सुधा राजे का लेख - वाचिक बलात्कार है
पिक्चर काली करने से क्या होगा ?
हम तो पश्चिमी यूपी देखने के बाद यह आशा ही त्याग चुके हैं कि कभी नारीविषयक गाली बंद होगी ।
आत्मा छलनी हो हो जाती है ,,
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हम बुन्देलखंड की उस राजपूत शैली में पले जहां बहिन बेटियों के पांव छुये जाते हैं ,राजा बिन्नू बैन बिटिया जिज्जी बैनमहाराज रज्जू कहकर बड़े तक पांव की धूल माथे पर लगाते रहे कभी परस्पर अभद्र बोलना चाहते तो लड़कियों के हटने की प्रतीक्षा करते ।
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वहां भी गालियां खूब चलती हैं ।
बस जरा सा मखमल लपेटकर ।
किंतु बिहार पूर्वीअवध प.यूपी की गाली सुनने की ताकत हर किसी में नहीं है ।
हत्या तक गाली के कारण हो हो जाती है और गाली फिर भी चलती है ।
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गीतों में गालियां तो स्त्रियां ही जमकर गा गा कर बकतीं हैं ।
फिर साले ससुरे बेटा ससुर के नाती मामू कहकर भी गाली दी जाती है ।
शराब और नशे के बहाने पूरे मुहल्ले को नगर को देश की सरकार तक को जमकर गाली बकी जाती है ।
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होली जलने की रात को तो गोल बनाकर जमकर गाली बकते हैं ।
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पुलिस को तो गालियों में पीएचडी हासिल है ।
मास्साब और डाकसाब तक की जुबान पर गालियां चढी हुयी है ।
यूपी के ग्रामीण कसबाई प.यूपी के तो क्या कहने
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अविवाहित लड़कियां
युवा प्रौढ़ स्त्रियां ही गजब स्त्री सूचक गाली बकतीं हैं
क्या क्रोध क्या हंसी हर वाक्य पर तकिया कलाम है दस बीस गाली ।
मन करता है कहीं भाग जायें ,
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जहां ये गंदे स्वर न सुनाई दें ,
परंतु कहां जायें ?
कहां जायें ?
सच कहते हैं गालियां सुनते सुनते मन बागी हो हो जाता है कभी कभी दिल करता है भूकंप आये और मैं समा जाऊं धरती में ?
या ऐसे सब लोग बाढ़ भूकंप में बह जायें ,
जो स्त्री देखकर और और गाली बकते हैं ।
लड़ने विरोध करने से होता क्या है ।
बस आॅटो रेल खेलमैदान ,
और तो और फिल्म टीवी गीतों तक में ,
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कर दूँ मां भैन
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भाग बोस डी के ,
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इधर सोशल मीडिया पर गाली को हेर फेर से देने का जमकर प्रयोग जारी है ।
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स्वयं जब तक पलट कर उतनी ही भीषण गाली न बको सामने वाला मानता ही कब है ।
उसे यही तो चाहिये कि आप बिलबिलाओ और आहत होओ ::::::
हम प्रोफाईल पिक्चर काली नहीं करेंगे ।
बरसों से हर बार गाली देने वालों से टक्कर से झगड़ते हैं घर से बाहर तक सो लड़ते रहेंगे ।
क्योंकि ये लोग ऐसे नहीं मानेंगे ।
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पुरुष सूचक गालियां गढ़कर भी कुछ नहीं होगा गाली एक यौनविलासिता का वाचिक पोर्न ही है वे सब बलात्कारी ही तो हैं जो परायी मां बहिन बेटी पत्नी या दुश्मन तक को यौन उत्पीडडन की गाली देते हैं ।
ये गाली शाब्दिक हिंसा है जो मानसिक बलात्कार ही है ।
देह से करते तो मारे जाते पकड़े जाते तो यूँ किया बक दिया कि चाहते क्या हैं ।
कभी सुना कोई कहता है कि वह सूअर का मल खायेगा नहीं न ?
तो यह क्यों कहता है कि किसी की मां का रेप कर देगा ?
क्योंकि वह ऐसा चाहता है अंतस से करने में समाज कानून मारपीट का डर है चरित्तर पर कलंक लगेगा । गाली संगीन वाचिक बलात्कार है और अफसोस कि हर तीसरा चौथा पुरुष ऐसी सोच का शिकार है ।
स्त्रियां भी जब जब गाली बकती हैं दूसरी स्त्री या पुरुष को तब वे उसी अमर्ष की शिकार हैं जिसमें वे स्वयं पीड़ित होती है ।
क्योंकि स्वयं ऐसा नहीं कर सकतीं तो कुटुंबी पुरुषों के नाम से यहां तक घृणित निकृष्ट पशुओं के तक नाम से स्त्रियों को पुरुष गाली देते हैं कभी घर में कभी नगर में ।
इस विषय पर हमने दस साल में पचास बार लिखा है हजारों लोंगों को प्रत्यक्ष डपटा भी है।
जो भी है आज यह बीमारी बालकों से हाईसोसायटी तक सबमें घुस चुकी है ।
साहित्य तक में गाली का प्रयोग होता है तो मन को क्रोध से अधिक जुगुप्सा घेरती है
गाली तो बुंदेली लोग भी जमकर देते हैं ,बस अंतर इतना है कि संस्कारवान परिवारों में बहिन बेटी भांजी भतीजी कन्या के सामने गाली देने से जगदंबा नाराज होने का डर सगता है जिन जिन को वे सामने से जरा सा बचते हैं परंतु पत्नी ससुर साले मित्र शत्रु और सरकार पड़ौसी नौकर मातहत कर्जदार और अपने से कमजोर को जमकर गालियां दी जाती हैं लगभग नब्बे निन्यानबे प्रतिशत लोग बुन्देलखंड में गाली बकते हैं । किंतु जिस तरह से बिना क्रोध के बात बात पर हर्ट करने के लिये यूपी वाले बिहार वाले हरियाणा वाले लोग गाली बकते हैं उतना निकृष्ट स्वरूप बुन्देलखंड में नहीं था ।
यूपी में हंसे तो रोये तो मजाक तो गुस्सा तो गालियां भीषण क्रूर बकते हैं लोग कन्यायें तक नहीं बख्शते दादा पोते को भाई भाई को बाप बेटी को गाली बकते हैं ।
गाली संगीन अपराध जब तक घोषित नहीं होगी और हर बार गाली पर दंड सामाजिक न्यायिक दोनों प्रकार का नहीं होगा तब तक ये गालियां बंद भी नहीं होंगी ।
बिलकुल ,अब तो भारत में भी नवअंग्रेजीदां भीषण अंग्रेजीवाली गालियां बकते हैं ,फुटबाॅल का एक विश्वकप केवल इसलिये हार गया था फ्रांस क्योंकि फाईनल में उसके सर्वश्रेषठ खिलाड़ी को विपक्षी ने बहिन की गंदी गाली दी जिसे वह सह नहीं सका और बाॅल की बजाय दूसरी टीम के उस गाली देनेवाले का सिर हैडर मारकर फोड़ दिया
मनसा वाचा कर्मणा
जो जो लोग कभी स्त्री के प्रति यौनहिंसक नहीं हैं ऐसे खोजना लगभग असंभव है ।
मतलब अब विज्ञापन निकलवायें कि भाईयों बहिनों एक इंसान ऐसा जिसने कभी स्त्री विषयक गाली न दी हो न किसी स्त्री को छेड़ा हो न कभी घर बाहर घूरा हो मारा पीटा सताया रोकटोक लैंगिंक भेदभाव निंदा की हो,
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दर्शन दें ?
सच्चे मन से खोजने को बस यही बचा है न ?
गाली एक बेबसी है कि वह और कितना क्रूर हो सकता था मानव होकर परंतु क्या करें हो नहीं पा रहा है कभी इस वजह से कभी उस वजह से ।
ऐसा नहीं कि गाली केवल स्त्री को ही पड़ती है परंतु यह अवश्य है कि भारतीय मां बहिनें किसी की भी हों प्रथम नागरिक से लेकर अंतिम तक ,
उसको वाचिक यौनहिंसात्मक बलात्कार का शिकार सामने या परोक्ष रूप से सहना पड़ता है ।
ये राजनीतिक दुश्मनी होने पर कई लोगों ने कार्टून बनाये ,राजनीतिक स्त्रियों के ,
कई राजनेताओं की पत्नी बेटी बहिन माता का गाली देकर अपमान किया ।
एक पोस्ट 2012की थी हमारी दामिनी कांड पर कहीं खोजने पर मिल सकती है कदाचित कि जब पांचों बलात्कारियों की क्रूरता पर बहस हो रही थी तो कमेंट आने लगे
.........उसकी मां बहिन बेटी बीबी खींच लाओ ......
तब
हमारी बहस झगड़े का कारण जा बनी कि कुछ लोगों से पूछना पड़ा कि क्या ये पापअपराध उसकी बेटी बहिन मां दादी दीदी बुआ मौसी मामी चाची ने किया है ?
तो दंड किसे ?
यही मानसिकता दयाशंकर सिंह की बेटी को पेश करो मां को पेश करो बहिन को पेश करो बीबी को पेश करो कह कह कर बसपाईयों ने दिखाई थी ।
तब भी हमारा यही सवाल था कि ,
माया साठ की स्त्री है ताकतवर और दयाशंकर ने टिकिट बेचने की तुलना कोठेवाली से की तो दंड पुरुष को मिलना चाहिये ,मिला भी ,
परंतु बेबस बहिन बेटी बीबी मां को पेश करो का प्रतिशोध क्या दरशाता है ???
यही न कि पुरुष करे अपराध तो बदला घर की अबलाओं से लिया जाये ?
ऐसा होता भी तो आ रहा है न ,
कहीं पाकिस्तान में प्रेमिका के साथ भाग गये लड़के की नाबालिग बहिन को लड़कीपक्ष के लोग गैंग रेप के लिये उठा ले गये । बंगाल में भी चार पांच साल पहले जंगलन्याय ऐसे ही हुआ था ।
ये गाली जो जो देता है देने की आदत है दरअसल वही प्रतिशोधी मानसिक वाचिक बलात्कारी ही है
©®सुधा राजे
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