बुरा मानो कि होली हमारी भी है सिर्फ तुम्हारी नहीं।
मैंने आज जमकर उन फूहर
लोगो को unfriend किया
जो होली है
बुरा न मानो की आङ में
केवल
महिलाओं का सूक्ष्म
विश्लेषण करने में लगे पङे हैं
फिर लिखते है
बुरा न मानो होली है
I HATE HOLI
सिर्फ
पुरूषों की कमीनगी का चरम
दिखावा है
साल
भऱ जिस नीचता को दिल
में दबाये बैठे रहते हैं
वह मजाक के बहाने
गीत के बहाने
रंग लगाने के बहाने
क्यों?????
ये त्यौहार एक अघोषित
मानसिक बलात्कार
बनकर रह जाता है
राधा
कृष्ण के बहाने
अपनी शैतानी वहशी हवस
भरी सोच निकालने वाले
होली का सही अर्थ
जानते ही नही
बृज में
लाठी पीटती औरतों के
हाथ नही पकङता
शाम होते सिर भूमि पर
रखकर पाँव छूकर जाते है
राजपूताने में होली पर
स्त्री को स्पर्श नहीँ करते
गुलाल पिचकारी
सिर्फ देवर जीजा ननदोई
भाभी के भाई लगाते हैं
पति के अलावा हाथ से
छूना किसी की हिम्मत
नहीं
लेकिन देखा
यू पी
साल भऱ पाँव छू ने वाले
लङके होली के दिन
चाची मामी भाभी ताई
साली सढ्यानी सलहज
सबको पटक कर
कहीँ भी हाथ लगाते हुये
काला
नीला
बैंगनी रंग
सफेदा
औऱ मोबिल
कीचङ
पोतनी
गोबर
मल रहे है
दारू में धुत्त और गंदे पन
की चरम सीमा तक फूहङ
बोल रहे हैं
स्त्री कमरे में बंद डरके मारे
औऱ खीच के ले जा रहे है
पति मूक देख रहा है
हमने इस कुप्रथा को खत्म
कर दिया अपने कुनबे से औऱ
इसके लिये पहले ही साल
हुरियारों को कङक सुर में
औक़ात में रहने
को कहा गया ।
तब से अब सिर्फ सूखे गुलाल
चलने लगे
लेकिन ये केवल हमारे कुनबे में
बस
बाकी वही हाल है
बुरा मानो होली है औऱ
केवल पुरूषों की नहीँ हम
महिलाओं की भी है
जो गाल रगङने
को परायी औरत खोजे
वो कमीना ही तो है
औऱ गंदे गाली गलौज
मजाक शराब अश्लीलता
जिसे अपनी बहिन बेटी के
साथ बर्दाश्त
नहीँ वो हवा में मजाक के
नाम पे
पूरी स्त्री जाति मातृशक्ति को हवस
की दृष्टिभोगी नजर से
देखता है तो सामाजिक
नही समाज का दीमक है
होली मन का मैल हटाकर
बंद रिश्ते शुरू करने गाने
नाचने औऱ बिना स्पर्श के
रंग लाल पीले हरे
गुलाबी केसरिया डालकर
झूमकर मन का औदास्य
हटाने का पर्व है
hAPPY HOLI
©®¶©®¶
सुधा राजे
लोगो को unfriend किया
जो होली है
बुरा न मानो की आङ में
केवल
महिलाओं का सूक्ष्म
विश्लेषण करने में लगे पङे हैं
फिर लिखते है
बुरा न मानो होली है
I HATE HOLI
सिर्फ
पुरूषों की कमीनगी का चरम
दिखावा है
साल
भऱ जिस नीचता को दिल
में दबाये बैठे रहते हैं
वह मजाक के बहाने
गीत के बहाने
रंग लगाने के बहाने
क्यों?????
ये त्यौहार एक अघोषित
मानसिक बलात्कार
बनकर रह जाता है
राधा
कृष्ण के बहाने
अपनी शैतानी वहशी हवस
भरी सोच निकालने वाले
होली का सही अर्थ
जानते ही नही
बृज में
लाठी पीटती औरतों के
हाथ नही पकङता
शाम होते सिर भूमि पर
रखकर पाँव छूकर जाते है
राजपूताने में होली पर
स्त्री को स्पर्श नहीँ करते
गुलाल पिचकारी
सिर्फ देवर जीजा ननदोई
भाभी के भाई लगाते हैं
पति के अलावा हाथ से
छूना किसी की हिम्मत
नहीं
लेकिन देखा
यू पी
साल भऱ पाँव छू ने वाले
लङके होली के दिन
चाची मामी भाभी ताई
साली सढ्यानी सलहज
सबको पटक कर
कहीँ भी हाथ लगाते हुये
काला
नीला
बैंगनी रंग
सफेदा
औऱ मोबिल
कीचङ
पोतनी
गोबर
मल रहे है
दारू में धुत्त और गंदे पन
की चरम सीमा तक फूहङ
बोल रहे हैं
स्त्री कमरे में बंद डरके मारे
औऱ खीच के ले जा रहे है
पति मूक देख रहा है
हमने इस कुप्रथा को खत्म
कर दिया अपने कुनबे से औऱ
इसके लिये पहले ही साल
हुरियारों को कङक सुर में
औक़ात में रहने
को कहा गया ।
तब से अब सिर्फ सूखे गुलाल
चलने लगे
लेकिन ये केवल हमारे कुनबे में
बस
बाकी वही हाल है
बुरा मानो होली है औऱ
केवल पुरूषों की नहीँ हम
महिलाओं की भी है
जो गाल रगङने
को परायी औरत खोजे
वो कमीना ही तो है
औऱ गंदे गाली गलौज
मजाक शराब अश्लीलता
जिसे अपनी बहिन बेटी के
साथ बर्दाश्त
नहीँ वो हवा में मजाक के
नाम पे
पूरी स्त्री जाति मातृशक्ति को हवस
की दृष्टिभोगी नजर से
देखता है तो सामाजिक
नही समाज का दीमक है
होली मन का मैल हटाकर
बंद रिश्ते शुरू करने गाने
नाचने औऱ बिना स्पर्श के
रंग लाल पीले हरे
गुलाबी केसरिया डालकर
झूमकर मन का औदास्य
हटाने का पर्व है
hAPPY HOLI
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सुधा राजे
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