नाद और बिंदु

अपने भीतर ही एक
स्त्री एक पुरूष छुपाये जनमे
दोनों
नाद और बिंदु
नाद के भीतर लास्य
था लालित्य था ललक
थी और लचक थी ।
बिंदु के भीतर साहस था ।
जिजीविषा थी ।
सहनशक्ति और उत्साह था
समान था दोनों में आनंद
रति रमण प्रेम आकर्षण और
काम
फिर??????
दोनों ने विस्तार किया
और एक दिन नाद को पुरूष
होना भा गया ।
क्योंकि सृजन सिर्फ बिंदु
के पास था
आनंद के पार पीङा के पार
उपलब्धि के पार दुख
का सारा विस्तार
जो दोनो में होता बिंदु
ने सहर्ष ले लिया । नाद
मुक्त हो गया विस्तार
को । बिंदु सूक्ष्म
होता गया समर्पण को वह
जीवित रहा
नाद मर गया खोखले
अहंकार की खाल पर
गूँजता नाद बिंदु से
मुक्ति पाने की छटपटाहट
में निरंतर भीतर
को मारता गया । उसके
कण कण में ठसाठस्स बिंदु
ही बिंदु था
कोमलता से
छुटकारा पाने को कठोर
परूष रूक्ष होता नाद अपने
ही शोर से बधिर
हो गया । तब
जब सब सो रहे थे नाद
रो रहा था
बाकी सब फौलाद
हो चुका था लेकिन हृदय में
बिंदु
अपनी पूरी कोमलता से
विराजमान था
तब से आजतक वह
विपरीत हठयोग में स्वयं
का हृदय दबोचे फिर रहा है
क्योंकि
यही अंतिम कोना है
जहाँ वह बिंदु का दास है
वह कमजोर
स्त्री का विनाश स्वयम्
पुरूष का विनाश लिखकर
वह लगातार सोचता है कैसे
मारे स्वयम् को बचाकर
Sudha Raje
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