कस्तूरी सी प्रीती विदेहि
धीरे-धीरे हुए प्रेम के सब जंगल वीरान
कुछ खाए,कुछ मार गिराए , कुछ को रखा मकान
गहन गहनतम से निर्जनतम करते गए प्रयान।
निर्यात मंदारिन पकड़ नचावे मर्कट रति के पंथ
भाग मधुकरी घर-घर मांगे बांचे आशा ग्रन्थ
धीरे -धीरे छीजे मन-तन-जन निर्गुण पवमान
कुछ छल ने कुछ बल ने मरे कुछ मारे अभिमान।
इन्हीं वनों के भीतर रहती हिरणी कंचन काय
कस्तूरी मादल कुण्डलिनी सुरभित अनल बसाय
धीरे धीरे मत्त मलय से सुरभित नित्य विहान
कछु खोजे चमड़ी की दमड़ी , कुछ कस्तूरी छान
प्रणय केलि रति कर किलोल थी हिरनी संग अनेक
धीरे धीरे कंचन हिरनी लुक - छिप देखे गान
रजत हरिण ने देखा रीझा मिलन चढ़ा परवान।
समय,अहेरी धर्म - धनिक- अनुशासक के आदेश
कस्तूरी कंचन मृग छाला खोजे विजन प्रदेश
धीरे धीरे मृगा मृगी की प्रीती बनी रसखान
कीरति "वात" सुरभि ले पहुंची मृगया हेतु मचान।
विष-लेपित शर तीक्ष्ण धरे ताके नित रैना भोर
कलि किसलय तृण यत्र तत्र फैलावे जाल कठोर
कभी किलकती कभी चरे तृण कभी तके दिनमान।
उस रजनी मृग से मिल लौटी मृगी कंचना हाय!!!
ताक अहेरी छाती में मारा शर रक्तिम काय
धीरे धीरे श्वाँस थमी औचक ही निकल गए प्राण
रजत हिरन की छवि नयनों में ह्रदय लगा विष बाण।
कस्तूरी मृगछाला दोनों बेच अहेरी नगरी
धनिक प्रशासक ने छाला से बनवाई इक खँजरी
धीरे धीरे उस खँजरी पर कन्या करती गान
कस्तूरी से वस्त्र महकते मृगा चकित अनजान।
मरण मृगी का जान गया हूका रोया चिक्कार
प्रीति न करियो -प्रीति न करियो करे विजन गुंजार
धीरे धीरे मृगी छाल की ढपली की वो तान
कस्तूरी की गंध ह्रदय में गयी हरिण के कान।
विकल मृगा नगरी की ऊँची दीवारों के बीच
सम्मोहित जा पहुंचा कन्या गाती किसलय सींच
धीरे धीरे भूमि गिरा वन का हिरना नादान
नागरि कन्या चकित देखती रजत हरिण की शान।
दौड़े प्रहरी निठुर समाजी बंधो पकड़ो हलकारो
ठिठक रोकती करुणा कन्या कहे -"इसे मत मारो"
धीरे धीरे करुणा बाला मृगा मित्र भये मान
मृगी छाल की ध्वनि सुनने को नित्य मिलन शमशान।
कस्तूरी की गन्ध निभावे श्वांस संग की रीति
धीरे धीरे अमर प्रेम का यही मिला वरदान
हिरणा हिरणी हो विदेह नित मिलें करुण दालान।
एक कथा ये सत्य कथा की सुनी सुधा रस प्रीति
प्रीति अमर है सत्य सदा आखेटक लेती जीत
धीरे धीरे सुधा ह्रदय में गूंजे वो रस गान
प्रीति विदेही अमर अजर है मृगी मृगा की आन।
कोऊ ताके स्वर्णिम मृगछाला मांस कछुक संधान
कोऊ ताके कस्तूरी यौवन कोऊ प्रेम की आन
अश्रु भरे मन कलम लिखे नित सुधा पीर रस गान
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