Sunday 27 January 2019

गजल, बस्ती से आतीं हैं सिसकतीं सर्द कराहें रात गए

जाने किस्से मिलने आतीं '
सर्द हवायें रात गये
बस्ती से आतीं हैं सिसकती
दर्द कराहें रात गये
दूर पहाङों के दामन में
छिपकर सूरज रोता है
वादी में जलतीं जब
दहशतग़र्द निग़ाहें रात गये
चाँद को लिख्खे चिट्ठी
ठंडी झील बरफ के
शोलों से
ख़ामोशी से कोहरे की
फैली जब बाँहे रात गये
परबत के नीचे तराई में
हरियाली की चादर पर
फूलों की कलियों की गूँजी
गुमसुम आहे रात गये
कितने आदमखोर मुसाफिर
रस्ते से गुजरे होंगे
मंज़िल तक जाने से डर गयीं
लंबी राहें रात गये
पेङ तबस्सुम नोंच के गये
नाजुक नन्ही बेलों के
आँसू धरती रोती शबनम
मौत की चाहें रात गये
प्यार वफ़ा के गाँव में
अमराई
पर लटकी लाश मिली
सुधा" मुहब्बत छोङ के चल
दी
पीपल छाँहे रात गये
©®¶©®¶SudhaRaje

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