दोहे :तिलक छाप

Sudha Raje
तिलक छाप घंटी बजा
करमाला धर ध्यान ।
सुधा न गयी मन वासना ।
धिक् भगती धिक् ज्ञान ।
दाङी बाढ़ी नाभि लौं
माथे कारिख पोत ।
सुधा न ऊरी सामता
विरथ खुदाई जोत ।
पहिर सफेदी पाँव लौं
धर सलीब कर माल
हृदय विचारत द्वैधता
सुधा कहाँ प्रभु बाल?
गुनत सुनत घोकत सुधा
साँचे सुफल विचार
खोजत रह ग्यौ गुरु हृदय
लखियत पंथ प्रचार ।
सुधा बावरी जौन की
बाकौँ जानत कौन?
ना जंता बोलै सघन
जंता ठानैं मौन
©®सुधा राज

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