिये? और ये कपङे गहने लेप चूर्ण और रंग??
यब के सब इसी तन इसी देह के लिये???
तो ये सब तो एक मशीन की एसेसरीज ही हुयी न??
सोचो जब कवर और रख रखाव जिस मशीन का ऐसा है तो वह मशीन कितनी कीमती होगी????
अरबों के हीरे मिलकर भी एक मनुष्य का सवा सौ साल का स्वस्थ जीवन नहीं बना सकते तो?
यह देह हो गयी अरबों की और आप अरबपति खरबपति नील शंख और पद्म पति!!!!!
इतने धनवान होकर भी आपको इस कीमती देह का क्या निकृष्ट प्रयोग समझ में आया??
अरे यह शरीर ही तो पूँजी है नट की खिलाङी की धावक मल्ल और योद्धा की
कलाकार की और नर्तक की गायक की और वादक की!!!!!!!

इस शरीर का जो ड्राईवर है सोचो फिर वह कितना गुणवान होगा 'मन 'ये मन जिसमें
हाथ पाँव कमर यौनांग और कंठ नहीं
बल्कि
विचार बुद्धि सोच चिंतन आविष्कार शोध विश्लेषण औऱ विद्या की शक्ति है!!!!!!!
वह तो शरीर रूपी महासंयंत्र के सबसे सुंदर कक्ष में बैठा उसका 'संचालक है "
अगर मन ही मालिक बन गया तो आप तो गये काम से '
मन मनमानी करते करते प्रबंधक से कब स्वामी बनकर देह को हङप जाये पता न
चले यदि ये "सही नियंत्रक यात्री ''आत्मा जो इस संसार की यात्रा पर आयी
है अपना दायित्व भूलकर रमने लगे यंत्र के क्रिया कलाप के सुख लेने में!!
आपने कार ली या मोटरसाईकिल या कंप्यूटर "क्या उसकी चेसिस और हार्डवेयर को
ही रोज कोलीन से चमकाकर बैटरी चार्ज करके ईधन भरकर रखते रहोगे????
या इससे कुछ काम भी लेना है??
मनोरंजन जिस जिस चीज से होता है वह तो "मैनेजर का आनंद है '"'
वह तो उस ड्राईवर का आनंद है जो आपकी कार आपकी बस रेलगाङी चलाते समय जोर
जोर से रेडियो ऑडियो वीडियो पर कुछ संगीत सुन रहा या मोबाईल पर देख रहा
है ',सावधानी हटी और दुर्घटना घटी मन रूपी एक मनोरंजनवादी चालक को मन की
करने दोगे तो होगा यही वह ""गाङी ही ठोक देगा कहीं बीमार कपेगा चटोरेपन
से कभी आलस में गाङी चलायेगा देर करेगा हर काम में कभी स्पीड ज्यादा रखकर
गाङी ही तोङ डालेगा ।
तो ""आत्मा रूपी यह पट्टेदार यात्री अपने माल यानि गाङी रूपी देह की सही
सुरक्षा चाहता है तो मन रूपी संचालक पर काबू रखे ',
ताकि ऐसा नियम बना रहे कि जो जो मन चाहे वह सब तभी करने दिया जाये जब वह
सब करना गाङी को नुकसान नहीं दे रहा हो और आत्मा रूपी पट्टेदार मालिक
यात्री को दिये सवा सौ साल के समय के भीतर उस पर सौंपे गये दायित्व भी
पूरे हो सकें ।
देखो, 'ये शरीर सिर्फ तीन दशक के लिये मिला शंकराचार्य को ',विवेकानंद
को, दयानंद को, और उन सबने कितने कम समय में कितने सारे कार्य कर
डाले!!!!!
यही शरीर आपके पास है ',क्यों इसका बेहतर उपयोग नहीं, 'ये स्त्रीपुरुष का
प्यार ये बङी हवेली जेवर कपङे वाहन की होङ,,,,,, अपनी जगह तक सीमित
अर्थों में ही तो, 'आपके मोबाईल कंप्यूटर या बाईक की ऐसेसरीज ही तो
हैं!!!! ये ध्येय नही!! ये साध्य नहीं!!! ये केवल संसाधन हैं ।
साध्य तो वही ""चुनौती है जो दाता परमात्मा ने एक विचित्र संयंत्र एक
चालक सहित देकर भेजा कि जाओ और कर दिखाओ इस संसार में ; जो जो कुछ वहाँ
देख समझकर समझ पाओ कि मानवदेही होने को नाते करना तुम्हारा सही उपयोग
है!!
तो क्या किया आपने परमात्मा को बताने के लिये!???
अपने पीछे रह गये लोगो में चर्चा को छोङ जाने के लिये,??
कौन कहता है 'मर गये कबीर? कौन कहता है मर गये नानक,, अरे मर तो वह रहा
है जो जीवन की आपाधापी में केवल मशीन ही धो पोंछकर रोज सजाये जा रहा है
बिना इसका सही उपयोग करे ।
ये दस उंगलियाँ 'दो नेत्र एक पूरी ज्ञान और कर्म की श्रंखला पर काबू पाने
को हर पल स्मृति रखता आविष्कारक मन और इसमें भी आपको अगर लगता है कि देह
का अंत ही सही राह है तो डरपोक कायर क्लीब और कृतघ्न शब्द भी काफी नहीं
आपके लिये ',दुख तो सब पर पङता है कोई बह जाता है कोई ',सह जाता है,
'किंतु मानव वही सच्चा है मानव जो न बहे न केवल सहे अपितु अपना दुख
बिताकर बिसरा दे और दूसरों के दुख का सहारा बनकर बाँह गहे!!!
आप युवा हैं या वृद्ध स्त्री हैं या पुरुष अगर इस सबको जानसमझ कर भी मरना
ही चाहते हैं तो मर जाईये ',पहले उन सबको मार डालिये जो आपके पीछे दर्द
दुख और यातना का अभिशप्त जीने वाले है । उस माता को मार डालिये जिसने नौ
माह कोख में रखा जमाने के सौ सौ ताने दुख कलह सहकर पाला पोसा इस आशा में
कि बेटा या बेटी एक दिन बङे होकर सहारा बनेंगे ',।
और इतने पर मरना है तो एक आखिरी निवेदन है कि मरिये चलो किंतु ये देह जब
आप खत्म करना ही चाहते हैं तो जैसे फालतू सामान दान कर दिया जाता है जब
गृहस्वामी के काम का नहीं रहता ।
दान कर दीजिये देश को समाज को दीन दुखी दरिद्र अनाथ और मरणासन्न जीवन
जीते उन लोगों को जो जीवित रहने की आशा में 'रोज मरते हैं ।
आप को कुछ तो ऐसा आता होगा ही जो किसी के सेवा कार्य में लग जाये? सोच लो
कि अब आप मर गये ।ये देह आपकी नहीं आपने देश को दान कर दी ।
माता पिता परिवार या समाज के दुखियों को दान कर दी ',अब आप इसके अधिकारी
नहीं इस देह को सैनिक की भाँति मजबूत रखकर शहीद की भाँति तत्पर रहना है
जीवित रहकर सेवा करने और देश हित मानवहित में आवश्यक हुआ तो देहोत्सर्ग
करने को ।
आप अकेले हैं? तो किसी और को जो आपसे अधिक दुखी और अकेला हो का साथ
दीजिये बिना अहसान जताये ।
दुख और अकेलापन दोनों ही बाँटने से आधा रह जाता है '
"सुधा "मनुज की देह में
रोम रोम हरिवास
अणु अणु में ब्रह्मांड शिव
शक्ति, अनत प्रति श्वाँस

©®सुधा राजे


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