कस्तूरी सी प्रीती विदेहि
""""काव्य कथिका"""
समय अहेरी नित ही खोजे वन पशु सुख नादान
धीरे-धीरे हुए प्रेम के सब जंगल वीरान
कुछ खाए,कुछ मार गिराए , कुछ
को रखा वितान
गहन गहनतम से निर्जनतम करते गए प्रयान।
--निर्यात मंदारिन पकड़ नचावे मर्कट रति के पंथ
भाग मधुकरी घर-घर मांगे बांचे आशा ग्रन्थ
धीरे -धीरे छीजे मन-तन-जन निर्गुण पवमान
कुछ छल ने कुछ बल ने मरे कुछ मारे अभिमान।
--इन्हीं वनों के भीतर रहती हिरणी कंचन काय
कस्तूरी मादल कुण्डलिनी सुरभित अनल बसाय
धीरे धीरे मत्त मलय से सुरभित नित्य विहान
कछु खोजे चमड़ी कछु दमड़ी ,
कछु कस्तूरी छान
उन्हीं वनों में रजत काय
जा पहुंचा हिरना एक
प्रणय केलि रति कर किलोल थी हिरनी संग अनेक
धीरे धीरे कंचन हिरनी लुक - छिप देखे गान
रजत हरिण ने देखा रीझा मिलन
चढ़ा परवान।
समय,अहेरी धर्म - धनिक- अनुशासक के आदेश
कस्तूरी कंचन मृग छाला खोजे विजन प्रदेश
धीरे धीरे
मृगा मृगी की प्रीती बनी रसखान
कीरति "वात" सुरभि ले पहुंची मृगया हेतु मचान।
विष-लेपित शर तीक्ष्ण धरे ताके नित
रैना भोर
कलि किसलय तृण यत्र तत्र फैलावे जाल कठोर
धीरे धीरे कंचन हिरनी नित आती बागान
कभी किलकती कभी चरे तृण कभी तके
दिनमान।
"उस रजनी " मृग से मिल
लौटी मृगी कंचना हाय!!!
ताक अहेरी छाती में मारा शर रक्तिम काय
धीरे धीरे श्वाँस थमी औचक ही निकले प्राण
रजत हिरन की छवि नयनों में ह्रदय
लगा विष बाण।
कस्तूरी मृगछाला दोनों बेच अहेरी नगरी
धनिक प्रशासक ने छाला से बनवाई इक खँजरी
धीरे धीरे उस खँजरी पर
कन्या करती गान
कस्तूरी से वस्त्र महकते मृगा चकित
अनजान।
मरण मृगी का जान
गया हूका रोया चिक्कार
प्रीति न करियो -प्रीति न करियो करे
विजन गुंजार
धीरे धीरे मृगी छाल की ढपली की वो तान
कस्तूरी की गंध ह्रदय में गयी हरिण के कान।
विकल मृगा नगरी की ऊँची दीवारों के बीच
सम्मोहित जा पहुंचा कन्या गाती किसलय सींच
धीरे धीरे भूमि गिरा वन
का हिरना नादान
नागरि कन्या चकित देखती रजत हरिण
की शान।
दौड़े प्रहरी निठुर
समाजी बाँधो रे हलकारो!!
ठिठक रोकती करुणा कन्या कहे -"इसे मत मारो"
धीरे धीरे
करुणा बाला मृगा मित्र भये ज्ञान
मृगी छाल की ध्वनि सुनने को नित्य मिलन उद्यान।
मृगा सुने छाला में ध्वनियाँ प्रिय प्रियतम प्रिय प्रीत
कस्तूरी की गन्ध निभावे श्वांस संग की रीत
धीरे धीरे अमर प्रेम का यही मिला वरदान
हिरणा हिरणी हो विदेह नित मिलें व्यथा दालान।
एक कथा ये सत्य कथा मन गुनी सुधा रस गीत
प्रीति अमर है सत्य सदा आखेटक लेती जीत
धीरे धीरे सुधा ह्रदय में गूंजे वो रस गान
प्रीति विदेही अमर अजर है
मृगी मृगा की आन।
कई तके स्वर्णिम मृगछाला मांस कछुक संधान
कोऊ ताके कस्तूरी यौवन कोऊ प्रेम की आन
धीरे धीरे प्रेम अमर है बनी ह्रदय में तान
अश्रु भरे मन कलम लिखे नित सुधा पीर हिय गान
cOPY RIGHT"
समय अहेरी नित ही खोजे वन पशु सुख नादान
धीरे-धीरे हुए प्रेम के सब जंगल वीरान
कुछ खाए,कुछ मार गिराए , कुछ
को रखा वितान
गहन गहनतम से निर्जनतम करते गए प्रयान।
--निर्यात मंदारिन पकड़ नचावे मर्कट रति के पंथ
भाग मधुकरी घर-घर मांगे बांचे आशा ग्रन्थ
धीरे -धीरे छीजे मन-तन-जन निर्गुण पवमान
कुछ छल ने कुछ बल ने मरे कुछ मारे अभिमान।
--इन्हीं वनों के भीतर रहती हिरणी कंचन काय
कस्तूरी मादल कुण्डलिनी सुरभित अनल बसाय
धीरे धीरे मत्त मलय से सुरभित नित्य विहान
कछु खोजे चमड़ी कछु दमड़ी ,
कछु कस्तूरी छान
उन्हीं वनों में रजत काय
जा पहुंचा हिरना एक
प्रणय केलि रति कर किलोल थी हिरनी संग अनेक
धीरे धीरे कंचन हिरनी लुक - छिप देखे गान
रजत हरिण ने देखा रीझा मिलन
चढ़ा परवान।
समय,अहेरी धर्म - धनिक- अनुशासक के आदेश
कस्तूरी कंचन मृग छाला खोजे विजन प्रदेश
धीरे धीरे
मृगा मृगी की प्रीती बनी रसखान
कीरति "वात" सुरभि ले पहुंची मृगया हेतु मचान।
विष-लेपित शर तीक्ष्ण धरे ताके नित
रैना भोर
कलि किसलय तृण यत्र तत्र फैलावे जाल कठोर
धीरे धीरे कंचन हिरनी नित आती बागान
कभी किलकती कभी चरे तृण कभी तके
दिनमान।
"उस रजनी " मृग से मिल
लौटी मृगी कंचना हाय!!!
ताक अहेरी छाती में मारा शर रक्तिम काय
धीरे धीरे श्वाँस थमी औचक ही निकले प्राण
रजत हिरन की छवि नयनों में ह्रदय
लगा विष बाण।
कस्तूरी मृगछाला दोनों बेच अहेरी नगरी
धनिक प्रशासक ने छाला से बनवाई इक खँजरी
धीरे धीरे उस खँजरी पर
कन्या करती गान
कस्तूरी से वस्त्र महकते मृगा चकित
अनजान।
मरण मृगी का जान
गया हूका रोया चिक्कार
प्रीति न करियो -प्रीति न करियो करे
विजन गुंजार
धीरे धीरे मृगी छाल की ढपली की वो तान
कस्तूरी की गंध ह्रदय में गयी हरिण के कान।
विकल मृगा नगरी की ऊँची दीवारों के बीच
सम्मोहित जा पहुंचा कन्या गाती किसलय सींच
धीरे धीरे भूमि गिरा वन
का हिरना नादान
नागरि कन्या चकित देखती रजत हरिण
की शान।
दौड़े प्रहरी निठुर
समाजी बाँधो रे हलकारो!!
ठिठक रोकती करुणा कन्या कहे -"इसे मत मारो"
धीरे धीरे
करुणा बाला मृगा मित्र भये ज्ञान
मृगी छाल की ध्वनि सुनने को नित्य मिलन उद्यान।
मृगा सुने छाला में ध्वनियाँ प्रिय प्रियतम प्रिय प्रीत
कस्तूरी की गन्ध निभावे श्वांस संग की रीत
धीरे धीरे अमर प्रेम का यही मिला वरदान
हिरणा हिरणी हो विदेह नित मिलें व्यथा दालान।
एक कथा ये सत्य कथा मन गुनी सुधा रस गीत
प्रीति अमर है सत्य सदा आखेटक लेती जीत
धीरे धीरे सुधा ह्रदय में गूंजे वो रस गान
प्रीति विदेही अमर अजर है
मृगी मृगा की आन।
कई तके स्वर्णिम मृगछाला मांस कछुक संधान
कोऊ ताके कस्तूरी यौवन कोऊ प्रेम की आन
धीरे धीरे प्रेम अमर है बनी ह्रदय में तान
अश्रु भरे मन कलम लिखे नित सुधा पीर हिय गान
cOPY RIGHT"
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