सुधा राजे का लेख :- " पुनर्दास भव"।

टाई '
एक व्यर्थ चीज है ।
न तो बदन ढँकती है ।
न ही मुँह पोंछ सकते हैं न हाथ पाँव न
ही कुछ बाँध सकते हैं न ही लाज ढँक
सकती है 'न ही सरदी गरमी बरसात के
संरक्षण से ही इसका कुछ लेना देना ।
हालांकि प्रोफेशन की विवशता और
स्कूल की अनिवार्यतावश हमें
भी पहननी पङती रही ',
किंतु हर बार जब भारतीय दुपट्टे अँगोछे
'पिछौरे 'शॉल 'गुलूबंद 'से
तुलना की तो टाई '
सिवा एक """"अंग्रेज मानसिक
दासता '''''की निशानी के कुछ
भी नहीं लगी ।
इतना ही नहीं ये टाई जिसकी 'नॉट
'इस तरह की लगती है
जो जरा सा ही पिछला सिरा खीचों तो 'पहनने
'वाले की ज़ान ले
लो 'फाँसी का लटकता नमूना ।
और क्राईम के अनेक मामलों में
यही पाया भी गया कि 'टाई से
गला घोंटकर मार डाला, या टाई से
हाथ पाँव बाँध कर डाल दिया 'या टाई
से लटका कर छोङ गये ',
क्योंकि एक आदर्श टाई 'व्यक्ति की कद
के लंबाई की ही होती है, '
मँहगी इतनी कि एक टाई की कीमत में
एक 'ग्रामीण की पूरी पोशाक
या बिस्तर आ जाये!!!!!
सिलाई का ढंग कटाई
का सलीक़ा इतना बेहूदा कि 'टाई
निकालने के बाद थान के थान कतरन
बचती है ',
इसके विपरीत एक ढाई मीटर
का दुपट्टा या अँगोछा 'हज़ारों काम
का '
पहन लो 'कपङे बदल लो 'सामान बाँध
लो 'बच्चा पीठ पर बाँध
लो 'गाङी टो करने को रस्सी ' शिशु
का झूला '
जरूरत पर चादर ओढ़ कर सो जाओ और
मजबूरी में कछोटा पहन कर लाज ढंक
लो 'सिर पर बाँधो तो धूप सरदी बचे
'कमर में कस लो तो 'लङने मेहनत करने में
पेट न हिलने दे ।
हथकङी बना दो तो चोर बाँध
लो मरना मारना हो तो ऐंठ कर
कोङा बना दो 'ढोर की रस्सी और
'सुसाईड करनी हो तो भी हर वक्त
हाजिर '
छाया देनी हो तो चार कोने तानकर
बच्चा सुला दो 'परदा तो है ही ।मुँह
छुपाना हो तो देखते भी रहो दिखने न
दो '
खिङकी तोङनी हो तो गीला करके
गिरहबाँध ऐंठ कर तोङ दो '
पुराना हो जाये तो रूमाल पोंछे
बना लो ।
कीमत '
?एक टाई के बदले एक दरजन अँगोछे
दुपट्टे '
कब
मानव होकर हम अनुपयोगी आडंबरों से
मुक्त होंगे?
©®सुधा राजे
लेखमाला क्रमशः ''पुनर्दासभव "


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