चलो सोचें।

जंगली जानवर नहीं हैं ये
शहर गाँव के पुरूष । ये रेप
भी नहीं है । एक मासूम
बच्ची को नोंचना खसोट
नारी अंगों में काट पीट
बाहरी सामान ठूँस
देना!!!!!!
ये किस तरह
की यौनक्रिया है?????
दरिंदा
हैवान
वहशी
पशु
ये सब नहीं करते ।
भेङिये भी नहीं करते ।
भूख लगने पर माँस खाने
वाले हैवान माँस पर निर्भर
है मारा औऱ खाया बस ।
इस तरह यातनायें
देना किसी जानवर
को नहीं आता ।
जानवर
अपनी ही जाति को प्रायः नहीं खाते।
क्या दुर्दान्त
बलात्कारी दामिनी क
का एयर फोर्स में
होना चाहिये??????
क्या एयर होस्टेस । लेडीज
स्टाफ उसकी मौज़ूदगी में
सहज सुरक्षित महसूस
करेंगी?????
क्या देश की आबरू
का लुटेरा देश
की बहिनों का रखवाला
देना चाहिये???
कानून
की बारीकियाँ
वकीलों का स्वर्ग
अपराधियों का अभयारण।
बलात्कार पुरूष नहीं करते ।
बच्चियों के साथ
जो होता है
वो बलात्कार
नहीं ही होता ।
उसके लिये नया ही शब्द
गढ़िये व्याकरणाचार्य
जी ।
क्योंकि वो पाँच से बारह
साल तक की लङकी और
लङके भी नहीँ जानते न
महसूस कर पाते हैं ना समझते
हैं ये क्या और
क्यों किया जा रहा उनके
साथ।
क्यों नोंचा भँभोङा खसो

इस यातना देने वाले
भयानक मनुष्य
देहधारी को क्या सुख
मिलता है!!!!
फाँसी
बधियाकरण
आजीवन कैद??????
कम हैं सब
ऐसे नारीभक्षी को
चौराहे पर बाँध कर ।
स्त्रियों के हाथों में
पत्थरों के तसले थमा देने
चाहिये ।
जब मरणासन्न हो जाये
पत्थर खाकर तब।
शहर के आवारा कुत्ते छोङ
कर चिथङे भँभोङने
को सौंप देना चाहिये ।
शराब करती है
बलात्कार??????
तो
माननीयो ।
प्रतीक रूप में शराब
की बोतल को फाँसी पर
लटका कर चौराहे पर टाँग
दीजिये ।
और वैधानिक चेतावनी पर

शराब स्वास्थ्य के लिये
हानिकारक है लिखने
की बजाय
लिखो ठोक कर शराब
पीना बलात्कारी बना

??????
अश्लील सी डी पर
लिखो
यही सब
और
फिल्मों का एक डिश प्लेट
चढ़ा दो फाँसी पर ।
पुरूष नहीं कर
सकता स्त्री पर
हमला ना ही नन्हें
लङकों पर ।
ये तो
नररूपधारी यौनबुभुक्षु
मानवभक्षी होते हैं ।
शराब
या
अश्लील सामग्री तो उस
इंन्फ्रारेड किरणों की तरह
है जो
इनके मानवदैहिक आवरण के
खोल में छिपा वीभत्स
नरपशु दिखाते जगाते हैं ।
शराब
बंद करो
अश्लील
सी डी डी वी डी ।
बहुअर्थी अश्लील
विज्ञापन बंद करो । भद्दे
नाच और गंदे
द्विअर्थी गीत बंद करो।
कामशक्ति बढ़ाने वाले
विज्ञापन दीवार लेख
पोस्टर ऐलान बंद करो ।
पुलिस?????
औरतों की रक्षा करेगी????
इससे बङा मजाक कुछ और
हो नही सकता भारतीय
परिप्रेक्ष्य में
बिना रिश्वत लिये
जो डौल मेंड़ तोङने तक
की रिपोर्ट
ना लिखती हो । जो एक
सम्मन चस्पां करने पर
भी पैसा माँगने से ना चूके ।
ज़मानत का परवाना आदेश
जेल ऑफिस तक ले जाने के
पेशे माँगे ।
जो घङी चोरी को आर्म्
एक्ट बना दे । जो रेप
की भरपूर कोशिश के
नाकामयाब होने
को छेङछाङ में और
छेङछाङ को रेप के प्रयास
में लिख दे । जो हर ट्रक पर
ओवर लोड होता देखकर
डंडा फटकारे
गाङी रूकी दस बीस
पचास का नोट टपका और
लोड सीमा में हो जाये ।
जो बिना हेलमेट के लिये
टोके और दस बीस रूपये में
हेलमेट
ही नहीं बिना ड्राईविंग
लायसेंस तक के
नाबालिगों को भी गाङ
लायक मान ले ।
जो शाम होते ही बोतल
अद्धी पाऊच में
ड्यूटी की थकान खोजने
लगे ।
जो
गणमान्य नागरिकों के
फंक्शन में दावतें उङाये और
त्यौहारों पर गिफ्ट वसूले

जो महिला पुलिस तक
का मजाक बनाये ।
जहाँ जाने से डर श्मशान
और कब्रिस्तान से
भी ज्यादा औरतों को लगे

जो बिना माँ बहिन
बेटियों की गाली के
बात तक न करती हो ।
माना सब नहीं
पर औसत चरित्र यही है ।
बेडोल शरीर
बङी तोंद
नशे में धुत्त शामें
घरवाली पर
ही पुलिसिया रौबदाब ।
और बिना पैसों के बात
तक ना करना ।
नयी रिपोर्ट मतलब
नया धंधा ।
बोनी नहीं हुयी आज
यानी पैसा नहीं मिला ।
सूखी बीट ।
यानि जहाँ कुछ
अतिरिक्त कमाई
का जुगाङ बेहद कम है ।
बढ़िया बीट।
मतलब रोज रूपिया ।
ये रक्षा कैसे करेगे???
तनख्वाह में गुजर
होती ही नही???
ऊपर से बिना सिफारिश
रिश्वत के भर्ती कब
होती है सबकी???
तो वो
जो पैसा लगाया??
कैसे सूखी तनख्वाह में चले???
बाकी खरचै पानी पेट्रोल
तो माँगना बनता है
ना आखिर पापी पेट
का सवाल है ।
जिन मलिन मजदूर निम्न
आर्थिक स्तर से अधिकांश
बलात्कारी आते हैं ।
उनके बीच रहन सहन जाकर
देखिये ।
शराब औरत और सेक्स
बस
तीन लक्ष्य है
तीन मंज़िलों को एक
साथ जीत
लेना ही सर्वोत्तम सुख है।
हमने चेयरपरसन का चुनाव
लङा और एक लाख
परिवारों में आँगन रसोई
घेर बाङे और
दुकानों फैक्टरियों तक में
गये ।
नारा था मेरा शराब बंद
जीना शुरू।
औरतों
पर लगातार दबाब
था पुरूषों का कि सुधा दी
सुनने ना जायें ।
चूँकि।
कुछ ही समय पहले हमने
शराबबंदी आंदोलन सफल
चलाया था ।
तो
हर ओर से शराब की बाढ़
ला दी गयी ।
तीन महीने हर वोटर शराब
की कई कई बोतलें घर में
पा रहा था ।
और
प्रत्याशियों के टैंट और
तहखानों पिछवाङों में
नाश्ते के नाम पर जमकर
शराब पी रहे थे लोग।
कोई मजदूरी पर
नहीं जा रहा था ।
औरतों के भरोसे चूल्हे जल रहे
थे ।
औरते पिट रही थी।
औरतों पर पाशविक यौन
अत्याचार हो रहे थे।
गली गली सिर फुटौवल
बस्ती बस्ती शराब
की भभक ।
हर वोटर धुत्त ।
किसी को होश नहीं ।
दिखावे
को छोटी मोटी पकङा ध
बाकायदै रजिस्टर मेनटेन थे

प्रत्याशियों पर जब
हमारी शिकायतों का दव
बना तो ।
परची सिस्टम चल पङा ।
मजदूर किसान जाते और
प्रत्याशी के चमचे
की दस्तखत संकेत
की परची लेते ठेके पर जाते
परची ठेके पर
जमा होती वहीं अंडा प्य
नमकीन मिलता पीते
खाते चले आते । हर वोटर हर
प्रत्याशी की परची पी र
डिक्कियों में बरामद
हुयी तस्करी की शऱाब।
वोटिंग के दिन पोलिंग
ऐजेंट हाथ पकङ कर वोट
डलवाते रहे कभी चुपके
कभी सामने ।
ड्यूटी सुरक्षा और
रिटर्निंग स्टाफ
मिठाईयाँ उङाते रहे ।
मजदूरों को शराबी कौन
बनाता है?????
जिन धनाढ्य वर्गों के
बलात्कारी पाये गये उनमें
से अधिकांश शराब
या ड्रग्स के आदी पाये गये

ये वे बिगङे नवाब
लोगों ही की बिगङी औ
थीं जो सोने का चम्मच
लेकर मुँह में पैदा हुयीँ ।
जिनके माता पिता के
पास अटूट पैसा तो रहा ।
लेकिन औलाद
की व्यक्तिगत जिंदगी में
झाँकने का वक्त
नहीं रहा ।
मौज
जश्न
और
नया रोमांचक
कारनामा ही जिनके
लिये जीने के मायने बनकर
रह गये ।
ये वे लोग थे ।
जिनके
माता पिता अपराध
बोध से ग्रस्त थे कि संतान
को समय नहीं दे पाते हैं
तो अंधाधुंध पैसा लुटाते
गये हर फरमाईश पूरी करते
गये ।
मंजिल??????
कोई नहीं
बस एनजॉय
नशा यहाँ ऊँचे से
ऊँची क्वालिटी का मौजू
रहने लगा ।
और जब बाजार के
सामानों से मन भर
गया तो ।
नौकरानी
स्टाफ कर्मचारी
सहपाठी
और राह चलती हाथ
लगी शिकार कार में
डालकर ले गये ।
कहीं भी।
फेंक दिया।
नशे का आदी इन
लोगों को किसने
बनाया??????
ये लङके सक्षम थे कोई
नया आकाश छू सकते थे
विश्व की कोई
उपलब्धि पा सकते थे ।
शराब ड्रग्स
यहाँ भी बहाना बन
ही गयी
रेप अक्सर नशे में???
घर में जिन पिताओं
मामाओं चाचाओं ने
अपनी ही बेटी का रेप कर
डाला ।
उनमें से
अधिकांश ने तुरंत ही कोई
अश्लील किताब
पढ़ी थी।
अश्लील
सी डी देखी थी।
शराब पीने के आदी थे ।
बीबी से मारपीट कलह
अनबन चलती रहती थी ।
और
या तो विधुर थे या लंबे
समय से पत्नी से पृथकाव
था।
बलात्कार एक बार नशे में
किया पापबोध
जाता रहा ।
बार बार किया
रिश्तों का बोध
जाता रहा।
नशा शराब
लक्ष्य विहीन जीवन
यहाँ भी बलात्कारी था।
ये
वे लोग थे जो कमाते थे
परिवार था संतानें थीं घर
था बीबी थी सामाजि
सम्मान था।
नशा कब शुरू किया?????
©® सुधा राजे

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