Saturday 13 August 2016

सुधा राजे की कुछ नज़्में

Sudha Raje 
श्रंखलायें टूटी भी तो कब 
जब पैरों में घाव बन गये 
टूटे पंख अजेय आश के 
मन के मूक दुराव बन गये 
कभी ललक कर गीत हो गये 
कभी हिलक कर भाव बन 
गये 
रह गयी एक कूल कालिंदी 
दूजे गंग प्रभाव बन गय 
यूँ पीङा के गाँव बन गये 
यूँ पीङा के गाँव बन गये 
क्रंदन मौन कहाँ तक ढोता 
हृदय नयन बिन 
कितना रोता 
महाआरती के गुँजन में 
हाहाकार निलय 
का खोता 
छल के पाखंडी परिजन 
तीरथ अक्षय वट छाँव बन 
गये 
एक छोर तीरथ कर पूछे 
दूजे नाविक नाव बन गये 
य़ूँ पीङा के गाँव बन गये 
यूँ पीङा के गाँव बन गये 
©®¶©®¶SudhaRaje
 

2. दुनियाँ डुबो दें आज ये हम 
भी शराब में 

रख्खा ही क्या है इस 
दिले-ख़ाना ख़राब मे 

तू ज़ाम उठा और मैं नक़ाब 
उठाऊँ 

देखें कि नशा ख़ुम में 
छिपा या हिज़ाब में 

तरदामनी पे रश्क़ करें 
आज रिंद भी 

लिपटा है चाँद भी लगे 
भीगे ग़ुलाब में 

नश्शा है वो नशा 
कि उतरने पे औऱ् चढ़े 

साहिब हुज़ूर हाज़िरे-हुस्ने निक़ाब में 

ऐ इश्क़ ज़रा होश तो ले लूँ आये हैं 
मुद्दत के बाद ख़्वाबग़ाह में 
ऱूआब में 

बर्ख़ाश्त कीजिये कि अंज़ुमन में हम नहीं 
आयेगे सुधा आपके ज़लालो ताब में 

©®¶©¶SudhaRaje 
just for change

3. Sudha Raje 
आह ज़िदगी वाह ज़िदग़ी 
जैसे नेक ग़ुनाह ज़िदगी 
इक कहार सा तन मन 
ढोता 
थकती एक कराह ज़िदगी 
हिम्मत ही को खाकर 
पलती 
जलती आतशगाह जिंदगी 
हज़ल कभी तो नज्म अधूरी 
कभी ग़जल बेचाह जिंदगी 
किलक रही चंदा को देखे 
बेटी की परवाह जिंदगी 
बिछुङ गयी निकहत नसीम 
सी एक सहेली माह 
ज़िदगी 
मिली नींद तो चादर 
गीली 
ऐशगाह की चाह जिंदगी 
मजदूरों की भूख अमीरों के 
रोजे जर्राह जिंदगी 
आहें बाँहे राहें छाँहे 
चाहे और पनाह जिंदगी 
जिसे होश है मर मर मारे 
बेहिस लापरवाह जिंदगी 
कागज़ 
की नैया की खुशियाँ 
और नाख़ुदा दाह जिदगी 
सुधा अभी तो आया जीना 
छोङ चल पङी बाँह 
जिंदगी 
©®¶©®¶
सुधा राजे 



No comments:

Post a Comment