सुधा राजे का व्यंग्य लेख- ''मासूम"भारतीय और "गंदे" रेल वाले।

घर की साफ सफाई औरतें न करें
तो???????? और शहर केवल नगर
पालिका की जिम्मेदारी????? रेल
की सफाई भी तो बस बसअड्डा और
प्लेटफार्म
ही नही """कसबो गाँवों के
किनारे पटरियों का खुड्डी की तरह
इस्मेमाल करते लोग??????
बढ़िया लेखक
तो मिलते ही टॉयलेट भित्तिलेखन
कार्य
के क्या कहने,???? और छत के पंखों पर
जूते
चप्पल?? सीट के नीचे ""सब कुछ
अधिकतर ""डिरेलमेंट के एक्सीडेंस
किसलिये?? क्योंकि मासूम जनता के
मासूम लोग पटरी से
जलेबी यानि 'लिंक्स "उखाङ ले जाते हैं
और पटरियों को भी ।
महान भारतीयों को बस रेल तोङफोङ
चक्काज़ाम ""का पहले
ही चस्का पङा है ।और
सरकारी संपत्ति उन के बाप
दादा की है सो टोंटियाँ शीशे घर ले
जाना उनका हक है ।
और भी महान चीजें है
जो रेलगाङी को """सुंदर बनाने के
लिये भारत की मासूम जनता करती है
""
'''
बेचारे भारत के निरापद लोग
जो """साफ सुथरी रेल चाहते हैं
दयनीय !!
अद्भुत हैं "अबोध बेचारे भारतीय "बस में
जब सारी सवारियाँ उतर जायें
तो ''''मूँगफलियाँ और फलों के छिलके
ही नहीं ""गुटखे पान भी शान से थूके जाते
है 'गांधी के बाद देश की सबसे
बङी पहचान "गुटखा और पान ।।
बेचारी सुघङ अबला भारतीय सुशील
गृहणियाँ घर को हर अमावस
पूर्णिमा पर भले ही दीवाली सा झाङ
पोंछ करें किंतु रेल गाङी और बसों में
बच्चों के डायपर तक सीट के नीचें मिलते
हैं टॉयलेट का अब तक इस्तेमाल
करना आता नहीं बेचारियों को सो ""फर्श
पर ही नौनिहालों की सजावट
बिखेरती हैं ।

टॉयलेट लेखन में तो जैसे माहिर हैं
""वात्स्यायन के वंशज
युवा "क्योंकि उनको सबसे जरूरी छाप
लगता है कि ""भारतीय युवा साक्षर
हो चुके है "यह कैसे पता चले
सबको ''यहाँ तक कि टॉयलेखन के माहिर
बौद्धिक युवा साक्षरों के ""तमाम
निबंध कविता कहानियाँ चित्र और
परमवचन ""भारत के सबसे साफ कहे जाने
वाले अस्पतालों तक में देखे गये '' #जयपुर
संतोकबा दुर्लभजी की चौथी मंज़िल पर
सीरियस हड्डी न्यूरोलॉजी केस के
मरीजों के वार्ड में """ज़ाहिर है बेडपेन
इस्तेमाल करते हिल डुल न सकते
मरीजों का तो कार्य
होगा नहीं ",,तो तीमारदारी को पहुँचे
बंधु बांधव ही ये """परम लेखन
वहाँ भी उकेर आये होंगे ।
©®सुधा राजे

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Sudha Raje
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