Sunday 21 July 2013

सैलाब::कहानी::

Sudha Raje
सैलाब:: कहानी::(Written
byसुधा राजे®©®09-07-2013//­
12:07Pm
++++++++++++
अम्मी ये ज़रीना को समझा लीजिये

यूँ रोज़ रोज़ जब देखो तब
उसका हिन्दुओं के घर
आना जाना ठीक नहीं ।
ज़माना ख़राब है । ख़ून सफेद पङते
देर नहीं लगती ।बाक़ी आप
समझदार हैं।"
मुज़ाहिद ने दस्तरख्वान पर
बिस्मिल्लाह करके चार निवाले
खाये ही थे कि ज़रीना को बाहर से
आती देखकर वह झल्ला सा उठा था।
अम्मी ने सालन परोसते हुये बङे नरम
स्वर में कहा ।
""इस साल इंटर कर लेने दो इसे फिर
घर से निकलना भी बंद करवा दूँगी।
पढ़ाई
का तग़ादा तालीमयाफ्ता लङकी क
तो तुम्हारे फूफीजाद ने
ही लगाया है। हमने तो कह
दिया पेशकश फेर दो मेरी बहिन
का बेटा हर दम तैयार बैठा है अब
भी । ""
आप भी किन नामुरादों का ज़िकर
लेकर बैठ गयीं दुलहिन?
वो हमारी ज़रीना के क़ाबिल
लङका है क्या न घर न तालीम न
तहज़ीब । आपकी बहिन का खयाल न
होता तो यहाँ से वो वो सुनाकर
दफा करते हमलोग कि यार रखते
शब्बन मियाँ।
अबकी बार
ज़रीना की दादी हज्जन
सायरा बङबङायीं । तसबीह
हाथों में ही थामे तखत पर बैठे बैठे
सुहैल को आँखें दिखाकर बोली।
""अरे तूली उसके ही दर्ज़े में पढ़ती है
।उसके पास निजी कमरा है कूलर
पंखा टेबल कुरसी ठंडक और सुक़ून
का माहौल है । वहाँ कोई खलल
नहीं डालता पढ़ने में इसी लिये
चली जाती है । यहाँ तो हर वक्त
गोश्तमंडी बनाकर रखी हुयी है
वो बेचारी इम्तिहान
की तैयारी कैसे करे ।
दादी की डाँट खाकर सुहैल चुप
हो गया । लेकिन दिल में ऐंठन जरूर
रह गयी । धीरे से छोटे भाई ने
कहा """ दादीअम्मी हम
सबको ही टोक रही हैं कि हम
पाँचों भाई ज्यादा शोर
शराबा करते हैं । और आपा को पढ़ने
नहीं देते। लेकिन
अपना नहीं कहतीं कि सारा सारा
पान चबाती मुहल्ले भर
की बूढ़ी औरते यहीं जमा होकर
टी वी देखती रहतीं हैं । ऊपर से
अम्मी और चाची के कपङे और मसाले
कुटते रहते हैं तो कभी सिलाई मशीन
घरघराती रहती है ।
------**------
तूली और ज़रीना जैसे ही स्कूल वैन से
उतरीं सुहैल बाईक लेकर आ
गया जरीना भाई के
पीछे बैठ गयी और
तूली हमेशा की तरह रिक्शे में चढ़
गयी।
सुहैल ने तूली को घूरकर
खा जानेवाली नज़रों से देखा ।
तूली ने हमेशा की तरह हुँह
की उपेक्षा का भाव लाकर मुँह
टेढ़ा मेढ़ा किया।
बाईक भागी जा रही है और
रिक्शॉ पीछे छूट गया ।
""बाज़ी ये आपकी सहेली तूली है न
एकदम बक़वास लङकी है । लङकों जैसे
कपङे पहनती है और एकदम
चिङियाघर से भागी हुयी लगती है
। कोई तमीज़
की सहेली नहीं मिली आपको!! शकल
तो देखो । भूतनी की तरह खा जाने
को तैयार।""
सुहैल की बङबङ अब रास्ते भर
नहीं रुकने
वाली ज़रीना जानती है।
वह हँसी दबाती हुयी बमुश्किल
बोल पाती है ।
क्या करूँ सबके घर दूर दूर हैं और सब
अपने अपने भाईयों के साथ जाती हैं
या पापा चाचा वगैरह के ।
तूली का भाई तो अभी दस साल
का बच्चा ही है ।
पापा कलकत्ता रहते हैं । तो जब
तक कोई दूसरी क़ाबिल
सहेली नहीं मिलती इसी से काम
चलाना है।"
ज़रीना जानती है सुहैल आजकल
इज़्तमा और ज़मातों में ज्यादा जाने
लगा है।
अब्बू ने भी बीमा पॉलिसी बंद
करादी । ब्याज़ पर बैंक में
पैसा रखना बंद करके मुसलिम फंड में
रखना शुरू कर दिया ।
ज़रीना को बुरखा पहनना पसंद
नहीं मगर स्कूल के अलावा हर ज़गह
अब बुरखा पहनना ही पङता है ।
उन सबको लङकियों का पढ़ना बिन
दुपट्टे घूमना और ज्यादा एक्टिव
रहना पसंद नहीं।
""गरमी लगे या घबराहट अब
तो पहनना ही पङेगा "
चाचा ने साफ साफ कह दिया।
तूली हमेशा की तरह
रिक्शा रोककर घर के मोङ पर से
सब्जी खरीदती है और डेयरी से दूध
की थैली भी।
""माँ आज सिंघङ के कोफ्ते
बनाना ज़रीना की पसंद के बेसन
वाले"
बना तो दूँगी तूली पर कान खोलकर
सुन ले । हम ठहरे बिना लहसुन
प्याज की खाने वाले वैष्णव और और
वो तेरी सहेलियाँ ज़रीना और
नमीरा खाती हैं माँस मच्छी अंडे ।
बस मेहरबानी करके उन
लोगों को क्रॉकरी घर वाली मत
देना मैं नया सेट लायी हूँ
तेरी माँसाहारी सखियों के स्वागत
को खाओ पिओ और माँज धोकर
आलमारी में रख देना ।
माँ!!!
ज़रीना और नमीरा मेरे साथ स्कूल में
भी तो खातीं हैं!! वैसे ठीक है आपने
बता दिया मैं खयाल रखूँगी ।
तूली की माँ को ज़रीना नमीरा ही नहीं
सहेलियाँ बेहद पयंद हैं । वे आये दिन
नयी नयी चीजें बनाकर
खिलाती भी हैं । बस बहुत
सादगी से बहुत सात्विक आहार
की वजह से माँसाहारियों से
हिचकती हैं बरतन साझा करना बस

बरसात का मौसम आ चुका है और
पूरा इलाका पानी से सराबोर है ।
********************-**-
*****
आधी रात को ये कैसा शोर है!!!
घरों में लोग जाग पङे ।
बैराज पर की तोप से फायर
किया गया है । या ख़ुदा रहम!!
ज़रीना नहीं समझ पा रही है
अम्मी इतनी क्यों बौखला रहीं हैं ।
घर के सब बङों ने फटाफट सामान
बाँधने शुरू कर दिये है । अब्बू राशन
और अनाज की बोरियाँ क़रीब
ही सबसे ऊँचे टीले पर बने
चौधरी हरवंश के तिमंजिले पर रखने
जा रहे हैं । वहाँ से आकर हर
बता रहे है
-""पूरा इलाका घुटनों भर गया ।
सब का सामान चौधरी के तिमंजिले
में नहीं
आ सकता ।
कपङे उठा लो फर्नीचर रस्सियों से
बाँध दो खिङकियों से ।
सुहैल की अम्मी तबाही आ गयी हम
बर्बाद हो गये ।""
ख़ुदा ख़ैर करे बच्चों को लेकर
निकलो बाहर
सरकारी गाङी खङी है ।
अपना खयाल रखना हम सब बाद में
आते हैं ।""
तभी तेज सायरन के साथ मस्जिदों से
ऐलान होने लगा ।
"""""""ज़ान बचाईये हज़रात!!!
सैलाब आ चुका है । बैराज का फाटक
खोल दिया गया है पानी पंद्रह
मिनट से पेश्तर कस्बे में भर
जायेगा । जो जहाँ जिस हाल में
कस्बे से बाहर निकल कर शहर के
स्कूलों में पहुँच जायें """
अचानक
अँधेरा छा गया बिजली ध्वस्त
हो गयी । ट्रांसफार्मर फुँक गया ।
और सप्लाई काट
दी गयी वरना करंट फैल जाता ।
लोग भाग रहे हैं अंधाधुंध ।
ट्रैक्टरों बैलगाङियों कारों और
पैदल जहाँ तक पानी में चलना संभव
है ।
आसपास के शहरों गाँवों के
रिश्तेदारों को फोन लगाये जा रहे
हैं मदद भेजो ।
चीख पुकार और रोने की आवाजों के
साथ बारिश और बिजली की कङक
तङक दहशत ही दहशत ।
पानी की दहशत । पानी बिलों में
भर जाने से बाहर निकल कर तैरते
साँप बिच्छुओं जहरीले
कीङों की दहशत। अपनों से बिछुङ
जाने की दहशत ।
अपना बसा बसाया तिनके तिनके
उमर भर जोङा घर और गृहस्थी के
बहने टूटने चोरी होने और ढह जाने
की दहशत । डूबकर मर जाने
की दहशत ।
लोग करीब के शहर के स्कूल पहुँच
तो गये लेकिन दस पंद्रह
कमरों का स्कूल तत्काल
बरामदों सहित भीङ से भर गया ।
स्कूल के प्रांगण में गाय भैंस बैल
बकरियाँ और मुर्गियाँ डेरा जमाये
हुये हैं । हर तरफ गीले कपङे पहने
लोग आने वाले जत्थे की तरफ दौङकर
देखते हैं उनके अपने कौन कौन आये ।
ऑफिस में एस डी ओ साहब और
महकमा जमा है प्रिंसिपल और
शिक्षक चाय नाश्ते से इंप्रेशन
जमाने में लगे हैं । कुछ लोगों के
रिश्तेदार आसपास से आ आ कर
गाङियों में उनको ले ले जा रहे हैं।
इसी बीच कुछ पत्रकार ठसे फिर रहे
हैं और अचानक भीङ में से दो चार
युवकों ने कलेक्टर पर पत्थर
चला दिये । वह अभी तक बाढ़
की विभीषिका की रिपोर्ट केंद्र
और
राजधानी को देना नहीं चाहता ।
ना ही नावें मँगा रहा है
करीबी महानगर में पी ए सी है और
सामाजिक कार्यकर्तागण राशन
पकवाने कपङे जुटाने के इंतज़ाम में लग
गये हैं ।
सुहैल नहीं दिख रहा बङी बी!!
दादी ने घबराकर बहू से पूछा ।
सब के सब ट्रैक्टर के अंदर बैठे हैं ऊपर
से बरसाती काली पन्नी तान
रखी है । सब भीगे हुये हैं और भूखे
भी ।
कस्बे में पानी पंद्रह फीट तक भर
चुका है । सबके
घरों की पहली मंज़िल डूब चुकी है ।
जिनके घर दो मंजिले तिमंजिले हैं बचे
खुचे लोग राशन कपङों गहनों समेत
उनके घरों की छतों पर जा बैठे हैं ।
प्लास्टिक की बोरियाँ छाते और
टीन सब नाकाफी हो रहे हैं ।
माचिसें भीग गयी हैं
बैटरियाँ डाऊन हो चुकीं हैं तेज
हवा पानी की मूसलाधार के साथ
घुप्प अँधेरा । औरतें रो रहीं हैं बच्चे
चीख रहे हैं । नौजवान खाट और
छप्पर से लकङियाँ रस्सियाँ जुटाकर
बेङे बना रहे हैं । बेङों पर सामान
राशन कपङे और बच्चों को तैराकर
खुद पानी में भाला लाठी लेकर
बहती कूङियों गंदगियों और
साँपों से जूझते आगे बढ़ रहे हैं ।
तभी भरभरा के एक दोमंजिले
का लिंटर ढह गया ।
छत पर चढ़े लोगो के अचानक नीचे आ
गिरने से चीखपुकार मच गयी । लोग
कमजोर मकानों से दूर भाग रहे हैं ।
शहर से अब तक कोई मदद
नहीं आयी ।
अलबत्ता कराबी गाँवों के
किसानों ने जहाँतक संभव है वहाँतक
ट्रैक्टरों को ट्रेन की तरह कतार में
परस्पर बाँधकर लगा रखा है । लोग
पहिये के टायरट्यूबों और बाँस फूस के
बेङों ले अगर ट्रैक्कटर तक पहुँच
जा रहे हैं तो कई ट्रालियाँ फलाँगते
हुये आखरी ट्राली में भरकर शहर
भिजवाये जा रहे हैं वहाँ डंलप और
बैलगाङियाँ भैंसा गाङियाँ रब्बे और
साईकिले लगा रखी हैं
समाजसेवी लोगों ने । रात
बीती जा रही है । सब बिछुङते
जा रहे है । बिना सुने कोई
भी मददगार
किसी को भी कहीं भी भेज दे रहा है
। कुछ लोग कस्बे को चोर लुटेरों से
बचाने को पहरा देने रुके हैं । न आग
है न बिजली न रौशनी । न खाना ।
पानी में बहकर पेङ तरबूज खरबूज आ
रहे है जिसको जो हाथ लगता है
खा रहे हैं ।
प्यास से परेशान लोग नल तो सब
डूब गये कुँयें भी । हर तरफ पच्चीस
फीट से पंद्रह फीट तक
पानी भरा है । आसमान की तरफ
मुँह खोलकर पानी पी रहे हैं ।
सद्यः प्रसूता माँयें गीले
कपङों काँपती हुयीं बच्चों को शरीर
से चिपकाये भीगने से बचाने
की नाकाम कोशिश कर रही है।
तभी पता चला किसी की बहू ने बेङे
पर बच्चे को जन्म दिया । और
वहाँ तक सब कपङे भेजने
को किसी बहादुर की तलाश में है ।
बेङे पर स्त्री का पति नहीं है
बूढ़ी सास और बालिका ननद है
जो डंडे के सहारे बेङा किसी किनारे
ले जाने की कोशिश में थीं ।
पति वापस तैरकर लौटा है कपङे और
छाया जुटाने । छतों से औरतों ने
पोटली प्लास्टिक के कट्टे में भरकर
सामान फेंका है और पति थक चुका है
तैरकर मगर जा रहा है वापस
किसी की दी हुयी एक
लंबी तख्ती पर सामान रखकर डंडे से
तख्ता तैराता हुआ ।
तूली!!!!
तूली अब क्या होगा बेटा?
निचली दोनों मंज़िलों में पानी भर
चुका है ।
माँ!!
घबराने से क्या होगा आप भाई
को लेकर सबसे ऊपर वाली मंजिल पर
पहुँचो हो सकता कोई मदद
को दिखाई दे तो बुला लेना । मैं
जरूरी सामान टांडों पर चढ़ाने
की कोशिश करती हूँ ।
तीनो घबराये हुये प्राणी ईश्वर से
मदद माँगने लग गये ।
मगर वहाँ मदद नहीं नाक मुँह बाँधे
मछली पकङने वाली डोंगी पर
सवार । प्लास्टिक के कपङों से ढँके
चार प्रेत पहुँचे ।
बाहरी चारदीवारी से लटक कर
एक छत पर चढ़ गया ।
दो डोंगीनाव में रुके रहे
दूसरा भी चढ़ गया ।
तूली की माँ चीखी । नक़ाब पोश ने
मुँह भींच लिया । दूसरे ने झपट कर
दस साल के बेटे के गले पर साँस
नली पर तेज धार दार चाकू रख
दिया ।
विवश आतंकित माँ ने सारे गहने
उतार कर नक़ाबपोशों के सामने फेंक
दिये । और बच्चे
की जिंदग़ी की भीख माँगने लगी ।
भाग-2-अगले पृष्ठ पर
Jul 9
Sudha Raje
लङकों ने छत से नीचे
सीढ़ी उतरी और तीसरी मंजिल के
कमरों से हल्के और कीमती सामान
उतारने शुरू कर दिये । खिङकी से
आँगन में झाँका तो दूसरी मंजिल
खिङकियों तक डूबी थी । एक
लङका सीढ़ियों की तरफ
बढ़ा भी तो पहली चार
सीढ़ियाँ डूबी देखकर डरकर वापस
आ गया पानी अब भी बढ़
रहा था रफ्तार हालांकि कम थी।
तूली अब भी दूसरी मंजिल पर
घुटनों तक पानी में किताबें राशन
और जीवनोपयोगी सामान
पॉलिथीन में पैक करने में
लगी हुयी थी । और उठा कर
टाड़ों पर दुछत्ती पर और पंखे कुंडे
खूँटियों से लटकाने में लगी थी ।
भारी फरनीचर छोङकर लगभग
सारा जरूरी सामान उसने पैक करके
टाँग दिया था । और अब माँ और
भाई के लिये चाय बना रही थी ।
किचिन सेंकेड फ्लोर पर था ।
तभी बाहर सङक की तरफ
खुलती किचिन की खिङकी से
समानान्तर एक लाश तैरती निकल
गयी । फिर कुछ साँप और टॉर्च
जलाये डोंगी पर बैठे नकाबपोश
दिखे ।
तूली का तेज दिमाग सरसराहट से
भर गया ।
ये लोग छत की तरफ देख रहे हैं मतलब
माँ और भाई खतरे में हैं और वहाँ इनके
साथी पहुँच चुके हैं ।
तूली ने गौर से आहट ली ।
तीसरी मंजिल पर प्लास्टिक के
नागरा जूतों की आवाजें सुनी । उसने
अंदाजा लगाया चार पाँच लोग
होगें । वह अगर जाती है तो???
युवा लङकी और सैलाब में अज्ञात
लुटेरे।
क्या करे । माँ भाई की कोई आवाज
नहीं आ रही ।
मोबाईल अब भी जेब में था । उसने
एस ओ एस मैसेज किये । मैसेज हैल्प
ब्रॉडकास्ट किये ।
ज़रीना को रिंग किया । अंत में
सुहैल का नंबर याद
आया जो ज़रीना ने
लिखवाया था इसलिये कि लौटते
वक्त सुहैल कभी कभी देर से बाईक
लाता था तो उसे रिक्शे से जाने से
तूली को रोकना पङता था ।
तूली तो रुक जाती लेकिन रिक्शे
वाला बङबङ करता था। नंबर
इतनी बार लगाया कि याद
हो गया ।
सुहैल ने फोन उठा लिया ।
कहाँ स्वीमिंग की जा रही है
बङी बी!!!? आज
तो नहीं ला सकता बाईक । डूब कर
मर गयी वो तो ।
सुहैल ने जैसे ज़ख्मों पर नमक
छिङका ।
तूली ने दाँत भींचे डाँटते हुये
सारी बात कही ।
उधर से सन्नाटा छा गया ।
जबकि वह बोलती जा रही थी ।
शायद बैटरी खत्म हो गयी होगी ।
तूली ने चार पाँच चाकू
मिर्ची पाऊडर और हेयरस्प्रे । जेब
में डाला । एक बङा सा लोहे
का रॉड लेकर बे आवाज़
तीसरी मंज़िल
की सीढ़ियाँ चढ़नी शुरू की ।
आखिरी सीढ़ी पर दीवार से चिपक
कर बैठ गयी । तो देखा दो लङके
खाना खा रहे हैं । जो उसने बचाकर
ऊपर लाकर रख दिया था । गरम
चाय एक बंद टँगने वाले कंटेनर में
लटकाये तूली ने जेब से
मिरची निकाली और पीछे से जाकर
लङकों की आँखों में झोंक दी ।
लङकों ने बाज की तरह झपट कर
तूली का हाथ पकङ लिया और
आँखों की पीङा से चीखपुकार करते
हुये उसपर लात घूँसे मारते टूट पङे ।
एक लङके को कम
ही मिरची लगी थी उसने तूली के
कपङे खोलने की हरक़त की और
भयानक इरादे से उसे जकङ कर नीचे
गिरा लिया।
एक हाथ में अब भी पकङा गरम चाय
का डिब्बा तूली ने खोला और एक के
मुँह पर उछाल दिया । वह फर्श पर
गिर कर बिलबिलाता चीख पुकार
मचाने लगा । दूसरा अंधे साँड
की तरह तूली को खोज रहा था ।
तूली ने जेब से चाकू निकाल कर
पूरी ताकत से उसकी जाँघ में घोंप
दिया ।
वह छत की तरफ भागी और कमरे के
दरवाजे बंद कर दिये ।
माँ और भाई को बाँध
दिया था दुष्टों ने । तूली ने
दोनों को खोला और रो पङी ।
चाय फेंक दी थी और
खाना उसी कमरे में पीछे बंद था ।
छत से चुपके से झाँका डोंगी अब
भी दूसरी मंजिल की खिङकी से
सटी तैर रही थी । तूली ने आस पास
नजर दौङाई । पिछले साल के मकान
के फर्श की टूटी फूटी टाईल्स और
कुछ अद्धे ईँटों के पङे थे एक कोने में ।
उसने कुरते की झोली सी भरी और
एक साथ पूरी ताकत से डोंगी पर
बरसा दिये ।
अचानक आयी इस आफत के लिये
नकाबधारी लङके तैयार नहीं थे ।
डोंगी उलट गयी । लङकों को चोटें
लगी । मगर वे तैरकर भाग निकले
डोंगी अब भी वहीं उलटी तैर
रही थी ।
तूली ने आसमान की तरफ देखा बादल
छँट गये थे और दशमी का चाँद चमकने
लगा था ।
वह आर्त्तनाद सा करते हुये
चीखी बचाओ!!!!!!!!!!!! मदद!!!!!!!!!
हैल्प!!!!!!
कहीं दूर तक कुछ भी नहीं था ।
सुबह की प्रतीक्षा के सिवा और
कोई उपाय नहीं था ।
कमरे से चीखने और थपथपाने
की आवाजें बंद हो गयीं थीं ।
माँ बेटे चिपककर एक कोने में आँखें मूँदे
पङे थे । तूली ने रोना शुरू कर
दिया । पूरा दिन पूरी रात से वह
लगातार मेहनत कर रही थी ।
एक टूटे स्टूल पर सिर रखकर उसने
प्रार्थना में आखें बंद कर लीं ।
भोर हो गयी आज न
अज़ानों की आवाजें थीं न
घंटा आरती माईक । वह चौंक कर
उठी । सामने सुहैल बैठा था फर्श
पर पूरी तरह भीगा ।
तुम कब आये?
अभी जब तुम चैन से जहाज के सपने देख
रहीं थीं ।
कैसे आये??
ट्रैक्टर की ट्यूब से ।
सारी रात भटकता रहा मैं मुझे अँधेरे
में कुछ दिख ही नहीं रहा था ।
अभी बस आधा घंटे पहले चाँद चमकने
लगा तब दिशाओं का पता चला
चलो
कहाँ?
पता नहीं मगर ये जगह सुरक्षित
नहीं । बाँध से पानी और
भी छोङा जा सकता है ।
तुम कहाँ थे??
हम सब बङी मस्जिद में इकट्ठे हैं ।
वहाँ और भी तमाम औरतें हैं ।
ये लो दो बुरके लाया हूँ चुराकर
किसी तरह पहन लो ।
क्यो मगर??
सवाल मत करो तूली
और हाँ कहीं कुछ भी बोलना मत
याद रखना तुम सदमे हो एक
बाढॉ पीङित औरत ।
तूली को माँ को कुछ
भी नहीं समझाना पङा । वे कई
दशक पहले बाढ़ झेल चुकी थी । कम
या ज्यादा पर तूली डर
रही थी एक मुसलिम लङका ।
दोनों ट्यूब पर
बँधी रस्सियों को पकङकर
तीनों बैठ गये ।
आगे डोंगी बह रही थी जिसे सुहैल ने
पकङ कर खींचा और पानी में उतरकर
सीधा किया । सब आराम से मुसलिम
बस्तियों में तैर रहे थे । जगह जगह
पशु मरे पङे थे । कपङे और
कूङा फरनीचर पङा था । इस इलाके
से कभी दिन के उजाले तक में
नहीं गुजरी तूली डर इतना था ।
डोंगी बङी मसजिद के पास पहुँचने से
पहले ही । ट्यूबों पर सामान
बटोरते कुछ लङकों ने सुहैल को रोक
दिया । कहाँ जा रहे हो कौन है?
मेरी मंगेतर और सास है । कल
ही आयीं थीं आज मुसीबत में फँस
गयीं ।
लङके हो हो हो करके हँस दिये ।
बढ़िया वस्ताद!!
पूछ लेना कहीं डर कर
मँगनी तो नहीं तोङ देंगी ।
आओ जल्दी छोङके फिर चलते हैं कुछ
धंधेपानी की जुगाङ पर ।
तूली अब बुरके में थरथर काँप
रही थी डर ठंड और भूख ने
तूली की हालत बिगाङनी शुरू कर
दी थी ।डोंगी मसजिद से आगे निकल
गयी । तब तूली ने पूछा हम
कहाँ जा रहे हैं?
पता तो मुझे भी नहीं तूली बस इस
खतरनाक जगह से तुम
सबको निकालना चाहता हूँ ।
मेरा परिवार
भी पता नहीं कहाँ किसके कैंप में है
।हैली कॉफ्टर!!!!
इतनी देर में पहली बार
मुन्ना बोला ।
पैकेट गिरे मगर दूर ।
सुहैल ने फिर भी दो पैकेट उठा लिये

टॉर्च दवाई और
सूखा खाना पानी का पाऊच।
चारों ने
थोङा थोङा लिया बाकी बचा लिय
डोंगी किनारे लगी ।
वहाँ जहाँ कभी स्कूल था ।
सैकङों लोग पङे थे बेघर और लाचार

सबने ने उतर कर । कैंप पर
खोजना शुरू किया । थोङी ही देऱ
में सुहैल का परिवार मिल गया ।
लेकिन अब्बू चाचा और
दादा का पता नहीं था ।
वे लोग घर की सामग्री बचाने
को कस्बे में रूके थे ।
सुहैल तूली और ज़रीना ने
कपङों को सिलना शुरू किया । और
एक तंबू सा ट्रैक्टर पर तान
लिया । लोग अफरा तफरी में थे ।
गीले बुरके निकाल कर सूखने डाल
दिये थे । ज़रीना की अम्मी ने
खाना निकाला ।
बहिन जी कुछ खालो!
तूली की माँ हिचकिचाई
जरीना ने तूली की तरफ देखा ।
वहाँ बरतन कहाँ थे कुछ माँडे अचार
ही रख पायीं थीं ।
तूली ने जेब से रूमाल निकाला एक
बङी सी रोटी रखी और खानी शुरू
कर दी । तूली की माँ ने
भी शुक्रिया कहा और
खाना खा लिया ।
रात होनी थी सो हो गयी ।
कलेक्टर साब आये एक एक प्लास्टिक
शीट और समाज सेवियों के बने खाने
के पैकेट ही शाम तक की मदद रहे ।
रात को तूली की नींद
खुली देखा कुछ लोग ट्रैक्टर के
चारों तरफ मँडरा रहे हैं ।
उसने सबको चौकन्ना कर दिया ।
पाँच औरते पाँच बच्चे एक युवक सुहैल
निहत्थे । दूर पुलिस वाला बैंच पर
ढाबे के बाहर लेटा डंडा लिये
सो रहा था ।
स्कूल के भीतर लोग अब भी बाते कर
रहे थे लेकिन सङक किनारे मंदिर के
मेला मैदान में खङे ये वाहन अँधेरे में
डूबे थे ।
सुहैल ने ट्रैक्टर स्टार्ट करके
भगाना शुरू कर दिया । स्कूल
की तरफ जो एक फर्लांग
की दूरी पर था ।
पाँचो साये ताबङतोङ वार करने
लगे सुहैल के हाथों पर पीठ पर ।
रफ्तार नहीं छोङी उसने और स्कूल के
फाटक के भीतर ट्रेक्टर ले आया ।
उतर कर फाटक बंद किया और
वहाँ पुलिस को सब खबर की ।
रात में वहाँ पेट्रोमैक्स लेकर
कॉम्बिंग की कोई नहीं मिला ।
बाढ़ उतर गयी ।
लोग घरों को लौटे । लुटे पिटे
परिवार बसने लगे ।
कुछ दिन बाद तूली के परिवार
को थाने बुलाया गया । सुहैल
को साथ ले गयी तूली ।
इन लोगों को पहचानती हो?
ये दोनों बेहोश घायल पानी में पङे
तुम्हारे घर से बरामद हुये थे ।
आँखों की मिरचे धोने सीढ़ियों पर
गये और फिसल गये ।
इनको हमारी टीम ने
बचाया घरों की तलाशी में ।
नहीं सर!!!
ये चोरी करने आये थे । जान बचाने
का मेरे पास कोई रास्ता नहीं था।
मगर मैं पहचानता हूँ सर!!
ये मेरे मुहल्ले के छँटे दादा है और वह
जाँघ पर पट्टी बाँधे
बैठा मेरा तयेरा भाई है। इन
लोगों ने और भी चोरियाँ की ।
तभी तूली की नजर थाने के बीच
मैदान में नीम तले शान से बैठे पाँच
लोगों पर गयी ।
ये यहाँ क्या कर रहे हैं?? सर!!
ये लोग मेला ग्राउण्ड में चल रहे
राहत कार्यों के स्वयम् सेवक हैं ।
एक संस्था भी चलाते हैं
नारी निकेतन।
बे सहारा लङकियों के पुनर्वास
की।
यहाँ से राहत सामग्री लेने आये हैं
जो थाने की कस्टडी में हैं ।
होगा सर!!
परंतु ये वही पाँच लोग हैं जो उस
रात मुझे और ज़रीना को उठा ले
जाने और ट्रेक्टर पर
बङा मोटा माल मिलकर लूटने
का प्लान बना रहे थे ।मैंने साफ
देखा एकादशी के चाँद में फिर
ट्रैक्टर की रोशनी में । मुझेऔऱ
जरीना को तो लगभग खींच
ही लिया था ।
इनको मालूम था कि वहाँ मुसलिम
परिवार रूके हैं मेला ग्राउंड में ।
वो है लंबा तगङा गोरा सा अधेङ
वो मेरे सगे चाचा हैं ।
जिनको पता नहीं था कि बुरके में
मम्मी और मैं हूँ मैं हमारे घर से
चौथा घर इनका है । हम बगिया में
मकान बनाकर रहने लगे चार साल से
इन्होनें हमें बाप की तरह पाला है
। मगर उस रात कह रहे थे
लङकियों को लेकर सीधे अड्डे पहुँच मैं
यहीं रहकर हाल चाल लूँगा तीन
पाँच बजे सुबह तक ।
सुहैल नें सैकङों डंडे खाये फिर
भी स्टेयरिंग नहीं छोङा ।
ये न होता तो????
हम तो एक हफ्ते से इन लोगों के
ही घर रह रहे है सर ।
हमारे तो घर में अब
भी पानी भरा है ।तभी सुहैल
बोला ।
हाँ साब सैलाब में सब बह गया ।
दबी छुपी डर की गठरियाँ भी ।
बाज़ी!!!!!रो मत
बरबाद तो सभी हुये ।
पर मैं आपकी हिम्मत को सलाम
करता हूँ । आप सचमुच भूतनी हो।
पगला!!!
बहिनों के नाम बिगाङना कब
छोङेगा??
जब आप मुझे
कठमुल्ला कहना छोङोगी ।
अब नहीं कहूँगी मेरे छोटू!!
तूली हिलक कर रो पङी ।
घऱ आकर
सुहैल जरीना से बोला ऐ नज़ाकत
बानो ।
हमारी तलवारतूली बाज़ी से कुछ
तो सीख लो।©®¶
Jul 9

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