सुधा राजे की गज़ल " कोई भी न मिल पाया मुझे "।
ज़िंदग़ी ले
जो दिया था मैंने
लौटाया तुझे
बस गुनहग़र रूह का अपनी हूँ
याद आया मुझे
थे वो "पुतले अक़्ल के"
मैं सादग़ी समझे गया
मैं परायी पीर
रोया बंदगी समझे
गया
मैं समंदर रेत को
मीठी नदी समझे गया
मौत
थी हँसती किलकती ज़िदगी
गया।
पिसरे सल्बी
कहके मक्तल
ज़ोरावर
लाया मुझे
हूँ गुनहग़र रूह अपनी ही याद
आया मुझे
थे बहाना मुझको रस्ते से
हटाने
के लिये
झूठ के रिश्ते बने थे बस
ज़माने के
लिये
सारी बातें
ही थीं नकली एक दाने
के लिये
आसमाँ धरती की बातें
थीं दिखाने
के लिये
जब जले तो फिर कोई
साया न
मिल पाया मुझे
हूँ गुनहग़र रूह
का अपनी ही याद
आया मुझे
क्या कहा था ज़िन्दगी भर
साथ देंगे हाथ वो
वो बयांबांमांदगी
को छोङ गये इक रात जो
दर्द से ज़मकर बरफ हो गये
नरम ज़ज्बात वो
वो जो लाये थे दिखाने
सावनी बरसात को
हाँ उन्हीं हाथों ज़हर
का ज़ाम फिर आया मुझे ।
बस ग़ुनहग़र रूह का अपनी हूँ याद आय़ा मुझे।
कितनी मासूमी से
सहला कर रखे पाले शज़र
सींचते ख़्वाबों में नींदों में
जो रस्ते उम्र भर
कोई मंज़िल
थी तो क्या थी भूल
गयी ठंडी सहर
गर्म
धरती आसमां जलता भटकता हर
शहर
कितनी आवाज़ें दी कोई
भी न मिल पाया मुझे
हूँ गुनहगर--रूह का अपनी ही याद आय़ा मुझे ।
---—-
क़त्ल होते रह गये मासूम
अरमानों के दिल
रात थी बेदार सारे दिन
थे तन्हा संग़दिल
हर तरफ़ गिर्दाब साहिल
डूबते क़श्ती में पल
रह गयी अदनी सी हिम्मत
जलज़लों से यूँ दहल
नाख़ुदा वो ग़म
"सुधा "जिसमें
ख़ुदा लाया मुझे
हूँ ग़ुनहग़र रूह
का अपनी ही याद
आया मुझे
copy Right
लेखिका
सुधा राजे
Sudha Raje
--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
Bijnor
U.P.
Email- sudha.raje7@gmail.com
Mobile- 9358874117
जो दिया था मैंने
लौटाया तुझे
बस गुनहग़र रूह का अपनी हूँ
याद आया मुझे
थे वो "पुतले अक़्ल के"
मैं सादग़ी समझे गया
मैं परायी पीर
रोया बंदगी समझे
गया
मैं समंदर रेत को
मीठी नदी समझे गया
मौत
थी हँसती किलकती ज़िदगी
गया।
पिसरे सल्बी
कहके मक्तल
ज़ोरावर
लाया मुझे
हूँ गुनहग़र रूह अपनी ही याद
आया मुझे
थे बहाना मुझको रस्ते से
हटाने
के लिये
झूठ के रिश्ते बने थे बस
ज़माने के
लिये
सारी बातें
ही थीं नकली एक दाने
के लिये
आसमाँ धरती की बातें
थीं दिखाने
के लिये
जब जले तो फिर कोई
साया न
मिल पाया मुझे
हूँ गुनहग़र रूह
का अपनी ही याद
आया मुझे
क्या कहा था ज़िन्दगी भर
साथ देंगे हाथ वो
वो बयांबांमांदगी
को छोङ गये इक रात जो
दर्द से ज़मकर बरफ हो गये
नरम ज़ज्बात वो
वो जो लाये थे दिखाने
सावनी बरसात को
हाँ उन्हीं हाथों ज़हर
का ज़ाम फिर आया मुझे ।
बस ग़ुनहग़र रूह का अपनी हूँ याद आय़ा मुझे।
कितनी मासूमी से
सहला कर रखे पाले शज़र
सींचते ख़्वाबों में नींदों में
जो रस्ते उम्र भर
कोई मंज़िल
थी तो क्या थी भूल
गयी ठंडी सहर
गर्म
धरती आसमां जलता भटकता हर
शहर
कितनी आवाज़ें दी कोई
भी न मिल पाया मुझे
हूँ गुनहगर--रूह का अपनी ही याद आय़ा मुझे ।
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क़त्ल होते रह गये मासूम
अरमानों के दिल
रात थी बेदार सारे दिन
थे तन्हा संग़दिल
हर तरफ़ गिर्दाब साहिल
डूबते क़श्ती में पल
रह गयी अदनी सी हिम्मत
जलज़लों से यूँ दहल
नाख़ुदा वो ग़म
"सुधा "जिसमें
ख़ुदा लाया मुझे
हूँ ग़ुनहग़र रूह
का अपनी ही याद
आया मुझे
copy Right
लेखिका
सुधा राजे
Sudha Raje
--
Sudha Raje
Address- 511/2, Peetambara Aasheesh
Fatehnagar
Sherkot-246747
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Email- sudha.raje7@gmail.com
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