भारतीय संस्कृति की औरतें और उनके अधिकार
1. कितनी औरतों के नाम है स्थायी संपत्ति???????
मकान???
खेत
बाग
बगीचे
मशीने
कार
बस
ट्रक
और
कितनी महिलायें कर सकती है
अपने स्त्रीधन का अपनी मरजी से प्रयोग
?????
अभी
इसपर बवाल होने वाला है
क्योंकि
सवाल है
संविधान में दिये गये अधिकार कितने खोखले हैं
स्त्री
किसी घर में जन्म लेती है
और पराया धन कहकर दया के साथ पलती है
और प्यार?????
वो परिवार के माहौल पर निर्भर है
आज भी देश के अधिकांश घरों पर मिट्टी चढाते गोबर लीपते पर्दे तस्वीरें लगाते हाथ
लङकियों के है
और उन्ही लङकियों को कङक और मधुर तानो मे बार बार हक बेदखल कह दिया जाता है
नन्ही सी जान कुछ समझे या नही लेकिन
भाई बहिन के बीच अघोषित स्वीकृति साफ समझ में आती है
घर भैया का
और मैं तो एक दिन पता नही कहाँ जाने वाली हूँ
फिर भी
दमकती रसोई
और रंगोली कम नही होती
क्यों????
ये स्त्री की प्रकृति है
कमाई के ताने बात बात पर खाने वाली माँ
चुपचाप
दाल सब्जी तेल कपङों में कुछ ऐसी बचतें करती चली जाती है कि
छह के खर्चे में बारह का खर्च चल जाता है
जादू
देखने जैसा है
एक ऐसा घर जिसमें एक भी स्त्री नही
और एक ऐसा घर जिसमें स्त्री है
बाबा की दवाई पापा का कोट टाँगना दादी का गरम पानी भैया के पराँठे भतीजे का जन्मदिन सब याद रखने वाली
लङकी
का कुछ भी नहीं उस घर में
और दर्दनाक पहलू ये कि उसे जताया भी जाता है
मेरा दावा है कि अधिकांश लङकियाँ इसी ऊहापोह के कारण कैरियर बदलने या रोकने या अवांछित जॉब चुनने पर विवश होती हैं
एक ऐसा व्यवसाय जिसमें लंबी पहचान समय अनुभव को कार्य की सफलता से जोङा जाता चुनने वाली लङकियाँ सफलता के शिखर पर खङी होकर जैसे अचानक
शून्य पर आ जाती हैं
कोई
नही तौल सकता कि क्या खो दिया
हर तरफ नमस्कार श्रद्धा और प्रशंसा के भाव
केबदले
किसी मामूली से आयोजन की पिछली कुरसी पर दर्शक की तरह बैठकर ही
ये तकलीफ़ महसूस की जा सकती है
जो आयु बनने की है वही सब खोने की
और जब आपको फुरसत मिलती है नयी दुनियाँ के चक्रव्यूह से सोचने की
लोग आपको भूल चुके होते हैं
और आपकी हर बात पर चकित होते हैं
ये आपने लिखा????
संपत्ति
का हाल विवाहोपरांत भी
कुछ नही बदलता
जरा सी चूक और ज़वाब कोई भी कह देता है
यही
सिखाया तेरी माँ ने??
ये तेरे बाप का घर नही
निकल जा मेरे घर से
जा चली जा
ऐसा तेरे घर में होता होगा
हमारे यहाँ ये सब नही चलेगा!!!
तेरे खानदान की औकात ही ऐसी
बाप का माल समझा क्या
गजब
अरे
उस घर में तो एक एक दिन पराये घऱ की अमानत सुन सुन कर बिताया
कुलदेवी देव पूजा
मैर मायने में खूँट ।
में लङकी को अलग कर दिया
और
ये खेत घर मकान बाग भी
किसके है
जब मायके जाती तो
सब कहते """फलाँ वाली दीदी बुआ"""ससुराल में सब कहते ""वहाँ वाली बहू चाची भाभी""""
फिर
क्या है उसका खानदान??
भ्रमित
वो मायके में ससुराल के ढींग
ससुराल में मायके की बखान करती रह जाती है
ताकि कोई उसे
बिना पीठ का ना समझे
औऱत घर घऱ करती है
बेघर
कानून से क्या दिल मानता है?
मकान???
खेत
बाग
बगीचे
मशीने
कार
बस
ट्रक
और
कितनी महिलायें कर सकती है
अपने स्त्रीधन का अपनी मरजी से प्रयोग
?????
अभी
इसपर बवाल होने वाला है
क्योंकि
सवाल है
संविधान में दिये गये अधिकार कितने खोखले हैं
स्त्री
किसी घर में जन्म लेती है
और पराया धन कहकर दया के साथ पलती है
और प्यार?????
वो परिवार के माहौल पर निर्भर है
आज भी देश के अधिकांश घरों पर मिट्टी चढाते गोबर लीपते पर्दे तस्वीरें लगाते हाथ
लङकियों के है
और उन्ही लङकियों को कङक और मधुर तानो मे बार बार हक बेदखल कह दिया जाता है
नन्ही सी जान कुछ समझे या नही लेकिन
भाई बहिन के बीच अघोषित स्वीकृति साफ समझ में आती है
घर भैया का
और मैं तो एक दिन पता नही कहाँ जाने वाली हूँ
फिर भी
दमकती रसोई
और रंगोली कम नही होती
क्यों????
ये स्त्री की प्रकृति है
कमाई के ताने बात बात पर खाने वाली माँ
चुपचाप
दाल सब्जी तेल कपङों में कुछ ऐसी बचतें करती चली जाती है कि
छह के खर्चे में बारह का खर्च चल जाता है
जादू
देखने जैसा है
एक ऐसा घर जिसमें एक भी स्त्री नही
और एक ऐसा घर जिसमें स्त्री है
बाबा की दवाई पापा का कोट टाँगना दादी का गरम पानी भैया के पराँठे भतीजे का जन्मदिन सब याद रखने वाली
लङकी
का कुछ भी नहीं उस घर में
और दर्दनाक पहलू ये कि उसे जताया भी जाता है
मेरा दावा है कि अधिकांश लङकियाँ इसी ऊहापोह के कारण कैरियर बदलने या रोकने या अवांछित जॉब चुनने पर विवश होती हैं
एक ऐसा व्यवसाय जिसमें लंबी पहचान समय अनुभव को कार्य की सफलता से जोङा जाता चुनने वाली लङकियाँ सफलता के शिखर पर खङी होकर जैसे अचानक
शून्य पर आ जाती हैं
कोई
नही तौल सकता कि क्या खो दिया
हर तरफ नमस्कार श्रद्धा और प्रशंसा के भाव
केबदले
किसी मामूली से आयोजन की पिछली कुरसी पर दर्शक की तरह बैठकर ही
ये तकलीफ़ महसूस की जा सकती है
जो आयु बनने की है वही सब खोने की
और जब आपको फुरसत मिलती है नयी दुनियाँ के चक्रव्यूह से सोचने की
लोग आपको भूल चुके होते हैं
और आपकी हर बात पर चकित होते हैं
ये आपने लिखा????
संपत्ति
का हाल विवाहोपरांत भी
कुछ नही बदलता
जरा सी चूक और ज़वाब कोई भी कह देता है
यही
सिखाया तेरी माँ ने??
ये तेरे बाप का घर नही
निकल जा मेरे घर से
जा चली जा
ऐसा तेरे घर में होता होगा
हमारे यहाँ ये सब नही चलेगा!!!
तेरे खानदान की औकात ही ऐसी
बाप का माल समझा क्या
गजब
अरे
उस घर में तो एक एक दिन पराये घऱ की अमानत सुन सुन कर बिताया
कुलदेवी देव पूजा
मैर मायने में खूँट ।
में लङकी को अलग कर दिया
और
ये खेत घर मकान बाग भी
किसके है
जब मायके जाती तो
सब कहते """फलाँ वाली दीदी बुआ"""ससुराल में सब कहते ""वहाँ वाली बहू चाची भाभी""""
फिर
क्या है उसका खानदान??
भ्रमित
वो मायके में ससुराल के ढींग
ससुराल में मायके की बखान करती रह जाती है
ताकि कोई उसे
बिना पीठ का ना समझे
औऱत घर घऱ करती है
बेघर
कानून से क्या दिल मानता है?
2.
संस्कृति कला राजनीति साहित्य और आध्यात्म की मज्जा और रक्त में स्त्री लोग
स्त्री के मुद्दे को राजनीति से अलग
समाज का मुद्दा मानते है
ये
बताओ किस मुद्दे को स्त्री से अलग माने?????
सङ गयी संस्कृति
नोना लग गया धरम में
कीङे पङ चुके है राजनीति में
और समाज तो कब का अंतिम साँसों पर पङा है
स्त्री स्त्री स्त्री
हाँ
सबके सामने सवाल बनकर खङी है स्त्री
जी करता है पूछूँ
हर पुरूष से कि तुमने कहीं किसी
मासूम कन्या को गंदे इरादे से कभी ये जानते हुये कि ये पाप है छुआ था या नहीं????????
क्योंकि
रेप ना होना ही तो यह साबित नही करता कि समाज साफ है!!!!!
हम जिस स्त्री से भी पूछते है उसे ही मुझ सहित
नादान मासूम अबोध आयु में किसी की गंदी आँखें।किसी के घिनौने शब्द किसी के लिजलिजे कुत्सित स्पर्श कम या ज्यादा याद।आ जाते हैं जिनका अर्थ बङी आयु बाद समझ में आया
अगर बच गये तो भाग नही बचे तो कुभाग
लेकिन
इसका अर्थ???!!!
सिर्फ दिल्ली क्यों
अरे जय मनाओ दिल्ली की जो आज लोग बोलने की हिम्मत कर रहे है
क्यों गाल बजाते हो
किस घर को मौत ने नही देखा
पूछो बेटियो से स्पर्श और घूरने का डर
जब
तेरी माँ
तेरी बहिन तेरी बेटी बकते हो
तो क्या
संविधान सिखाता है
????
नारी जाति का अपमान
उसके प्रति दुर्व्यवहार
और
उस पर अत्याचार
हर
विधा का मसला है
केवल
पश्चिमीकरण को दोष देने से बच नही
सकते
क्योंकि
अभी किंचित शहरो की बहुत कम आबादी को छोङकर
अमूमन स्त्री प्राचीन अवस्था की ही जिंदगी जी रही है
डेढ़ अरब का देश
पश्चिम में स्त्री पर दहेज भ्रूणहत्या
बाल विवाह
बेमेल विवाह
औऱ घऱेलू हिंसानही है
ये
कन्या पूजको का ढोगी
देश
स्त्री पर ज्यादा अत्याचार करता भी है
औऱ
उसे बोलने भी नही देता
इसे देवियाँ चाहिये
कैसे???
3. आप क्या समझते है ये
इकलौता आश्रम है????????जितने भी वनवासी
दलित
और
नारी निकेतन
विधवा
अनाथ
पुनर्वास केंद्र चल रहे है
कई
में
तो लङकियों को बाहरी लोगो के
सामने
खुश करने को भी इस्तेमाल
करने की बात सामने आयी
और
दबा दी गयी
पूरे आश्रमों में रात को
पुरूषों का प्रवेश वर्जित
होना चाहिये
किरण बेदी की किताब
पढी
जेलों
में महिला कैदियों पर
भी कम ज़ुल्म नही होते
दिल्ली वाले
शोर मचाये इसीलिये ये
केस एक के बाद एक सामने आ
रहे है
पर
आपको व्यंग्य सुर से
ऐसा क्यो लग रहा है
कि आपको दिल्ली आंदोलन
पसंद नही आया
आप
खूब अच्छी तरह से
समझलीजिये इस की वजह
से ही लोग आज बात कर रहे
है पंजाब नें आठ दिन में केस
पर सजा ग्वालियर में
ड्राईविंग ायसेंय निरस्त
4. वाह !!!
देश का शिक्षित वर्ग कितना कायर हो चुका है कुछ भी अघटित अनअपेक्षित घटते ही पहला बाण निकलता है
किस का इलाका!!!!!!एक पार्टी
के चमचे चिल्लाते हैं तेरे राज में तेरे इलाके में
दूसरी पार्टी के करछुल चिल्लाते है तेरे राज में तेरी पार्टी में तेरे इलाके में
और
मौका लगते ही
प्रांतीयता
भाषा
धरम
जात
और
वाद
पर आक्षेप
ये स्त्री पर लगातार हो रहे आक्रमणों का मसला है
ये पार्टी वो पार्टी होने से क्या होता है
अगर किसी राज्य विशेष में कम यौन अपराध होते है तो वहाँ कि सरकार को शौर्यचक्र पकङाना गलत है
क्योंकि
ये उस क्षेत्र विशेष का ही सामाजिक सांस्कृतिक ताना बाना है
वहाँ के लोकजीवन रहन सहन और संस्कार हैं
ये
स्थानीय
नेता भी उन्ही घरों से आते हैं
इसी तरह
किसी राज्य में यौन अपराध ज्यादा हैं तो इसमें सरकारी पार्टी से ज्यादा लोकजीवन में लङकियों की उपेक्षा और यौनभावना में बहता लोक संस्कार और समाज है
पार्टी वही एक राज्य में सफल और दूसरे में विफल
मसलन नागालैंड दिल्ली
गुजरात छत्तीसगढ़
जब
भी
कोई अपराध खुलता है तो मीडिया से
दबाया
और तोङ मरोङकर पेश किया जाता है तो मीडिया से
कई तरह के लोग
राजनीति प्रशासन और मीडिया में होते है
कुछ।सच के लिये गरीबी काट लेते है
कुछ।सच छिपाने के लिये गरीबों को काट देते है
कुछ को बात बताने के पैसे मिलते है
कुछ को बात घुमाने के पैसे मिलते है
कुछ को बात पर बात बनाने के
राजनीति
दोषी है
बेशक
कौन कौन है राजनीति में
??????
जो नही है
और बिना दोष की राजनीति कर सकते है
छिपकर क्यों बैठे है????
वोट क्यो देते है भ्रष्ट को????
अपने कुनबे के लाभ पर टिकने वाली
पार्टी की जय क्यों बोलते हैं
कारगिल औऱ कांधार कांड क्यों हुये
???
क्यों दिल्ली सङक पर उतरी
आज जो लोग बङ बङ कर रहे है
ये कल कहाँ थे
जब किसी
बच्ची की लाश झाङी
में सिर्फ एक खबर थी
नींव।में कीङे है
पुताई से क्या ???
5. घरेलू हिंसा
सुनने में एक बङा सरकारी सा शब्द लगता है
लेकिन
कितना व्यापक है इसको समझने के लिये एक अलग नज़र चाहिये
इसकी शुरूआत पालने से ही हो जाती है
जब एक नन्हीं बच्ची का जन्म होता है और रिवाज़ के मुताबिक न उसका दशटोन न छूछक छटी न ही चरूआ न पालना न कोई विशाल उत्सव
यहाँ रुकिये कुछ लोग महान् बनने के चक्कर मैं सबकुछ करते भी हैं परंतु हम ये समझ लें कि अपवादों के सहारे समग्र को नहीं आँका जा सकता
जन्मदिवस बेटे का मनाया जाता है बेटी का नहीं ललही छठ संतान सप्तमी अहोई अष्टमी पुत्रदा एकादशी और शनि प्रदोष जिऊतिया और और और तमाम तंत्र मंत्र यंत्र उपाय पुत्र प्राप्ति पुत्र की लंबी आयु के लिये और कलेजा भर भर दुलार
बेशक बेटियाँ भी प्यारी हैं लेकिन ये हिंसा मानसिक प्रताङना ही तो है!!!!! किसी भी अन्य समाज में इतनी बुरी तरह से प्रताङना नही
बेटा होने पर सात श्याऊर यानि 49दिन का आराम बेटी को दो या पाँच 14//35दिन का आराम जननी को
!!!!!! सोंठ बिसवार के लड्डू भी चार गुने ज्यादा!!!!!
ताकि माँ ज्यादा दूध पिलाया मातृत्व अवकाश भी ले
फिर गोद में खिलाते औरते अक्सर चिङचिङा के कहती ""ओ मरी क्या खा के आई ""बात बात पर मरने की बात कि जैसे बेटी को किसी दुआ आशीष व्रत उपवास कामना की जरूरत ही नही???? ये तो बस बिन माँग् हो जातीं हैं
और दया भरम के नेह में करूण रस पीती जी जाती है
खेल में बचपन से ही बेटी को गुड्डे गुङिये थमा दिये जाते और वो समझती कि गुड्डा यानि मालिक और पूरा जीवन उसके नाजुक मन पर छप जाता नही है हिंसा??? जब लङकी को घरेलू कामकाज और लङके को क्रिकेट का बल्ला थमा दिया जाता है??? भाई पीट दे तो भी डाँट बहिन को कि क्यों इतना हाय हाय भाई है पीट दिया तो क्या हुआ कल को तुझे लिवाने पहुचाने भी तो जायेगा
पिटाई तो लङको की भी होती है लेकिन चोरी जुआ बीङी सिगरेट पीने पर।गाली झगङा लङकी छेङने पर या परीक्षा परिणाम पर
लेकिन बेटी की पिटाई
एक आवाज में न सुनने पर भी होने से लेकर दाल में नमक ज्यादा होने जैसे किसी भी कारण पर हो सकती है
मनबढ़ किस्म के भाई माँ बाप से अपने पाप छिपाने के लिये बहिन को ब्लैक मेल भी करते है
दुपट्टा से लेके किसी सहेली के घर जाना तक कुछ भी हो सकता है
अपराध
के बीज इस सामाजिक हिंसा में छिपे हैं
ए क आम लङकी 16 वर्ष की रोटी पूङी दाल सब्जी बुनाई सिलाई कढाई साफ सफाई बच्चे की देखभाल परिवार के रीति रिवाज औऱ गाना नाचना बजाना घऱ सजाना सीख चुकी होती है पढ़ने के अलावा
औऱ इसी आय़ु के लङके
??
सुनने में एक बङा सरकारी सा शब्द लगता है
लेकिन
कितना व्यापक है इसको समझने के लिये एक अलग नज़र चाहिये
इसकी शुरूआत पालने से ही हो जाती है
जब एक नन्हीं बच्ची का जन्म होता है और रिवाज़ के मुताबिक न उसका दशटोन न छूछक छटी न ही चरूआ न पालना न कोई विशाल उत्सव
यहाँ रुकिये कुछ लोग महान् बनने के चक्कर मैं सबकुछ करते भी हैं परंतु हम ये समझ लें कि अपवादों के सहारे समग्र को नहीं आँका जा सकता
जन्मदिवस बेटे का मनाया जाता है बेटी का नहीं ललही छठ संतान सप्तमी अहोई अष्टमी पुत्रदा एकादशी और शनि प्रदोष जिऊतिया और और और तमाम तंत्र मंत्र यंत्र उपाय पुत्र प्राप्ति पुत्र की लंबी आयु के लिये और कलेजा भर भर दुलार
बेशक बेटियाँ भी प्यारी हैं लेकिन ये हिंसा मानसिक प्रताङना ही तो है!!!!! किसी भी अन्य समाज में इतनी बुरी तरह से प्रताङना नही
बेटा होने पर सात श्याऊर यानि 49दिन का आराम बेटी को दो या पाँच 14//35दिन का आराम जननी को
!!!!!! सोंठ बिसवार के लड्डू भी चार गुने ज्यादा!!!!!
ताकि माँ ज्यादा दूध पिलाया मातृत्व अवकाश भी ले
फिर गोद में खिलाते औरते अक्सर चिङचिङा के कहती ""ओ मरी क्या खा के आई ""बात बात पर मरने की बात कि जैसे बेटी को किसी दुआ आशीष व्रत उपवास कामना की जरूरत ही नही???? ये तो बस बिन माँग् हो जातीं हैं
और दया भरम के नेह में करूण रस पीती जी जाती है
खेल में बचपन से ही बेटी को गुड्डे गुङिये थमा दिये जाते और वो समझती कि गुड्डा यानि मालिक और पूरा जीवन उसके नाजुक मन पर छप जाता नही है हिंसा??? जब लङकी को घरेलू कामकाज और लङके को क्रिकेट का बल्ला थमा दिया जाता है??? भाई पीट दे तो भी डाँट बहिन को कि क्यों इतना हाय हाय भाई है पीट दिया तो क्या हुआ कल को तुझे लिवाने पहुचाने भी तो जायेगा
पिटाई तो लङको की भी होती है लेकिन चोरी जुआ बीङी सिगरेट पीने पर।गाली झगङा लङकी छेङने पर या परीक्षा परिणाम पर
लेकिन बेटी की पिटाई
एक आवाज में न सुनने पर भी होने से लेकर दाल में नमक ज्यादा होने जैसे किसी भी कारण पर हो सकती है
मनबढ़ किस्म के भाई माँ बाप से अपने पाप छिपाने के लिये बहिन को ब्लैक मेल भी करते है
दुपट्टा से लेके किसी सहेली के घर जाना तक कुछ भी हो सकता है
अपराध
के बीज इस सामाजिक हिंसा में छिपे हैं
ए क आम लङकी 16 वर्ष की रोटी पूङी दाल सब्जी बुनाई सिलाई कढाई साफ सफाई बच्चे की देखभाल परिवार के रीति रिवाज औऱ गाना नाचना बजाना घऱ सजाना सीख चुकी होती है पढ़ने के अलावा
औऱ इसी आय़ु के लङके
??
श्रस्टी की सुंदरतम कृति स्त्री !!! बस अब कुछ नहीं कहना !
ReplyDeleteअनुपमा तिवाड़ी