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Showing posts from May, 2013

तंद्र पवन।

सुधा राजे के गीत, गज़ल और मुक्तक।

किशना पगली किशना

पाँव खुद काट के दिये उसनेजैसे बैसाखियों के कहने पै ।।

सुधा खून में ज़हर बो रहा लालसलामी सोच ।

मातृ धर्मा दूर्वा।

प्रेम झंझावात् सा आया उङा कर लेगया ।

लाल क्रांतिवाद बनाम लोकतंत्र।

लाल क्रांतिवाद बनाम लोकतंत्र।

लाल क्रांतिवाद बनाम लोकतंत्र।

चुपकॆ

हरी पत्ती लजाई सी।

वातानुकूलित कक्षों नें धूप की कल्पना करते नारी चिंतक।

वैदेही हूँ मैं