ठाकुर पिद्दी~:ठकुराईन जिद्दी

राजपूतों का नैतिक पतन हो चुका है
जिनके स्वयं के समाज संगठित हैं उन सिखों, दलितों, क्रिश्चियनों, यहां तक कि कर्मकारों तक पर भी हाथ नहीं डाल सकता कोई
किंतु
क्षत्रिय दुल्हन की डोली दो चार लड़के लूट ले सकते हैं !
राह चलती छात्रा का अपहरण हो सकता है
छेड़छाड़ मामूली बात है
रायल हो या गरीब किसान परिवार की बेटी बहू पर बदनीयत रख सकते हैं! !!!क्षत्राणी पटाई जा रहीं हैं या न पटी तो दुनियां से हटाई जा रहीं हैं? !?!
दलित मुसलिम ईसाई कोई भी राजपूत कुमारी पर बदनीयती से आक्रमण, साजिश, हमला कर दे रहा है! !
कारण?
ब्राह्मण समाज की स्त्री रोजगारोन्मख है
सबसे अधिक सरकारी शिक्षिकायें हैं, फिर क्लर्क बैंक या अन्य व्यवसाय में गांव की हो या नगर की
कायस्थ को लगभग शतप्रतिशत व्यवसाय में हैं निठल्ली स्त्री कदाचित ही मिले
रहे बनिया, स्त्रियां या तो संपन्न व्यापारी की पत्नी बेटी हैं या स्वयं जाॅब रोजगार में
,
क्षत्रिय स्त्रियां जो शासन, सतीत्व, सत्ता, युद्ध शस्त्र शास्त्रार्थ हर क्षेत्र का चरम उत्कट उद्भट उदाहरण हैं,
,
गंवार रह गयीं
या मजबूरन कैदी
,
प्रतिष्ठा के नाम पर बन्दिनी बनाते जाने के कारण50% से अधिक राजपूत स्त्रियां पोस्ट ग्रेजुएशन तक भी नहीं पहुँच सकीं हैं,
,
पश्चिमी यूपी, दिल्ली राज्यक्षेत्र में
माईनोरिटी दलित संगठनों का ही राज चलता है
उदित, माया,भीम, रावन, जिग्नेश  जैसे लोग वहीं पनपे हैं,
राजपूत स्त्री गोबर बेचती है, कुट्टी काटती है, गन्ना छीलती है, दूध बेचती है, या पढ़ गयी तो ट्यूशन पढ़ा लेती है किसी प्रायवेट स्कूल में शादी ना होने तक
सब के सब भरतियां30 वर्ष से इस क्षेत्र में दलित माईनोरिटी संगठनों के हक में ही हुयीं हैं,
वरना तो बच् खुचे पसमान्दा मुल्लिम, पिछड़े वर्ग ओबीसी के लोग ले उड़े,
,बचा रजवाड़ा?
सयूपी बिहार बंगाल में
मोल की लुगाई लेकर आते हैं राजपूत जब विवाह नहीं होता,
लड़के सट्टा जुआ शराब चवन्नीछाप सड़क गुंडई करके गुटखा चबाते, मरियल बकरी की तरह मिमियाते हैं
नकल से या रकम भर के पास होते हैं
बचे
मेधावी लड़के टिकते नहीं देश में जन्मभूमि में
मीडियम लड़के, बिकाऊ माल एवरेज कीमत10 लाख,
चाहे दुकान हो किराये की या प्रायवेट कंपनी की20 हजार रुपये महीने की नौकरी
,
परिणाम
योग्य लड़कियों को समकक्ष वर नहीं मिलते
जनक सी प्रतिज्ञा करने वाले की सभा में वरण में ही हरण होने लगे हैं,
झूठी औकात दिखाकर शादी कर ली जाती है
ट्रिपल मास्टर्स लड़की मूर्ख लालची निहायत उजड्ड के घर की गुलाम बनकर मारपीट नशे में हिंसा, विवाह के नाम पर शर्मनाक बलात्कार या अद्धपूर्ण पागल नपुंसक मनोरोगी के बच्चे जनमने पर विवश होती है,
विवाह से मर्यादा प्रेम सिद्धान्त नैतिकता करतव्य गायब है
रह गयी है हक की हिंसा,
दहेज हक है
शराब मांसाहार बदचलनी हक है
स्त्रियों पर हिंसा हक है
अवधी कहावत है
""महरी के मारपीट बनलें भतारा, बहिनी के मारपीर सूरमा हजारी, घरहिं दुआरे नाच वीर कहलाबें
,
नाचते लड़के लडकियां सड़क की बारात में, धुत्त नशे में
मूँछ पगड़ी बड़े पद खिताब! !!
उँह
सब के सब समाज पर एक नौटंकी मात्र रह गये है
रीयल इंटेलीजेंस बिद ब्रेन एंड रिफोर्म आर नेवर गेटिंग प्लेस इन अवर कम्युनिटी.
साहस किसी भी लोमड़ समूह का बाघिन की बच्ची चबाने का यूँ ही तो नहीं आने लगा? ?
रहा मानसिक दुर्भाव? सो सिनेमा से साहित्य तक कम्युनिज्म के प्रचार के दौरान""बोर्जुआ बनाम मजदूर को दलित मुल्लिम बनाम राजपूत कर के दर्शाया जाकर गहरी ब्रेनवाश की चाल खेली जाती रही है
सब साजिशें कामयाब हो ही गयीं हैं
शराब पीकर घर की ठकुराईन को गालियां बककर हर जात के बिस्तर पर भेजने की कल्पना करके जलील करने वाले ठाकुर पिद्दीसाब,
कँवर सा बना सा राना सा सिंह सा राजा सा ,भले ही कहलें सुन ले लगालें
सूट नहीं करते अकसर व्यक्तियों पर ये सब शब्द
सही कहूँ तो बहुतायत ठाकुर बचे ही नहीं क्षत्राणी वरण के काबिल
अपने बीज सतऊ जात में रोपते फिरते रहे सब तो, ~,??गैर में बैर सगों में रार बराबरी क्यों न होती
गीता में चरित्र संयम और वीरता समाज सुधार की परमानेंट ठेकेदारी क्षत्रिय को दी गयी है,
मगर डी जे कमर लचकाते बना बाई सा हुकुम सा के लिये तो नहीं
कड़वी लगी हो तो एक ठर्रा और पीकर गटक लें
जहर मारना ही काम है हमारा नाम बस"सुधा"
एक सन्यासिनी लेखिका ©®सुधा राजे

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