सुधा राजे की कुछ नज़्में
Sudha Raje
श्रंखलायें टूटी भी तो कब
जब पैरों में घाव बन गये
टूटे पंख अजेय आश के
मन के मूक दुराव बन गये
कभी ललक कर गीत हो गये
कभी हिलक कर भाव बन
गये
रह गयी एक कूल कालिंदी
दूजे गंग प्रभाव बन गय
यूँ पीङा के गाँव बन गये
यूँ पीङा के गाँव बन गये
क्रंदन मौन कहाँ तक ढोता
हृदय नयन बिन
कितना रोता
महाआरती के गुँजन में
हाहाकार निलय
का खोता
छल के पाखंडी परिजन
तीरथ अक्षय वट छाँव बन
गये
एक छोर तीरथ कर पूछे
दूजे नाविक नाव बन गये
य़ूँ पीङा के गाँव बन गये
यूँ पीङा के गाँव बन गये
©®¶©®¶SudhaRaje
2. दुनियाँ डुबो दें आज ये हम
भी शराब में
रख्खा ही क्या है इस
दिले-ख़ाना ख़राब मे
तू ज़ाम उठा और मैं नक़ाब
उठाऊँ
देखें कि नशा ख़ुम में
छिपा या हिज़ाब में
तरदामनी पे रश्क़ करें
आज रिंद भी
लिपटा है चाँद भी लगे
भीगे ग़ुलाब में
नश्शा है वो नशा
कि उतरने पे औऱ् चढ़े
साहिब हुज़ूर हाज़िरे-हुस्ने निक़ाब में
ऐ इश्क़ ज़रा होश तो ले लूँ आये हैं
मुद्दत के बाद ख़्वाबग़ाह में
ऱूआब में
बर्ख़ाश्त कीजिये कि अंज़ुमन में हम नहीं
आयेगे सुधा आपके ज़लालो ताब में
©®¶©¶SudhaRaje
just for change
जैसे नेक ग़ुनाह ज़िदगी
इक कहार सा तन मन
ढोता
थकती एक कराह ज़िदगी
हिम्मत ही को खाकर
पलती
जलती आतशगाह जिंदगी
हज़ल कभी तो नज्म अधूरी
कभी ग़जल बेचाह जिंदगी
किलक रही चंदा को देखे
बेटी की परवाह जिंदगी
बिछुङ गयी निकहत नसीम
सी एक सहेली माह
ज़िदगी
मिली नींद तो चादर
गीली
ऐशगाह की चाह जिंदगी
मजदूरों की भूख अमीरों के
रोजे जर्राह जिंदगी
आहें बाँहे राहें छाँहे
चाहे और पनाह जिंदगी
जिसे होश है मर मर मारे
बेहिस लापरवाह जिंदगी
कागज़
की नैया की खुशियाँ
और नाख़ुदा दाह जिदगी
सुधा अभी तो आया जीना
छोङ चल पङी बाँह
जिंदगी
©®¶©®¶
सुधा राजे
श्रंखलायें टूटी भी तो कब
जब पैरों में घाव बन गये
टूटे पंख अजेय आश के
मन के मूक दुराव बन गये
कभी ललक कर गीत हो गये
कभी हिलक कर भाव बन
गये
रह गयी एक कूल कालिंदी
दूजे गंग प्रभाव बन गय
यूँ पीङा के गाँव बन गये
यूँ पीङा के गाँव बन गये
क्रंदन मौन कहाँ तक ढोता
हृदय नयन बिन
कितना रोता
महाआरती के गुँजन में
हाहाकार निलय
का खोता
छल के पाखंडी परिजन
तीरथ अक्षय वट छाँव बन
गये
एक छोर तीरथ कर पूछे
दूजे नाविक नाव बन गये
य़ूँ पीङा के गाँव बन गये
यूँ पीङा के गाँव बन गये
©®¶©®¶SudhaRaje
2. दुनियाँ डुबो दें आज ये हम
भी शराब में
रख्खा ही क्या है इस
दिले-ख़ाना ख़राब मे
तू ज़ाम उठा और मैं नक़ाब
उठाऊँ
देखें कि नशा ख़ुम में
छिपा या हिज़ाब में
तरदामनी पे रश्क़ करें
आज रिंद भी
लिपटा है चाँद भी लगे
भीगे ग़ुलाब में
नश्शा है वो नशा
कि उतरने पे औऱ् चढ़े
साहिब हुज़ूर हाज़िरे-हुस्ने निक़ाब में
ऐ इश्क़ ज़रा होश तो ले लूँ आये हैं
मुद्दत के बाद ख़्वाबग़ाह में
ऱूआब में
बर्ख़ाश्त कीजिये कि अंज़ुमन में हम नहीं
आयेगे सुधा आपके ज़लालो ताब में
©®¶©¶SudhaRaje
just for change
3. Sudha Raje
आह ज़िदगी वाह ज़िदग़ी जैसे नेक ग़ुनाह ज़िदगी
इक कहार सा तन मन
ढोता
थकती एक कराह ज़िदगी
हिम्मत ही को खाकर
पलती
जलती आतशगाह जिंदगी
हज़ल कभी तो नज्म अधूरी
कभी ग़जल बेचाह जिंदगी
किलक रही चंदा को देखे
बेटी की परवाह जिंदगी
बिछुङ गयी निकहत नसीम
सी एक सहेली माह
ज़िदगी
मिली नींद तो चादर
गीली
ऐशगाह की चाह जिंदगी
मजदूरों की भूख अमीरों के
रोजे जर्राह जिंदगी
आहें बाँहे राहें छाँहे
चाहे और पनाह जिंदगी
जिसे होश है मर मर मारे
बेहिस लापरवाह जिंदगी
कागज़
की नैया की खुशियाँ
और नाख़ुदा दाह जिदगी
सुधा अभी तो आया जीना
छोङ चल पङी बाँह
जिंदगी
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सुधा राजे
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