कविता, लहू माँगती फिर से धरती
Sudha Raje
लहू माँगती फिर से धरती
कौन कौन देगा बोलो
अपने अपने पुत्र सजाकर
भेजो
फिर ये मूँ खोलो
भेजो कहकर बेटा जाकर
शीश शत्रु का ले आना
हो जाना कुरबान देश पर
पीठ दिखाकर मत आना
कटा शीश जब आये
सिरकटी काया तो तुम
मत रोना
घर में विधवा बहू देखकर
अपना धीरज मत खोना
कौन भरे प्रतिशोध लाल
का अब अपनी हिम्मत
तोलो
धरती फिर से लहू
माँगती कौन कौन
देगा बोलो
जाओ आज सीमा पर दुश्मन
खङा तुम्हे ललकार रहा
पीछे मुङकर मत देखो ये
उजङ चुका घरबार रहा
सत्ता पर बैठे जो कायर
उनकी गद्दी हिले डुले
ढेर करो हिम्मत दुश्मन की
अब जननी की कोख खिले
वीरों का वासन्त आ
चुका रिपु शोणित
होली खेलो
लहू माँगती है फिर
धरती अब कौन कौन
देगा बोलो
वीरबालको की थाली में
क्यों हो रूखी सी रोटी
अमर सुहागन
क्यों पहनेगी
फटी पुरानी सी धोती
वीरप्रसविनी क्यों रोयेगी
तन्हायी में
दर्दों से
वीरपिता की आँखें पूछे
सत्ता के नामर्दों से
पुरूष कहाँ पुरूषत्व गँवाया
माटी पूछे सुन तो लो
©®¶¶¶SUDHA RAJE
Sudha Raje
गरज रही दुश्मन की सेना
सीमा पर घुसपैठ बढ़े
घर गलियों में लाज लूटते
हैवानों से कौन लङै
आज
सिपाही की बेटी भी
गाँव गली में डरती क्यों
दुबक गये
क्यों कुरबानी सो
लाज लुटाये धरती क्यों
काटो शीश शत्रु
का बढ़कर
उठो अश्त्र शोणित
धोलो
लहू माँगती फिर धरती
अब कौन कौन देगा बोलो
जहर घोलने को पानी में
आतंकी आने वाले
रोको बन चट्टानें
सीने भर भर बारूदों थाले
तोङो
चीटों की कतार
सीमा पर
काली जला जला
हे नौजवान तुम छिपे कहाँ
घर बाहर आज काल मचला
भुजदंड उठा पाखंड
मिटा मिट्टी में रक्त रिपु
का घोलो
लहू माँगती है धरती
अब कौन कौन देगा बोलो
अय्याशी में डूबी संसद
लूटे जनधन अब जागो
भ्रष्ट विधायक ऐश करे
क्यों
चीखो अपना हक माँगो
डर कर गीले पीले होते
मंत्री मार भगाओ भी
खतरे में है देश साथियों
जागो जोश जगाओ भी
थर्रा जाये विश्व आक्रमण
करो
हिंद की जय बोलो
लहू माँगती है धरती
अब कौन कौन देगा बोलो
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माँग रही है वीर
प्रसविनी
हत्यारों का शीश
शत्रु गिराकर गया लाश
दो
जाओ गिरा दो बीस
©®¶\¶®©written by SUDHA
RAJR [bijnor)
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