सुधा राजे का लेख :- गांधी भारत की आत्मा है।
गांधी व्यक्ति नहीं 'भारत की ग्रामीण मजदूर जीवनशैली के साथ संसार भर की
बातें सोचने वाली आत्मा है ।
जब तक "सादा जीवन उच्च विचार एक आदर्श है विद्वत्ता सामाजिक सरोकारिता और
नायकत्व की पहचान का 'गाँधी जीवित है ।
हमारे देश के चंद अगुआ बन जाने वालों ने 'महानायक जनप्रिय लोकनायकों का
"अपहरण "उनकी मृत्यु के बाद कर लिया ',
जाति, मज़हब, भाषा, प्रांतीयता, और दलगत राजनीति के आधार पर ।
गाँधी की भी यही दुर्दशा हुयी है उनका जनगण नायक से अपहरण होकर
""कॉग्रेसी नेता की पहचान बनायी जाती रही ""
जबकि नेहरू के ही समय में गाँधी कॉग्रेस से जुङे थे तो 'सरदार पटेल
फिरोजशाह मेहता दादाभाई नौरोज़ी गोपालकृष्ण गोखले, और तमाम नरम पंथी गरम
पंथी अपने अनुयायियों की वजह से तब कॉग्रेस एक राजनीतिक दल नहीं थी वह एक
सभा थी जहाँ बैठकर लोग भारत और ब्रिटिश शासन के हर मुद्दे पर बात करते थे
। पढ़े लिखे विचारकों का क्लब कॉफीहाऊस और परिचर्चा मंच से आगे कॉग्रेस
यदि जन जन तक पहुँची तो ''गाँधी पटेल जैसे नेताओं की बदौलत ही ।
तब जबकि "नेहरू को गुलाबों का शहज़ादा नाज़ुक मिज़ाज पूँजीपति ही समझा
जाता था और उनकी संपन्नता विलासिता और अग्रेजी रहन सहन के किस्से दूर
दराज गाँवों तक अलाव पर भी कहे सुने जाते थे ।
वह गाँधी ही थे जो "गरीब भारत "को गुलाम सोच से शर्मिन्दा होने की बजाय
अपने ""काले ठिगने और अनगढ़ शरीर पर स्वाभिमान से सिर उठाना सिखा सके ।
वह गाँधी ही थे कि छुरी काँटे चम्मच से खाते टेबिल मैनर्स पर अकङते राजे
नवाबों अंग्रेजी पिट्ठुओं के बीच गाँव की गरीब मेहनती मजदूर जनता को "
हाथ से पकी हाथ से आटा पीस कर बनायी मिट्टी के चूल्हे पर की हँडिया तवे
की रोटी दाल दलिये को सम्मान के साथ सब के साथ मिलबाँटकर बिना झिझके डरे
लजाये खाने का स्वाभिमान जगा सके ।
वह भी गाँधी थे जो इत्र क्रीम पाऊडर से महकते 'धनिकों के सूट बूट टाई कोट
स्कार्फ और सरसराते रेशमी विदेशी कपङों से सजी काया की चमक दमक के बीच ',
हथकरघे की काती और चरखे के सूत से तैयार हाथ की रँगी खुरदुरी मोटी और
सस्ती विशुद्ध भारतीय धोती लंगोटी बंडी चादर पहिन कर भी फर्राटे से
अंग्रेजी हिन्दी गुजराती बोलते लिखते और सभाओं मंचों और गोलमेज सम्मेलन
वायसराय गवर्नर लॉर्ड और राजाओं नवाबों साहूकारों ऑफिसरों के बीच भी
"पूरे स्वाभिमान से अपनी ग्रामीण मजदूर नगर कसबाई जनता की मूर्ति बनकर
देश की समाज की शासन की बात करते थे ।
आज गाँधी जीवित हैं विश्व में जन जन के मन में "
तो इसलिये नहीं कि वे गुजरात के वणिकधनिक के पुत्र थे, ' न इसलिये कि वे
लण्दन से बैरिस्टर बनकर लौटे थे, न ही इसलिये कि कॉग्रेस के व्यक्ति थे,
"""""
बल्कि सिर्फ और सिर्फ इसलिये कि "गाँधी कमजोर काले नाटे अनगढ़ और मानवीय
भूल गलतियों कामनाओं वासनाओं से भऱी काया से ऊपर उठकर, 'देश जन जन गरीब
किसान मजदूर कारीगर कलाकार लेखक कवि प्रशासक मुसलिम हिंदू शूद्र सवर्ण
बंगाली मराठी कोंकणी हिंदी काले गोरे सांवले राम रहीम वाहे गुरू जीसस
""""""""सबसे ऊपर की सोच विचार और समग्रता के साथ सबके हुये सबके लिये
किया सोचा और जीकर दिखाया वह कठोर सादी त्यागी जीवन ऊँचे आदर्शों को
आत्मसात किया ',गरीबी पर शर्मिन्दा नहीं रहे बल्कि "गरीब को स्वावलंबी
होकर सिर उठाकर जीने का मंत्र दे गये ।
है कोई जो गाँधी को जी सके????????
महात्मा गाँधी इसलिये बापू कहलाते रहे ।
हमारे नमन अश्रुपूरित नमन कृतज्ञ देश आज आपको याद करता है "महात्मा "
©®सुधा राजे
बातें सोचने वाली आत्मा है ।
जब तक "सादा जीवन उच्च विचार एक आदर्श है विद्वत्ता सामाजिक सरोकारिता और
नायकत्व की पहचान का 'गाँधी जीवित है ।
हमारे देश के चंद अगुआ बन जाने वालों ने 'महानायक जनप्रिय लोकनायकों का
"अपहरण "उनकी मृत्यु के बाद कर लिया ',
जाति, मज़हब, भाषा, प्रांतीयता, और दलगत राजनीति के आधार पर ।
गाँधी की भी यही दुर्दशा हुयी है उनका जनगण नायक से अपहरण होकर
""कॉग्रेसी नेता की पहचान बनायी जाती रही ""
जबकि नेहरू के ही समय में गाँधी कॉग्रेस से जुङे थे तो 'सरदार पटेल
फिरोजशाह मेहता दादाभाई नौरोज़ी गोपालकृष्ण गोखले, और तमाम नरम पंथी गरम
पंथी अपने अनुयायियों की वजह से तब कॉग्रेस एक राजनीतिक दल नहीं थी वह एक
सभा थी जहाँ बैठकर लोग भारत और ब्रिटिश शासन के हर मुद्दे पर बात करते थे
। पढ़े लिखे विचारकों का क्लब कॉफीहाऊस और परिचर्चा मंच से आगे कॉग्रेस
यदि जन जन तक पहुँची तो ''गाँधी पटेल जैसे नेताओं की बदौलत ही ।
तब जबकि "नेहरू को गुलाबों का शहज़ादा नाज़ुक मिज़ाज पूँजीपति ही समझा
जाता था और उनकी संपन्नता विलासिता और अग्रेजी रहन सहन के किस्से दूर
दराज गाँवों तक अलाव पर भी कहे सुने जाते थे ।
वह गाँधी ही थे जो "गरीब भारत "को गुलाम सोच से शर्मिन्दा होने की बजाय
अपने ""काले ठिगने और अनगढ़ शरीर पर स्वाभिमान से सिर उठाना सिखा सके ।
वह गाँधी ही थे कि छुरी काँटे चम्मच से खाते टेबिल मैनर्स पर अकङते राजे
नवाबों अंग्रेजी पिट्ठुओं के बीच गाँव की गरीब मेहनती मजदूर जनता को "
हाथ से पकी हाथ से आटा पीस कर बनायी मिट्टी के चूल्हे पर की हँडिया तवे
की रोटी दाल दलिये को सम्मान के साथ सब के साथ मिलबाँटकर बिना झिझके डरे
लजाये खाने का स्वाभिमान जगा सके ।
वह भी गाँधी थे जो इत्र क्रीम पाऊडर से महकते 'धनिकों के सूट बूट टाई कोट
स्कार्फ और सरसराते रेशमी विदेशी कपङों से सजी काया की चमक दमक के बीच ',
हथकरघे की काती और चरखे के सूत से तैयार हाथ की रँगी खुरदुरी मोटी और
सस्ती विशुद्ध भारतीय धोती लंगोटी बंडी चादर पहिन कर भी फर्राटे से
अंग्रेजी हिन्दी गुजराती बोलते लिखते और सभाओं मंचों और गोलमेज सम्मेलन
वायसराय गवर्नर लॉर्ड और राजाओं नवाबों साहूकारों ऑफिसरों के बीच भी
"पूरे स्वाभिमान से अपनी ग्रामीण मजदूर नगर कसबाई जनता की मूर्ति बनकर
देश की समाज की शासन की बात करते थे ।
आज गाँधी जीवित हैं विश्व में जन जन के मन में "
तो इसलिये नहीं कि वे गुजरात के वणिकधनिक के पुत्र थे, ' न इसलिये कि वे
लण्दन से बैरिस्टर बनकर लौटे थे, न ही इसलिये कि कॉग्रेस के व्यक्ति थे,
"""""
बल्कि सिर्फ और सिर्फ इसलिये कि "गाँधी कमजोर काले नाटे अनगढ़ और मानवीय
भूल गलतियों कामनाओं वासनाओं से भऱी काया से ऊपर उठकर, 'देश जन जन गरीब
किसान मजदूर कारीगर कलाकार लेखक कवि प्रशासक मुसलिम हिंदू शूद्र सवर्ण
बंगाली मराठी कोंकणी हिंदी काले गोरे सांवले राम रहीम वाहे गुरू जीसस
""""""""सबसे ऊपर की सोच विचार और समग्रता के साथ सबके हुये सबके लिये
किया सोचा और जीकर दिखाया वह कठोर सादी त्यागी जीवन ऊँचे आदर्शों को
आत्मसात किया ',गरीबी पर शर्मिन्दा नहीं रहे बल्कि "गरीब को स्वावलंबी
होकर सिर उठाकर जीने का मंत्र दे गये ।
है कोई जो गाँधी को जी सके????????
महात्मा गाँधी इसलिये बापू कहलाते रहे ।
हमारे नमन अश्रुपूरित नमन कृतज्ञ देश आज आपको याद करता है "महात्मा "
©®सुधा राजे
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