रही बेइन्तिहां नफरत

रही बेइन्तिहां नफरत उसीसे औऱ् अदावत
भी ',
मगर वो दोस्त जो सबसे अलग
सा था कि याद आए ',
अभी तक हैं ज़ेहन में उसकी ''बातें और
तक़रीरे ',
तकाज़े भी ग़ुनाहों के कि कोई भूल
क्या जाये ',
©®सुधा राज

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