सुधा राजे का लेख :- स्त्री और समाज :- पितृसत्ता और स्त्रीवाद

और जिन घरों में सास ननद
देवरानी जेठानी नहीं होती वहाँ???
और जो अविवाहित लङकियों पर ज़ुल्म
तेज़ाब रेप किडनैप चोरी करके वेश्यालय
बेचना और छल से प्रेम के नाम पर
छोङना होता है वह?? और
जो नन्हीं लङकियों की लाशें जगह जगह
नोची खाई मिलती है वे??
ये "पुरुष पुरुष का दुश्मन कम है??? सबसे
अधिक पुरुषों की हत्यायें युद्ध
डकैती गैंगवार सङक
दुर्घटना किडनैपिंग और
आतंकी वारदातों में होती है???
क्यों नहीं सारे पुरुष एकजुट होकर
अपनी जमात बिरादरी को सुधार लेते?
कम से कम पुरुष तो पुरुष को न मारे??
पुरुष घर में पिता से झगङता है
"नशा शराब बीङी सिगरेट और
दुश्चरित्रता की वजह से
""""अगली बात होती है जमीन और
मकान और
रुपया """"स्त्री की भूमिका तो खुद
""पुरुषों ने लिखी कि "जहँ लगि नाथ
नेह अरु नाते पिय बिन तियहिं तरणिहु
ते ताते """""फिर जरूरी तो नहीं हर
घर में सब भाई राम लखन हों? या सब
पिता 'चरित्रवान और उदार?? अकसर
बहू पर जुल्म दहेज की माँग से शुरू होकर
''नौकरानी बनाकर कैद करने मायके
को पूरी तरह त्यागने तक होता है
''''जो स्त्री विरोध करती है घर तोङू
कहलाती है? ""जबकि ये जिम्मेदारी उस
पुरुष की होनी चाहिये कि वह
उसकी रक्षा करे """ये
टीवी सीरियलों को आम घरों पर लागू
न करें ''उनकी कहानी प्रायः पुरुष
लिखी हुयीं हैं
ब्रह्मण ग्रंथ गृहसूत्र पुराण
स्मृतियों का सहारा लेकर "उत्तर
वैदिक काल से ही "वैदिक कालीन
मातृसत्तात्मकता को ध्वस्त करने के
षडयंत्र चालू हो गये थे जिसे बल
दिया विदेशी आक्रमण के बाद
स्त्रियों के अपहरण बलात्कार और
वेश्या बनाने ने ।अधिक से अधिक पुरुष
पैदा करना अधिक तर घरेलू कार्य
'कूटना पीसना धोना बिलौना छानना फटकना और
पकाना माँजना पीसना जल भरना सब
स्त्रियों पर ""कर्तव्य कहकर लाद
दिये गये "संतान का पिता कौन है इस
बात के निर्धारण हेतु स्त्री के
पुनर्विवाह और विधवा के पवित्रता के
नाम पर हक छीने गये 'कुमारी भोगने
की ललक ने 'स्त्री पर शर्तें
थोपी विवाह पूर्व प्रेम न करने और
पतिव्रता रहने की फिर 'बाल विवाह
कर दिये जाने लगे कि ''कहीं प्रेम न करे
कहीं अंतरजातीय विवाह न करे
कहीं 'विवाहपूर्व माँ न बन जाये '।और
बाहर बलात्कारियों "स्त्री चोरों और
बहलाकर प्रेम में फँसाने वालों का "डर
दिखाकर रक्षा सुरक्षा के नाम पर
स्त्री को """कैद करके पढ़ने और
यात्रा करने और कहीं भी आने जाने तक
से वंचित कर दिया गया "आज "ये
संक्रमण काल उसी फसल का फल है
"क्योंकि दिमाग तो कुदरत की देन है ।
मातृत्व की अतिरिक्त
पीङा मजबूरी और बच्चे
की जिम्मेदारी से उपजे "घर के भीतर
रहने के स्त्री के जननीपन से लाभ लेकर
"युगों से पुरुष छल करता चला गया 'और
स्त्री "सबकुछ जानकर या अनजाने में
"छल "मातृत्व परिवार और के बीच
''बाहरी आक्रमण से बचने को कैद और कैद
से बगावत करके बाहरी आक्रमण
सहती रही घरेलू कलह "गौर से देखें
तो "नशा फिजूलखरची लालची दहेज
लोभी परिजन और स्त्री पर
तानाशाही की पुरुषवादी क्रूरता की देन
है "माना कि 'अनेक घरों में
स्त्रियाँ आपस में झगङतीं है "परंतु "वजह
"कैद कमशिक्षा और बाहर अवसर न होने
की घुटन से शुरू होती है ।न मायके
जाकर रह सकतीं है न "पंद्रह
आदमी की गुलामी करने की दम है "न
पृथक रहे बिना पति बच्चे अपने हो सकते
हैं तब???
पितृसत्ता क्यों है?? क्योंकि बाहर
भेङिये बनकर घूमते पुरुष से बचाने के नाम
पर कैद करके रखी जाती औरतों की हर
आजादी घर में छीन ली जाती है

एक लङकी को छेङने की वजह से
सारा मुजफफनगर जल गया??
तो कितनी लङकियों को कैद मिली?
जल्दी शादी? बलात्कार? और बाद में
पति की निगाह में हीनता!!!!!!!! तो यूँ
कैद घुटन में कोई कैसे "खुश रहे? और
दुखी कैसे सुख बाँटे?

लङके प्रेम की बातें करते है ""लङकी से
होंठ सिलवा दिये जाने की आशा?
पति फ्लर्ट करता है परस्त्री??
पत्नी से सावित्री की आशा?? दामाद
का देवता सा स्वागत?? बहू में बंधुआ
मुफ्त की दासी?

पत्नी ही झगङों की जङ है अगर आप
यही कहना चाहते है तो ""ये
टीवी सीरियलों की भाषा है
""आटा नहीं पिसकर आया मुन्ने की फीस
जमा नहीं 'ननद के बेटे का भात
नहीं गया और बजट खत्म!!!!! सिगरेट
शराब देर रात बाहर रहना और मायके
से तवज्जो न मिलना भाई की ससुराल के
कैदी हालात ""न जाने आम औरत
सहती क्या क्या है गर्भवती तक
को पीटते हैं पुरुष!
रहा सवाल औरतों को दोष न देने
का????तो तरस आता है आप पर कि आपने
नहीं सुना सुख सागर '''अलिफ
लैला ''तोता मैना और "न ही धर्म के
उपदेश पर गौर किया औरत नर्क
का द्वार है माया है 'झगङे की जङ है
और मोह की पिटारी है।"मतलब??
नीयत खराब पुरुष की???परदे करे
औरते??काबू में नहीं चरित्र पुरुष का??
बेची खरीदी नचाई जायें औरते??प्रेम
निभा नहीं सका पुरुष?कुलटा कहलायें
औरतें और हरामी संतान छोङकर भागें
कायर पुरुष??और पतिता कहलायें
औरतें??भेङिया बनकर घूमे पुरुष?और बंद
करके रखी जायें औरतें?कितने इलजाम
तो अभी आपने ही औरत जात पर धर
दिये?एक दो दस बीस पुरुष का कार्य
निजी अपराध??और चंद
औरतों की कमी बेशी का ठीकरा फोङा जाये
पूरी ""स्त्री क़ौम पर???
पिता के घर बेटी होने पर मान सम्मान
के नाम पर स्वावलंबी बनाने री बजाय
"जात बिरादरी देखकर औकात के दहेज से
"""न कि प्रेम से विवाह कर
दिया जाये???? और पति के घर रुपये
कमाने का ताना दिया जाये??
पितृसत्ता क्या है "लङकी बनकर
सोचना।
आज भी जानबूझकर ऐसे हालात घर से
बाहर तक पुरुषों की पूरी संगठित
साजिश का परिणाम है कि लङकियाँ न
पढ़ सकें न खेल सकें न जॉब या बिजनेस करें
"वरन शादी करके बेटा पैदा करके
रोटी पकाये और घर सँभाले,,,, जिस घर
पर न हक न हुकूमत?


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