सुधा राजे का लेख- विचारधारा के बहाने अपराध का महिमामंडन।

अपराध को महिमामंडित करने की एक साजिश चल रही है चाहे वह आतंकवादके बहाने
हो या कम्युनिज्म या या फासिज्म या नक्सलिज्म या अथीस्टिज्म ,
यही
विचारधारा नामकरण उसको जस्टीफाई कर देता है कि चिढ़वश नफरत वश लालच वश
स्वार्थवश मनोविकार पागलपन वश या भड़काने पर उठे उन्मादवश जो जो कर रहा
है वह वह सब इस धारणा के अंतर्गत उचित है ,
इसलामिक आतंकवाद
एक सदी पहले के कम्युनिस्ट रक्तक्रांति की ही तरह
बिचौलिये
उपदेशकों द्वारा
जायज करार देकर जिहाद नाम से चलाया जाकर अपराध का महिमामंडन ही है ,
जिससे क्रूरता के बाद की ग्लानि और पहले की हिचक खत्म हो जाती है
अपराधी सोचता है वह एक महान कार्य कर रहा है
जियेगा तो बलवान
मरा तो ग्रेट कहलायेगा ,
इस तरह का जस्टिफिकेशन पढ़े लिखे लोग एक षडयंत्र के तहत करते रहते हैं ,
जबकि
है सबकुछ धन का बहाव एक तरफ करने की सहस्त्राब्दि पुरानी सुनियोजित
विचारधारा का अनुमानित सटीक प्रोग्राम ,
और परिणाम देखने हैं तो डेढ़ हजार साल पहले के अरब देशों की वास्तु कला
आर्थिक स्थिति की वास्तविकता रहन सहन और तब के भारत का रहन सहन वास्तुकला
आर्थिक स्थिति तौल लीजिये
फिर आज
को तौलिये
और ज्ञात कीजिये ऐसा क्यों .......??जो उत्तर मिले उस पर निर्मम निरपेक्ष
विचार कीजिये ,,,,,
विचारधारा
धन के लालच से ही पैदा होकर सत्ता पर पकड़ और समर्थकों की संख्या बढ़ाने
के लिये एक उन्मादकारी नारे विचार और महान कार्य के सिद्धांत पर ही
टिकाकर जारी की जाती है~
सारे हिंसक आन्दोलन विचार के नाम पर जस्टीफाई किये ग,ये
अब आतंकवाद की कमर तोड़नी है तो उसकी जड़ उसके मर्म ""द ग्रेट काॅज आॅफ
अल्ला ""और सत्तर हूरें की जन्नत का इनाम को समझना व्याख्यायित करना होगा
(क्रमश:)©®सुधा राजे

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