सुधा राजे का लेख "स्त्री"-- :मानवता और एक देश एक संविधान एक कानून

Sudha Raje
एक देश एक नागरिकता एक संविधान एक ध्वज एक ही पहचान 'भारत 'भारतीय और भारतवंशी '
आज तक नेहरूजिन्नाअंबेडकर की गलतियों की सजा देश का हर नागरिक भुगत रहा है ।
राष्ट्रवाद मखौल होकर रह गया । लोग दुशमन देश के नारे लगाते है और हमारे
देश की खाते और सर्वश्रेष्ठ सुविधायें पाते है ।
ये क्या किताब किताब किताब लगा रखा है!!!!!!!!
किताब कोई भी हो ''मानव समाज परिवर्तनशील है और उसीके हिसाब से हर युग
में नये नियम गढ़े जाते हैं समय समय पर ।
क्या """"सती प्रथा, बालविवाह, विधवाविवाहनिषेध, बाँझ स्त्री होने या
पुत्र न पैदा करने पर बारबार विवाह """"""सनातन धर्मी नहीं करते थे,,,,
आखिर उन्होने स्वयं को बदला ।
वेद पुराण और मनुस्मृतियों के सारे नियम तोङ दिये गये ।

तो कौन सी किताब की रट लगाना है अब ।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है मतलब सब धर्मों के लोग अपना धर्म घर तक
सीमित रखें "संविधान और कानून को समय समय पर मानवहित और राष्ट्रहित में
विचार बुद्धि और मानवता के अनुकूल ही संशोधित किया जायेगा ।
रेतीले ढूहों में टैंट में रहने वाले ऊँट भेङ बकरा खाने वाले लबादा पहनने
वाले और ऊँट गाङियों से रेत के गुबारों में कारवां बनाकर चलते रहने
वाले,मसर का पानी पीने वाले ' 'खानाबदोश लोग
':जब चावल बासमती, गेहूँ मालवा का, चीनी धामपुर की, गुङ मेरठ का,मावा
मथुरा का पेठा आम मुंबई बिजनौर गोरखुर का आगरा का खाने लगे!!!!!!!!! जींस
टीशर्ट कोट पैन्ट पहनने लगे!!!!!!!
जूते टाई कैप सिगरेट व्हिस्की रम बोदका स्कॉच बीयर पीने लगे!!!!!!!
क्लीनशेव्ड रहने लगे!!!!!
टीवी मोबाईल इंटरनेट चलाने लगे!!!!!
यहूदियों ईसाईयों आतशपरस्तों बुतपरस्तों की होङ में "ऊँची इमारते बनाने
लगे!!!!! रोज रोज नहाने लगे!! गाना गाने नाचने फोटो खिंचाने फिल्म देखने
अभिनय करने लगे!!!
तो, '
किताब ने नहीं रोका!!!!!!!
अब जब बारी आयी """नक़ाब में चलती फिरती ""काल कोठरी में बंद कर दी गयी
औरत जात पर सदियों से हो रहे ज़ुल्म को रोककर उनको भी ""मानवीय स्तर से
जीवन जीने सम्मान देने और हक देने की तो हो हो हो हो करके उनकी आवाज दबा
दी जा रही है बार बार हार????? पर्सनल लॉ के नाम पर """""
क्या किसी मानव पर जुल्म का हक है????????
,???
अगर हिंदू कहने लगें कि ""हमारा पर्सनल लॉ है सब "शूद्रों को गाँव से
बाहर भगाओ, मंदिरों से बाहर भगाओ, सब विधवाओं को पति की लाश के साथ जला
दो ',सब पुरुषों को बहिन बेटी को संपत्ति में हक नहां देने का 'रजस्वला
होने से पहले कन्यादान करने का '''गौ वध करने वाले को मार गिराने का और
''''निपुत्र व्यक्ति की विधवा या सुहागिन को ""नियोग के लिये विवश करके
"पुत्र पैदा कराने का!!!!!!!!
तलाक नहीं देकर चरित्रहीन होने या शक होने पर स्त्री को दासी बनाकर घर के
बाहर कैद करके काम कराते हुये पत्नी पुत्री दोनों हक से छोङ देने का
!!!!!!
स्त्री का बलात्कार या अनुलोम संसर्ग पर खौलते तेल के कङाह में भून तल कर
कौओं को अपराधी खिलाने का????
तो ये परसनल लॉ के नाम पर चलेगा??????
????
क्यों सारी ""धर्मनिरपेक्षत
ा 'सनातन धर्म के ऊपर थोप दी जाये??????
??????
****
अगर स्त्री हर भारतीय स्त्री को ये हक मिले कि
1-उसे पिता के घर में 'वारिस 'माना जाये
2-उसे विवाह स्वेच्छा से करने वर चुनने और परिजनों के चुने हुये वर को
स्वीकारने या नकारने का हक हो ।
3-वह चाहे तो आजीवन अविवाहित भी रह सके और चाहे तो "प्रेम विवाह भी अपने
पसंद के लङके से बिना जाति मजहब और क्षेत्र के कर सके ।ऐसा करने पर
उत्पीङन से उसकी रक्षा भी हो क्योंकि प्रेम प्राकृत गुण हैं ।
4- विवाह के बाद पति और ससुर की संपत्ति में उसे वारिस का हक मिले ।चाहे
पति उसके साथ रहे या ''प्रेम समरसता सुमति सामंजस्य टूट भी जाये तो भी
""तलाक ""होने पर भी उसको ""घर ""जरूर मिले चाहे मायके में चाहे सासरे
में, वह जहाँ पर सुरक्षित रहना महसूस करे 'जब तक कि वह दूसरा विवाह नहीं
कर लेती उसको पति ससुर की संपत्ति में से गुजारा भत्ता बच्चों की परवरिश
यथावत और रहने को घर मिले ।
5-तलाक केवल कहने और चालीस दिन की "इद्दत ""यानि रजस्वला होने या गर्भ तो
नहीं कि बच्चा हमल किसका है यह तय करने भर से तलाक नहीं हो जाये ",,बल्कि
तलाक लेना है तो "अदालत जाया जाये बाकायादा लिखित में अरजी दी जाये कि
वजह क्या क्या है क्यों छोङना चाहता है शौहर अपनी बीबी को सारे कारण लिखे
''
जो संविधान और कानून के अंतर्गत विवाह विच्छेद की पर्याप्त जायज वजह बनते
हों तभी ""तलाक पर सुनवाई की जाये """
और चूँकि सब के सब वकील 'पर्सनल लॉ पढ़कर ही लॉयर बनते हैं सो कोई काबिल
वकील बहस करे तब स्त्री का भी पक्ष सुना तौला समझा जाये उसके भी परिजनों
को हाजिर कराकर मामले की सुनवाई हो और कम से कम तीन से छह माह का समय
पुनरनिरीक्षण में लगें तब ""अदालत ""में जज वकील मायके वाले और सासरे
वाले पाँच पाँच लोगों के सामने हो तलाक,,,, ""
6-तलाक के बाद बच्चों पर से स्त्री का हक नहीं छूटे उसने हर बच्चा नौ नौ
माह पेट में जो रखा दर्द सहा और दूध पिलाया 'मल मूत्र धोया, पकाकर खिलाया
दुख सहे उसको भी बुढ़ापे में आसरा चाहिये बेटी बेटों का ।तो बीबी का
बच्चों पर से हक नहीं हटेगा । सब लङकियाँ माता के साथ ही रहेगीं अगर बाप
के घर कोई केयर टेकर स्त्री दादी बुआ वगैरह नहीं तो । सब बच्चे सात साल
तक माता के दुलार प्यार में रहेगे । जब तक कि माँ असाध्य छूत रोगिणी
""हिंसक पागल ""या स्वयं ही रखना नहीं चाहती बच्चे । बच्चों का सारा खर्च
शौहर को यथावत उठाते रहना पङेगा जैसा कि तलाक के पहले उठाता रहा है ।
बच्चे सब के माता पिता दोनों की संपत्ति में समान वारिस होगे ।
8-एक स्त्री के जीवित और पत्नी अवस्था में रहते कोई भी "भारतीय "दूसरा
विवाह नहीं कर सकता ।
दूसरा विवाह अवैध घोषित होगा ।परंतु यदि अवैधता में संतान हो जाती है तो
वह "पिता की संपत्ति में वारिस होगी ।
!!
कोई भी तलाक "स्त्री के भरण पोषण के हक को खत्म तब तक नहीं करेगा जब तक
कि वह स्वयं न लेना चाहे या, दूसरा विवाह न करले ।
!!
!!
दहेज न माँगने का हक है न ताने देने का विवाह के पहले "पसंद नापसंद घोषित
करें परंतु विवाह के बाद "रूप रंग कद काठी पितृकुल या दहेज कम मिलने का
ताना ""हिंसा माना जायेगा "


स्त्री के साथ मारपीट का गालियाँ देने या घर से निकाल देने या "यौनरोगी
एड्स रोगी छूतकीबीमारियाँ होकर भी जबरन संसर्ग पर विवश करने या अनिच्छा
पर जबरन हिंसाकरके सहवास करने का मतलब ""बलात्कार का अपराध होगा ""

7-किसी भी तरह से स्त्री के रहन सहन पहनावे और खानपान में ससुर सास देवर
जेठ पति और परिजनों की तुलना में हेयता नहीं की जा सकेगी!!
न मायके वालों से बातचीत करने पर रोक हो सकेगी ।
बहु विवाह हर भारतीय के लिये "अपराध होगा "
यदि पति के रहते पत्नी 'छिपकर परपुरुष से वैवाहिक संबंध बनाती है तो
'दोनों ही अवैध संबंधकारी अपराधी होगें ।
!!!!
बुरका पहनना या न पहनना स्त्री की इच्छा है परदा करे घूँघट करे या न करे,
जब तक सामाजिक अश्लीलता नहीं समझी जाती वह प्रचलित वस्त्र पहन सकती है ।
चाहे करवा चौथ तीज वटसावित्री हों या रोजे 'या फास्ट 'जबरन किसी स्त्री
पर नहीं थोपे जायें वह अपनी इच्छा से उचित समझे तो करे ।
अगर पढ़ना चाहती है तो हर भारतीय स्त्री को ""शिक्षा का हक हो ""
वोट डालने का हक हो ""
अपनी रचनायें छपवाने का अभिव्यक्ति का हक हो ।
अपने लिये पेंशन पाने को बचत करने अपने नाम घर बनवाने जेवर और गृहस्थी
रखने का हक हो ।
अदालतों में जाकर न्याय पाने का हक हो ।
स्त्री यदि जॉब करके स्वावलंबी होना चाहती है तो उसको हक हो ।
अपने पैरों पर खङी होने का अपनी संतान को अपने साथ रखने का और अपना
"सरनेम न चाहे तो न बदलने का "
हिंसा उत्पीङन और शोषण कैद और जबदस्ती से इंसाफ पाकर मुक्त होने का हर
स्त्री को हक हो ।
"""एक वकील और एनजीओ संस्थापक के तौर पर सबसे अधिक विवश ""हम तब ही हुये
जब जब पीङिता मुसलिम थी और ""पर्सनल लॉ की वजह से मामला ""काजियों
हाजियों के बीच रखकर बहस करनी पङी """आज तक उनमें से किसी को इंसाफ नहीं
मिला किसी को बेबस बच्चे खोने पङे कोई भाई की देहली की भिखारन हो गयी तो
कोई मेहर दहेज बच्चे खोकर बहुपत्नी बनी रह गयी किसी को पढ़ने से किसी को
जॉब से हिंसक तरीकों से रोक दिया गया """"
©®सुधा राजे


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