Sunday 30 November 2014

सुधा राजे की अकविता :- 2. ओस और मैं।

जब पहली पहली सरदी और
पहली तनहाई का अहसास महसूस हुआ 'तब
कोई कहीं धुंध के पार है ऐसा महसूस
भी हुआ '
थोङा सा अलग औरों से तनिक हटकर एक
और बात थी कि हर बात यह
नहीं लगा कि कोई अजनबी नया आने
वाला है 'बल्कि कुछ अजीब
सी ही अनुभूति रही कि मुझे
ऐसा लगता रहा कि कोई है जो मुझसे
बिछुङ गया है 'कब और कहाँ तो याद
नहीं किंतु हर बार पीले फूल
गुलाबी सरदियाँ और लाल
बोगोनबेलिया के गुच्छों के बीच झाँकते
नीले धुँध भरे आसमान के दामन पर तैरते
सफेद रीते बादलों में उस बिछुङे हुये एक
अपने की सदा सुनाई देती रही और हर
शाम सूरज डूबकर अहसास कराता कोई है
जो कहीं यूँ ही मुझसे बिछुङ कर चुपचाप
बैठा यूँ ही मेरी तरह सूनी झील के तट पर
आखिरी नौका के किनारे लौटने तक चप्पू
की आवाज और सायों के काले होते जाने
तक एक टक क्षिज पर सुरमई होते जाते
आकाश के बीच पहला तारा निकलने तक
चुप बैठा मुझे महसूस करता रहता है '
हर बार एक अजीब सी गंध और
उसकी कशिश खीच लाती मुझे उगते सूर्य
को सतखंड महल की छत या पहाङी से
निहारने को और डूबते सूरज की किरणों के
झील में समाकर सिसकने को महसूस करने '
ये गंध हर बार
कविता बनी कहानी बनी और बनी कई
बार चित्र मूर्ति छवि और 'जब जब
लगा कि आसपास कहीं ऐसी ही कशिश
भरी गंध आ ऱही है '
मैं हर अजनबी को निहारने लग
जाती कहीं ये
तो नहीं कही वो तो नहीं '
किंतु वह कहीं नहीं होता ।
एक बार छलावे की तरह कोई
'चेहरा आकार लेता और छूते ही पानी पर
रंग के वलय की तरह विलीन हो जाता ।
मुझे जब यकीन हो गया कि यह गंध अनंत है
अदेह है और मेरे लिये कोई नहीं आने
वाला कहीं से '
मैं बहुत रोयी बहुत उदास हुयी और
अपनी गंध छिपाने के लिये एक आवरण ओढ़
लिया ',
बहुत बरसों बाद पता चला कि यह
ऐसा बिछोङा था जो कभी मिलन
नहीं लाता '
अब हर शाम वह हूकता दर्द लिये विरह
की हिलकी भरकर सिसकती झील नहीं '
पर मैं अब भी उस दर्द को खोजने लग
जाती हूँ जब सरदियाँ सुलगने लगती है
अलाव में और गरमियाँ बुझने लगतीं है
घङौंची भर पानी में '
मेरी महक छिपाती मैं जान चुकी हूँ ये
मेरा बिछोङा 'मेरे अपने ही वजूद से
मेरी अपनी गंध से कभी मिलन नहीं होने
वाला तलाश अब नहीं पर ये किसने
कहा कि ये मेरा भ्रम है?
हर सच प्रमाणित कब हुआ?
हर चीज जोङे में कब होती है? हर
बिछोङा मिलन कब लाता है ।
हाँ मैं जी सकती हूँ बिना किसी तलाश के
सरदियों की शाम और बरसात की भोर में
भी तनहा क्योंकि वह गंध अब मुझे अपने
भीतर से आने लगती है जब दर्द बढ़ने
लगता है मैं गुनगुनाने लगती हूँ तब
©®सुधा राजे।


सुधा राजे की अकविता :- 1. ओस और मैं।

जब आसपास के शोर में मैं डूबने लगती हूँ तब
'और जब अपने भीतर की विराट
खामोशी से मैं ऊबने लगती हूँ तब '
जब चाँद मुझे घूरने लगता है और तारे
मुझपर हँसने लगते है तब '
सहसा कहीं से एक टुकङा तनहाई आकर मुझे
थाम लेती है और आसमान भर एकान्त
मेरा हो जाता वहाँ जहाँ हर तरफ सब
कुछ न कुछ बोल रहे होते हैं मुझे अकस्मात
सुनाई देने लगती हैं
'घुटी हुयी सिसकियाँ और 'मेरे कदम मेरे
बेजान शरीर से निकल कर बाहर उङने
लगते हैं सलाखों को मोङकर
उंगलियाँ वीणा के तारों तक
जा पहुँचती है और पैरों में नूपुर बाँधकर
थिरकने लगता है दर्द 'झरने लगती है
कविता ऊँची प्राचीर पर बादलों से और
भीग जाता है सारा प्रासाद खंड
वहाँ जहाँ मेरा बेजान बजन पङा हिल
भी नहीं पाता मैं उङकर सारे ब्रह्माण्ड
में खोजने लगती हूँ उसे जो मुझसे
सदियों पहले कहीं बिछुङ गया था 'रंग
गंध शब्द रूप स्पर्श और अनुभूति से परे
'सारा वायुमंडल मेरी रीती बाहों के
देहविहीन अस्तित्व में समा जाता है यूँ
जैसे मैं हूँ अंतरिक्ष का सन्नाटा और आकाश
के पिंडों के टूटने का शोर एक आर्तनृत्य
एक आप्त रपदन के बाद की 'वीरानी में
जब कभी 'नीला सागर मेरे पैरों को छूकर
पीछे हट जाता है मैं विराट से पूछने से रह
जाती हूँ "मैं ही क्यों "क्योंकि मेरे उत्तर
बिखर जाते है शब्द के सुर बनकर
एकाकी मेरी ही तरह कण कण खंड खंड
घुलते हुये आकाश की तरह मैं हूँ
ही कहाँ ',एक अहसास के सिवा कुछ
भी तो 'रातरानी के सारे फूल पारिजात
की सारी कलियाँ झरकर महक उठतीं है
और सारी दूब भीग जाती है मेरे आँचल
की तरह 'फिर एक और गहरी स्याह रात
की रहस्यमयी बातें सुनकर चुप रह जाने के
लिये 'दूर तक भटकते बिछुङ गये झुंड से पँखेरू
की तरह अंधेरी रात में सफेद परों पर 'गंध
और दिशा की तलाश में 'परिपथ है कहाँ?
कुहू की कूज से न कभी सन्नाटे टूटते हैं न
जागती है कभी खामोश चाँदनी ओंस के
सिसकने से 'डूब कर रो लेना और फिर
चुपचाप सवेरे 'किरणों के साथ
खो जाना 'चाहे वह मैं हूँ या ये ओंस
'क्या फर्क पङता है
©®सुधा राजे


Thursday 27 November 2014

सुधा राजे का लेख :- स्त्री और समाज :- पितृसत्ता और स्त्रीवाद

और जिन घरों में सास ननद
देवरानी जेठानी नहीं होती वहाँ???
और जो अविवाहित लङकियों पर ज़ुल्म
तेज़ाब रेप किडनैप चोरी करके वेश्यालय
बेचना और छल से प्रेम के नाम पर
छोङना होता है वह?? और
जो नन्हीं लङकियों की लाशें जगह जगह
नोची खाई मिलती है वे??
ये "पुरुष पुरुष का दुश्मन कम है??? सबसे
अधिक पुरुषों की हत्यायें युद्ध
डकैती गैंगवार सङक
दुर्घटना किडनैपिंग और
आतंकी वारदातों में होती है???
क्यों नहीं सारे पुरुष एकजुट होकर
अपनी जमात बिरादरी को सुधार लेते?
कम से कम पुरुष तो पुरुष को न मारे??
पुरुष घर में पिता से झगङता है
"नशा शराब बीङी सिगरेट और
दुश्चरित्रता की वजह से
""""अगली बात होती है जमीन और
मकान और
रुपया """"स्त्री की भूमिका तो खुद
""पुरुषों ने लिखी कि "जहँ लगि नाथ
नेह अरु नाते पिय बिन तियहिं तरणिहु
ते ताते """""फिर जरूरी तो नहीं हर
घर में सब भाई राम लखन हों? या सब
पिता 'चरित्रवान और उदार?? अकसर
बहू पर जुल्म दहेज की माँग से शुरू होकर
''नौकरानी बनाकर कैद करने मायके
को पूरी तरह त्यागने तक होता है
''''जो स्त्री विरोध करती है घर तोङू
कहलाती है? ""जबकि ये जिम्मेदारी उस
पुरुष की होनी चाहिये कि वह
उसकी रक्षा करे """ये
टीवी सीरियलों को आम घरों पर लागू
न करें ''उनकी कहानी प्रायः पुरुष
लिखी हुयीं हैं
ब्रह्मण ग्रंथ गृहसूत्र पुराण
स्मृतियों का सहारा लेकर "उत्तर
वैदिक काल से ही "वैदिक कालीन
मातृसत्तात्मकता को ध्वस्त करने के
षडयंत्र चालू हो गये थे जिसे बल
दिया विदेशी आक्रमण के बाद
स्त्रियों के अपहरण बलात्कार और
वेश्या बनाने ने ।अधिक से अधिक पुरुष
पैदा करना अधिक तर घरेलू कार्य
'कूटना पीसना धोना बिलौना छानना फटकना और
पकाना माँजना पीसना जल भरना सब
स्त्रियों पर ""कर्तव्य कहकर लाद
दिये गये "संतान का पिता कौन है इस
बात के निर्धारण हेतु स्त्री के
पुनर्विवाह और विधवा के पवित्रता के
नाम पर हक छीने गये 'कुमारी भोगने
की ललक ने 'स्त्री पर शर्तें
थोपी विवाह पूर्व प्रेम न करने और
पतिव्रता रहने की फिर 'बाल विवाह
कर दिये जाने लगे कि ''कहीं प्रेम न करे
कहीं अंतरजातीय विवाह न करे
कहीं 'विवाहपूर्व माँ न बन जाये '।और
बाहर बलात्कारियों "स्त्री चोरों और
बहलाकर प्रेम में फँसाने वालों का "डर
दिखाकर रक्षा सुरक्षा के नाम पर
स्त्री को """कैद करके पढ़ने और
यात्रा करने और कहीं भी आने जाने तक
से वंचित कर दिया गया "आज "ये
संक्रमण काल उसी फसल का फल है
"क्योंकि दिमाग तो कुदरत की देन है ।
मातृत्व की अतिरिक्त
पीङा मजबूरी और बच्चे
की जिम्मेदारी से उपजे "घर के भीतर
रहने के स्त्री के जननीपन से लाभ लेकर
"युगों से पुरुष छल करता चला गया 'और
स्त्री "सबकुछ जानकर या अनजाने में
"छल "मातृत्व परिवार और के बीच
''बाहरी आक्रमण से बचने को कैद और कैद
से बगावत करके बाहरी आक्रमण
सहती रही घरेलू कलह "गौर से देखें
तो "नशा फिजूलखरची लालची दहेज
लोभी परिजन और स्त्री पर
तानाशाही की पुरुषवादी क्रूरता की देन
है "माना कि 'अनेक घरों में
स्त्रियाँ आपस में झगङतीं है "परंतु "वजह
"कैद कमशिक्षा और बाहर अवसर न होने
की घुटन से शुरू होती है ।न मायके
जाकर रह सकतीं है न "पंद्रह
आदमी की गुलामी करने की दम है "न
पृथक रहे बिना पति बच्चे अपने हो सकते
हैं तब???
पितृसत्ता क्यों है?? क्योंकि बाहर
भेङिये बनकर घूमते पुरुष से बचाने के नाम
पर कैद करके रखी जाती औरतों की हर
आजादी घर में छीन ली जाती है

एक लङकी को छेङने की वजह से
सारा मुजफफनगर जल गया??
तो कितनी लङकियों को कैद मिली?
जल्दी शादी? बलात्कार? और बाद में
पति की निगाह में हीनता!!!!!!!! तो यूँ
कैद घुटन में कोई कैसे "खुश रहे? और
दुखी कैसे सुख बाँटे?

लङके प्रेम की बातें करते है ""लङकी से
होंठ सिलवा दिये जाने की आशा?
पति फ्लर्ट करता है परस्त्री??
पत्नी से सावित्री की आशा?? दामाद
का देवता सा स्वागत?? बहू में बंधुआ
मुफ्त की दासी?

पत्नी ही झगङों की जङ है अगर आप
यही कहना चाहते है तो ""ये
टीवी सीरियलों की भाषा है
""आटा नहीं पिसकर आया मुन्ने की फीस
जमा नहीं 'ननद के बेटे का भात
नहीं गया और बजट खत्म!!!!! सिगरेट
शराब देर रात बाहर रहना और मायके
से तवज्जो न मिलना भाई की ससुराल के
कैदी हालात ""न जाने आम औरत
सहती क्या क्या है गर्भवती तक
को पीटते हैं पुरुष!
रहा सवाल औरतों को दोष न देने
का????तो तरस आता है आप पर कि आपने
नहीं सुना सुख सागर '''अलिफ
लैला ''तोता मैना और "न ही धर्म के
उपदेश पर गौर किया औरत नर्क
का द्वार है माया है 'झगङे की जङ है
और मोह की पिटारी है।"मतलब??
नीयत खराब पुरुष की???परदे करे
औरते??काबू में नहीं चरित्र पुरुष का??
बेची खरीदी नचाई जायें औरते??प्रेम
निभा नहीं सका पुरुष?कुलटा कहलायें
औरतें और हरामी संतान छोङकर भागें
कायर पुरुष??और पतिता कहलायें
औरतें??भेङिया बनकर घूमे पुरुष?और बंद
करके रखी जायें औरतें?कितने इलजाम
तो अभी आपने ही औरत जात पर धर
दिये?एक दो दस बीस पुरुष का कार्य
निजी अपराध??और चंद
औरतों की कमी बेशी का ठीकरा फोङा जाये
पूरी ""स्त्री क़ौम पर???
पिता के घर बेटी होने पर मान सम्मान
के नाम पर स्वावलंबी बनाने री बजाय
"जात बिरादरी देखकर औकात के दहेज से
"""न कि प्रेम से विवाह कर
दिया जाये???? और पति के घर रुपये
कमाने का ताना दिया जाये??
पितृसत्ता क्या है "लङकी बनकर
सोचना।
आज भी जानबूझकर ऐसे हालात घर से
बाहर तक पुरुषों की पूरी संगठित
साजिश का परिणाम है कि लङकियाँ न
पढ़ सकें न खेल सकें न जॉब या बिजनेस करें
"वरन शादी करके बेटा पैदा करके
रोटी पकाये और घर सँभाले,,,, जिस घर
पर न हक न हुकूमत?


Saturday 22 November 2014

सुधा राजे का लेख :- ""स्त्री बीज शोषण के ""

Sudha Raje
पचास करोङ स्त्रियों के लिये देश
की """"क्या नीति है?????
पिछली सरकारों के पैंसठ साल बनाम
""पाँच साल ""अब नयी सरकार के
"""गिनती चालू है """""
एक करोङ यूपी वासी स्त्रियाँ कब
हिसाब
माँगेगी जाति बिरादरी मजहब से
ऊपर उठकर """"माँ बेटी बहिन
की भावना पक्षपात से ऊपर उठकर
"""""नारी प्रकृति और
जननी """होने की जाति के लिये
सुरक्षा न्याय और शांति पूर्ण
सृजनात्नक अवसर????
We can't wait for Beasts """
उठो और गाँव गाँव महिला दल बनाओ
",,मर्द पर औरत फ़िदा होती है मर्द
के साये में औरत बेखौफ़ सृजन करती है
मर्द की परवरिश में औरत परवान
चढ़ती है ",",","बलात्कारी ""मर्द
नहीं
कोहनीबाज नोंच खसोट करने गंदे
इशारे गीत और परस्त्री को जबरन
छूने की चेष्टा करने वाले मर्द नहीं ।
मर्द का अर्थ यौनिकता स्े
नहीं पराक्रम वीरता धीरज साहस
परहितार्थ जांबाजी और दिल
दिमाग से ताकतवर होकर ताकत
को समष्टि की सुरक्षा हेतु लगाने से
है """""""
बलात्कारियों को समूल नष्ट करने
वाले कृष्ण ही पुरुष हैं भीम पुरुष है
लक्षमण पुरुष हैं और पुरुष है वे सब
पुलिस सेना स्वयंसेवक जवान प्रौढ़
जो "स्त्री के अपमान को सहन
कभी नहीं करते अपराधी को दंड देते
हैं ।
वे सब पुरुष है जिनको परवाह है
अकेली दुकेली अच्छे बुरे मौसम में
आती जाती स्त्री को कोई नुकसान न
हो । जो चलते मार्ग पर
स्त्री को पहले निकलने देते हैं वे पुरुष
है वे पुरुष है जो स्त्री बूढ़े और
विकलांग के लिये रक्षक है और बस
ट्रेन ऑटो में उनको जगह देते है
सामान उतारने चढ़ाने में मदद करते हैं
"""वे पुरुष हैं जिनकी कलाईयों में
छेङखानी करने वालों के पंजे मरोङने
की ताकत है
तो डूबती माँ बेटी को बचाने
का साहस भी है ।
मर्द और पुरुष केवल यौनिकता के शब्द
जो समझते हैं
उनको लङकियाँ कभी आदर
नहीं देती प्यार नहीं करतीं ।
कोठे पर जायें या धोखा देकर घर
बसा लें "।
माँ बहिन बेटी पत्नी बहू
भतीजी भाँजी भाभी दोस्त
का प्यार इन राक्षसों के लिये है
ही नहीं """""""""
मर्द का बच्चा है तो औरत का दिल
जीतेगा जिस्म को बिना विवाह के
कभी नहीं छुयेगा ।
मर्द के साथ महफूज महसूस
करती लङकी के दिल में हर उस रक्षक
पुरुष के लिये आभार है कृतज्ञता है
नमन और प्यार है श्रद्धा और स्नेह है
विश्वास है """""जो घर मेले बाजार
कॉलेज बस ट्रेन दफ्तर में
""उसको यकीन दिला पाते हैं
कि """मैं हूँ न """
दिल से हर लङकी चाहती है कि जब
वह घर में अकेली हो एक मर्द
उसकी रक्षा के लिये
हो पिता पति भाई पुत्र कजिन
या पङौस का मुँहबोला नाता दोस्त
सहपाठी """""""
जब वह बाहर जाये तो भी कोई
अपना बेहद करीबी भरोसेमंद साथ
रहे ।
पर कौन?????
और किस पर भरोसा करे??
स्त्री के सब दुख और रहस्य हृदय में
रखकर भी कभी कहीं मुँह न खोलने
वाला मर्द दोस्त सहपाठी """"""
हर वक्त टोक टाक करते रहने पर
भी पूरी तरह उस स्त्री के पहनने
खाने पीने सोने पढ़ने की चीजें
जुटाता बाप और बङा भाई ....
दिन रात चिढ़ाता धगङता लेकिन
हर समय साथ देता अनुज ""
हुकुम चलाता लेकिन सेवक की तरह
फरमाईशे पूरी करने को दिन रात
खटता पति ।
साहस बँधाता और मजाक
उङाता कलीग सहपाठी ।
स्त्री कोई ""एलियन नहीं है "वह
पुरुष वादी समाज की आधी आबादी है

लगभग तीन अरब स्त्रियाँ
मर्द केवल बलात्कारी हत्यारा होने
का मतलब है तो बाकी सब फिर?????
कौन हैं?
मर्द शब्द को बङे ही सीमित मायनों में यौनसंबंध स्थापित करने में सक्षम
नर मात्र होने से ही 'रूढ़ 'होकर लिया जाने लगा है ।
भारत जैसे देश में लोग भूल क्यों जाते हैं कि "अर्जुन "को नपुंसक होना
पङा और शिखंडी भी नपुंसक था, किन्तु वीरता पर कोई सवाल दोनों के ही कभी
नहीं उठाया गया ।नवग्रहों में शनि राहु केतु और बुध को भी नपुंसक कहा गया
है ज्योतिष में किंतु सबसे बलवान यही ग्रह माने भी गये हैं ।
पौरुष शब्द का अर्थ परुष अर्थात कठोर कर्कश बलवान और वीर से ही ध्वनित
होता है ', बात बात पर बचपन से ही मध्यम वर्गीय और गरीब परिवार की
लङकियों को ताने और हिदायतें दे दे कर सिखाया जाता है कि ""तेरी फलां कमी
अमुक गलती कोई मर्द 'तो कतई बर्दाश्त ही नहीं करेगा और अगर कोई "मील्ला
या मसालापिसऊआ मिल गया तो चलाती रहना अपनी अपनी "
इसी तरह के मिलते जुलते वाक्य सुनकर औसत कसबाई छोटे नगरों और गांवों की
लङकियाँ बङी होतीं है । मर्द स्त्री से दबकर नहीं रहेगा, मर्द औरत की कही
सलाह या बात नहीं मानेगा, मर्द औरत के साथ दया और सहानुभूति नहीं बल्कि
रुतबा हुकूमत और आतंक का व्यवहार रखेगा, """"""आदि इत्यादि बातें इस तरह
फ़िजा में तैर रही हैं कि न चाहते हुये भी दुष्ट होते जाते हैं कम या औसत
बुद्धि के युवा और तबाह कर लेते हैं अपने ही हाथों अपना परिवार '।
एक अज़ीब सी दुष्टता जबरन सिखाई जाती है "कुछ मुंबईया फिल्मे सिखातीं है
बाकी सब 'खुद घर और पास पङौस की औरतें तक प्रेरित करतीं है ।छिः क्या
लौण्डियों वाली तरियों रो रिया!!!!
छिः क्या पिंकी बना फिर रिया!!!
क्या छोकरी का माफिक माँ से डरता है पिओ बिन्दास '

और जब किशोर से युवा और युवा से प्रौढ़ होते होते सही गलत की परख होती है
तब तक देर हो चुकी होती है ।
प्रकृति की योजना में माँ कोनल होकर पालनहार और पिता कठोर होकर रक्षक
होयही सृजन और संसार के अनवरत रहने का नियम रहा ',इसे इसी अर्थ में समझा
जाना जरूरी भी है 'आज का हर लङका कल के लङके लङकियों का एक रक्षक पिता
होगा ।
जिस तरह लङकी को टोका और सिखाया जाता है उसी तरह लङकों को भी अब टोकने और
सिखाने की जरूरत है और यह काम लङकियाँ यानि आज की मातायें बहिनें बुआ
भाभी मौसी काकी ताई और दोस्त सहपाठी करेंगी ।""
मर्द या नामर्द औरत या किन्नर नहीं ""मनुष्य बनो पहले जिम्मेदार मनुष्य
साहसी और विश्वसनीय मनुष्य "
©सुधा राजे


Wednesday 19 November 2014

सुधा राजे का लेख --" पुरुषवाद""

अच्छे पुरुष
सुबह उठते हैं और पत्नी को टहलाने ले जाते हैं दूर तक पीछे पीछे या साथ,
पत्नी के आगे आगे होती है कुत्ते की जंजीर और कुत्ते की चेन पकङ कर खींचे
रखते "अच्छे पुरुष बतियाते हैं सिर्फ, पत्नी की सुन्दरता, बच्चों के लिये
निवेश और घरेलू सामानों की सूची के बारे में ।

अच्छे पुरुष सुबह पहले उठकर 'चाय बनाते हैं दूध पकाते है और अलार्म की
तरह सब छोटे बङे बच्चों को समय से जगाते हैं और 'जोङों के दर्द से परेशान
माँ और खाँसी से बेहाल बाबूजी को बेड टी गरम पानी देकर बगीचे की सिंचाई
करते हैं ।

अच्छे पुरुष जब तक बच्चे बूढ़े नाश्ता नहीं कर लेते पत्नी के साथ रसोई घर
के कामों में हाथ बँटाते है । सब्जी धोना आटा गूँथना और प्लेट टेबल पर
रखना 'बच्चों को स्कूल या स्कूल वाले वाहन तक छोङने जाना ।


अच्छे पुरुष
पत्नी के साथ जो भी जैसा भी नाश्ता मिले खा लेते हैं और जरूरत पङने पर
बना कर भी खिला देते हैं और यदि घर नाश्ता न भी मिले तो दफ्तर या दपकान
या अपने मिल कारखाने की कैण्टीन से चाय ब्रैड पर भी गुजारा खुशी खुशी कर
लेते हैं ।

।अच्छे पुरुष
खुद कभी गुस्सा नहीं करते अलबत्ता बङबङ करती पत्नी 'झल्लाती माँ और
ठुनकते बच्चों का मूड ठीक करने के लिये हँस कर माहौल को हलका बनाते और
'गुस्से में बङबङाती पत्नी के टेढ़े मेढ़े चेहरे पर फ़िदा होते रहते हैं



अच्छे पुरुष अपनी कमाई का सारा पैसा रुपया सीधे सीधे पत्नी की झोली में
रखकर 'फुरसत हो जाते हैं और महीने के आगामी दिनों के लिये पाई पाई से
हिसाब देकर पेट्रोल और बाहर की चाय तक के पैसे संकोच के साथ माँगते रहते
हैं ।


अच्छे पुरुष
समय से घर से निकलते हैं और बिना सूचना दिये कहीं नहीं जाते ।ठीक समय पर
कार्यस्थल से घर वापस आते हैं वाहन कभी चालीस की रफ्तार से आगे नहीं
चलाते और "ऊपरी कमाई या ओवर टाईम के पैसों से घर आते समय पत्नी बच्चों की
पसंद के उपहार या खाद्य पदार्थ रास्ते से लेकर घर आते हैं ।


अच्छे पुरुष
कभी पत्नी के सिवा किसी दूसरी स्त्री को घूरकर नहीं देखते और हमेशा दीदी
बहिनजी माताजी कहते हैं या समझते हैं 'कोई अगर गले पङना भी चाहे तो गंदगी
समझकर पीछा छुङाते हैं ।
!
!
पत्नी के साथ हर ससप्ताहान्त पर बाहर घूमने जाना और बच्चों को चिज्जी
खिलाना सिनेमा दिखाना नियम से पूरा करते हैं और सापितीहिक साफ सफाई में
मेहनत वाले सब काम पहल करके खुद करते हैं.
!
अच्छे पुरुष
सास को माँ और ससुर को पिता कहते हैं और समझते हैं । साले साली को अजीज
भाई बहिन समझते हैं ।
अपनी माँ की चिढ़ और पिता की शिकायतों की परवाह किये बिना ससुराल वालों
से मिलवाने समय समय पर पत्नी को ले जाते हैं हर समारोह जो ससुराल के
नातेदारों के यहाँ होता वहाँ जाते है और उपहार भी देते है कामकाज में हाथ
भी बँटाते हैं और जरूरत पङने पर मदद भी करते हैं तन से मन से धन से ।

अच्छे पुरुष
न पत्नी का जन्म दिन मनाना भूलते हैं न विवाह की वर्षगाँठ न बच्चों का
फीस डे न जन्मदिन और न ही माँ पिताजी की रोज की दवाई रात को पैर दबाना
सिरहाने पानी रखना 'बीमे और आरडी की किश्तें भरना और न ही 'बहिन को
मनिऑर्डर भेजना और न ही बच्चों का होमवर्क और पेरेण्ट्स मीटिंग भूलते हैं


अच्छे पुरुष
को हमेशा पता होता है कि उसकी पत्नी की पसंद का रंग गंध स्वाद और जरूरत
दैहिक मानसिक और दैनिक जीवन की क्या है वह बिना कहे ही सब निभाता और पूरी
करता है


अच्छे पुरुष
अपने हर खाते पेंशन 'जमीन मकान और निवेश में "नोमिनी "पत्नी को बनाते हैं
और मकान तो सदा ही पत्नी के नाम कर देते हैं हर खाता जॉईन्ट और निवेश भी
सहकारी करते हैं ।

अच्छे पुरुष
पत्नी की हॉबी हुनर और प्रतिभा को अवसर देते हैंऔर कमी या नुक्स पर कभी
मजाक नहीं बनाते बल्कि धैर्य से टालकर उत्साह बढ़ाते हैं ।पत्नी की उदासी
दूर करते हैं और खुशी देने के हर संभव प्रयत्न करते हैं ।बेटा बेटी में
भेद नहीं करते हिंसा मारपीट गाली नशा नहीं करते ताने या दहेज तो सवाल ही
नहीं आता ।

"
!
!अभी बाकी है और भी किंतु
अंत में अच्छे पुरुष
हैं कौन?
सबको अच्छी पत्नी की 'सीमा और गाईड लाईन याद है '
किंतु
क्या "ये सीमा खुद पर भी लागू होती है?
©®सुधा राजे


Saturday 15 November 2014

लेख::-""स्त्री और समाज।""सुधा राजे

स्त्री और समाज
सुधा राजे का लेख
""""""""""""""""""
वेश्या? तवायफ? रंडी? रखैल?
गाली नहीं हुज़ूर ',देश की एक बङी जनसंख्या में रची बसी स्त्रियों की
हक़ीकत है!!!!!!!!!
°°♦°°♦°°
भारतीयों को बात बात पर हवा पानी दोस्तों परिजनों तक को गाली देने की आदत
है 'और ग़ज़ब ये कि लगभग सब गालियाँ "स्त्रियों "को लक्ष्य करके दी जाती
हैं और उस पर रोना ये भी कि अपने स्वयं के परिवार की स्त्रियों के लिये
ठीक वैसी ही गालियाँ जब कोई दूसरा दे तो 'मरने मार देने पर उतारू!!!!!!
गणिका वेश्या नगरवधू नर्तकी तमाशेवाली नचनिया और बेङनी पतुरिया और तवायफ
रंडी और न जाने किन किन बदनाम संज्ञाओं से जानी जातीं हज़ारों लाखों
स्त्रियों के जीवन का सच है "देह व्यापार "कुछ दशक पहले तक यह कलंक केवल
महानगरों और मेट्रोपॉलिटन शहरों तक ही सीमित था 'किंतु इंटरनेट और
टेलीविजन मोबाईल क्रांति सङक परिवहन और रेल परिवहन के विस्तार के साथ ही
'
''देह व्यापार का कोढ़ "
छोटे नगरों और कसबों तक भी फैल चुका है। अपने विकृत और सबसे खराब रूप में
यह हाईवे किनारे के गांवों में पहले से ही मौज़ूद था, फिर कुछ जातीय
जनजातीय पारंपरिक व्यवसाय के रूप में सारी शर्मलाज ग्लानि और सुधारेच्छा
छोङकर पीढ़ियाँ बदलता रहा ।

कितनी अज़ीब सी बात है न!!!!!!!
आज लोग बङी बङी बातें करते हैं 'दलित शूद्र सवर्ण 'जनजातीय नागर देहाती
'परंपरा के अच्छे बुरे व्यवसाय समझे जाने के कारण हुये भेदभावों को
समाप्त करके 'शोषित 'वर्ग को संरक्षण देकर समाज में आगे और मुख्य धारा
में रखने के लिये आवश्यक हर उपाय को अपनाने और कानूनी बल देकर सबको मानने
पर विवश करने की!!!!!!!!
किसी को ""शूद्र या दलित जाति ""सूचक शब्द कहने पर 'एक्ट लग जायेगा सजा
होगी ज़ुर्माना होगा!!

किंतु "किसी स्त्री को एक बार किसी भी कारण से "देहव्यापार ''में धकेले
जाने के बाद ''वेश्या ''का नाम देने के बाद न तो स्वयं उसकी वापसी संभव
है, न ही उसकी संतानों की????

कम से कम दो तीन मामले ऐसे हैं जहाँ की हमें जानकारी है कि वह लङकी
मेधावी छात्रा थी 'पढ़लिखकर पीएचडी की लीलिट् किया 'प्रोफेसर हो गयी,
विवाह किया ',किंतु
पूरा नगर जानता था कि वह 'तवायफ की बेटी है 'और इसी कारण कॉलेज में उसे
लगातार फिकरे 'सेक्स आमंत्रण 'सुनने पङते रहे, उससे बात करते ही 'लङके
बदनाम हो जाते और लङकियों को परिजनों की चेतावनियाँ मिलने लगतीं । विवाह
टूट गया और बेहद सुंदर बेटी लेकर वह बूढ़ी माँ के साथ रहने लगी
',पारिवारिक मैत्री के कारण दूसरे प्रोफेसर की "रखैल का खिताब मिला "और
वह एक लेखिका होकर भी साहित्य जगत में अस्पृश्य ही रही ।
मन हमेशा उसके संघर्ष को नत मस्तक रहा, किंतु समाज के सामने कितनों का
साहस रहा कि वह किसी भले के घर सच खुलने के बाद आ जा सकती?
दूसरे मामले में उसकी माँ नर्तकी थी 'बेटी का प्रेमआसक्ति में विवाह हुआ
रईस युवक से और परिणाम स्वरूप उस युवक को परिवार ने बहिष्कृत किया
बिरादरी ने भी दस में से पाँच संतानों का विवाह हो नहीं सका, एक का विवाह
होकर बेटी को ससुराल छोङनी पङी, 'दूसरी बेटी के पति ने दूसरी शादी कर ली
और नर्तकी की दौहित्री होने के कारण परिवार से बाहर ही रहना पङा उस लङकी
को । लङके को एक दरिद्र घर की लङकी से विवाह केवल जाति में मिलने के लिये
करना पङा, और तब भी ',चौथी पीढ़ी के विवाह और सामाजिक जीवन पर उसका 'असर
ये है कि पीठ पीछे लोग बातें बनाते हैं और रिश्ते 'टूट जाते हैं ।

सवाल है कि जब "नर्तकी तवायफ या वेश्या होना इतना बुरा और दूरगामी पीढ़ी
दर पीढ़ी होने वाला बुरा प्रभाव है तो कोई स्त्री "क्या सहर्ष वेश्या
बनती होगी???
©®सुधा राजे


Monday 10 November 2014

सुधा राजे का लेख :- " दिखावा या प्रेम???"

दैहिक संबंध बनाना अगर प्रेम होता तो हर ग्राहक से वेश्या को और हर भोगी
हुयी कालगर्ल या वेश्या से "वेश्यागामी पुरुष को "प्रेम? होता ।
मनुष्य होने के अपने बंधन और अपनी स्वतंत्रतायें हैं जिनमें से एक है कि
कोई "मर्द ये नहीं चाहता कि मेरी पत्नी प्रेयसी और सहवासिनी को कोई दूसरा
पुरुष ""उस ""नज़र से देखे जिससे वह अपनी स्त्री को प्रेम करता और दैहिक
संबंध बनाता है ।
जब एक पशु कुत्ता बिल्ली गधा और सुअर सरेआम यौन संबंध बनाते हैं तो 'सभ्य
मानव ऐसी बातों से अपने अबोध बच्चों और परिवार की स्त्रियों लङकों तक को
अलग रखना चाहता है ।
कारण है ""यौन व्यवहार संक्रामक उत्तेजना फैलाता है औऱ दूसरे प्राणियों
के यौन व्यवहार असमय ही उन लोगों में भी यौन उत्तेजना ला देते है जो अभी
सेक्स करने जोङा बनाने की स्थिति में नहीं हैं ।
जरा सोचकर देखें कि ''यौन बुभुक्षित आपराधिक सोच वाले कितने ही लोग आसपास
मँडरा रहे हों तब "एक जिम्मेदार पुरुष क्या अपनी पत्नी या प्रेयसी के साथ
प्रेमालाप कर सकता है?
क्यों नहीं?
क्योंकि वह समझता है महसूस करता है कि वह जो जो कुछ व्यवहार पत्नी या
प्रेयसी के साथ करता है वह सब "वे दर्शक बुभुक्षित तमाशबीन आपराधिक सोच
वाले लोग "कल्पित करने लग सकते हैं खुद के लिये ',
यह
सुनने पढ़ने लिखने में खराब लगे पर सच कङवा होता है ',।
जो भी सचमुच आजीवन प्रेम और विवाह निभाना चाहता होगा वह पुरुष कभी अपनी
स्त्री को दूसरे पुरुषों के सामने यौनव्यवहार से प्रदर्शित नहीं करेगा ।
बल्कि वह एकान्त खोजेगा और दूसरे नरों से छिपाना चाहेगा अपनी प्रेमिका
अपनी स्त्री को ।
अनेक बार "स्त्री में यह प्रदर्शन आ जाता है
"He is my man "
और वह अपने पति या प्रेमी से एकांत की बजाय भीङ औऱ समूह में कुछ नटखट
प्रेम प्रदर्शन भले ही दिखाने लगे ।
किंतु "विवाह और परिवार बसाने के प्रति गंभीर पुरुष शायद ही कभी दूसरे
किसी नर "के सामने अपनी पत्नी प्रेयसी को "यौन व्यवहार से दिखाना चाहे '
क्योंकि वह कभी नहीं चाहता कि वह जिस नजर से उसे देखता है जो जो कल्पनाये
करता है जैसे नाते है वैसा कुछ "कोई अन्य पुरुष उस लङकी के लिये सपने तक
में सोचे '।
इसलिये
ये किस हग और लव के आम प्रदर्शन रिसर्च के विषय हैं कि ""अगले वेलेन्टाईन
डे तक टिकेगें?? या
प्रायोजित जोङे बनाये गये?
भोजन वस्त्र आवास की तरह ही "प्रेम और सेक्स भी मानवीय जरूरत है "
किंतु जिस तरह हर "अभावग्रस्त गरीब हलवाई की दुकान की प्लेटें नहीं चाटते
फिरता 'जैसे झोपङी वाले बंगलों में हल्ला बोल नहीं कर देते न दरिद्र
कपङों की दुकाने लूट लेते हैं 'वैसे
ही ।
प्रेम के अभाव में भी मानव पशु नहीं हो जाता न ही सेक्स ही प्रेम का
अनिवार्य हिस्सा है 'वरना '
वर्तमान जितने भी परिवार हैं उनमें से आधे से अधिक तत्काल बिखर जायें ।
और वे जोङे एकदम अलग हो जायें जिनमें स्त्री या पुरुष कोई एक दैहिक
असमर्थता के के शिकार हो गये या किसी कारण एक दूसरे से दूर दूर रहते हैं

प्रेम को "व्यक्त करने का आखिरी स्तर यौनसंबंध है किसी के लिये तो कोई
"दैहिक संबंध होने की वजह से प्रेम कहता है ।
मानवीय मन की जटिल संरचना में यह भी विचित्र सत्य है कि अनेक परिवार ऐसे
जोङों के हैं जिनमें जरा भी प्रेम नहीं ।फिर भी कर्तव्य निभाते सारा जीवन
साथ रह लेते हैं । और दूसरी और ऐसे भी जोङे है जिनमें प्राण लुटाने जैसा
प्यार है किंतु यौन संबंध नहीं रहे कभी ।
या बहुत जल्द सदा को खत्म हो गये ।
यौवन पंद्रह से पैंतालीस या पचपन तक की सीमित अवधि का काल है किंतु जीवन
तो सौ साल से भी ऊपर हो सकता है ।
विवाह पच्चीस ले तीस के आसपास ही अकसर लङके लङकियों का होता है ।
तो क्या पंद्रह से तीस 'और पचास के बाद के सौ साल तक के बीच की अवधि के समय "
वह जीवित न रहेगा?
जोङा तोङ देगा?या साथी से नाता तोङ लेगा?

ये "प्रेम प्रदर्शन के नाम पर "राजनीतिक नुमान्दगी से अधिक कुछ नहीं ।
बेटा बहिन बहू पौत्री दौहित्री भाञ्जी भतीजी सब प्रेम करने को स्वतंत्र हैं किंतु
"हर संरक्षक कोई गुलाम नहीं कि पाले पोसे पैसा कमाकर लगाये पढ़ाये लिखाये
सब करे "किंतु 'युवा होती है छुट्टा छोङ दे किसी के साथ भी 'दैहिक संबंध
बनाने को???
यह भी मालूमात न रे कि वह लङका कमाता क्या है कल को बीबी बच्चों को कहाँ
रखेगा क्या पहनायेगा खिलायेगा और कब तक??????
चुंबन
अगर प्रेम का हिस्सा है तो प्रेम सेक्स का और सेक्स का परिणाम संतान
परिवार कुटंब की जिम्मेदारी है जो "नाता स्थायी न हो उसके दम पर परिवार
नहीं बसाया जा सकता "।
और जो प्रेम परिवार क्रियेट नहीं करता 'अभिभावकों को परिवार में शामिल
नहीं करता वह "आवारा पशुओं के सेक्स स्वछंदता के प्रदर्शन से अधिक कुछ
नहीं ।
जितने जोङों ने सङक पर चुंबन लिये क्या वे "स्थायी जोङे हैं? या ऐसी
भावना है? शोध का विषय है ।
यौन व्यवहार जोङे के नितांत निजी एकांत की चीजें हैं ।
क्योंकि कोई सच्चा साथी कभी दूसरे को अपने साथी पर "नजर डालता उस नजर "से
कभी पसंद नहीं कर सकता ।
copy right ©®Sudha Raje



Saturday 1 November 2014

सुधा राजे का लेख :- " स्त्री और पर्वों का समाजशास्त्र।"

हर बात को नकारात्मक दृष्टिकोण और
"नारी/पुरुषवाद ''के चश्मे से
देखना समीचःन नहीं है । भाईदूज
'इसी का एक उदाहरण है ',बहुत
लोगों का मत है कि इसमें भाई
की श्रेष्ठता जतायी गयी है '
चलिये समझते है '
सर्वप्रथम तो इसकी कथा ',यमुना यम
दोनों भाई बहिन कभी पृथक होकर
रहना नहीं चाहते थे
'यमुना को लगता कि उसके भाई से श्रेष्ठ
पुरुष कोई हो ही नहीं सकता 'और वह
भाई जैसा ही 'वर 'चाहती है
नहीं तो अविवाहित रहेगी और 'यम
'समझाते हैं कि यह असंभव है बहिन
को तो विवाह के बाद घर छोङकर
जाना ही पङेगा और तब यमुना हिमालय
यमुनोत्री से मथुरा वृन्दावन आतीं हैं ।
यम वचन देते हैं कि जो भाई 'इस दिन
'बहिन के घर जाकर बहिन के हाथ से जल
लेकर यमुना स्नान करेगा उसे, और
जो बहिन के घर भोजन करके
दक्षिणा अन्न वस्त्र स्वर्ण धन देकर
बहिन के चरण पूजकर मान सम्मान
करेगा उसे पूरे एक वर्ष अकाल मृत्यु असमय
यमपीङा से "मैं यम "मुक्त
करता रहूँगा ।"बहिन के हाथ से तिलक
करवाकर ही बहिन को दक्षिणा देकर
भी "आज भाई भोजन करे "।
यह परंपरा आज विविध नामों से विविध
प्रान्तों में जारी है ।
आप कुछ भी सोचें परंतु यहाँ देश काल और
परिस्थितियों को ध्यान रखें, बृज
बुन्देलखंड सहित अनेक प्रान्तों में भाई
"छोटी हो या बङी "बहिन के चरण पूजते
हैं और कभी अधोवस्त्र नहीं धुलाते जूते
नहीं उठवाते, जूठा खाना या जूठे बरतन
नहीं छूने देते ।पवित्र व्यक्ति की तरह
हर शुभ कार्य में बहिन आगे रहती है ।
विवाह के समय भी भाई 'धानबोने
'की रस्म के साथ बहिन
की डोली को कंधा देकर "मंगलमय जीवन
की शुभकामना ''करते हैं ।
यूरोप हो या भारत अकसर विवाह के
बाद लङकियाँ घर छोङकर "पति 'के घर
रहने चलीं जातीं हैं ।
राखी "भाईदूज "मधुश्रवा सिमदारा ''
ये बहाने भाई को बहिन के घर चाहे
"स्नेहदुलार या समाज या धर्म या रस्म
लोकलाजभय 'या कर्त्तव्य
जो भी जिसको विवश करे '।
अब से कुछ ही पहले तक 'हर भाई पर ये
भार रहता ही था कि उसे "टीका कराने
जाना है ""
यह त्यौहार केवल बहिन ही नहीं भाई
पर भी समान नियम
रखता था बिना टीका कराये
''पानी नहीं पीना न भोजन करना "।
इसलिये एक दिन पहले ही बहिन के घर
पहुँच जाया करते थे भाई ।
साल में दो भाईदूज मनाई जाती है एक
होली के दूसरे दिन एक दीवाली के तीसरे
दिन । होली वाली दूज पर बहिन मायके
आ जाती और दीवाली वाली दूज पर भाई
बहिन के ससुराल जा पहुँचते ।
यह समय होता है चावल आने और गेंहूँ बोने
का "चावल ज्वार बाजरा ''और बीज
बोने के "बहिन की दक्षिणा के गेहूँ
""लेकर भाई जा पहुँचता ।
मेल मिलाप की खुशी ',हालचाल
का सिलसिला और उपहार का फर्ज़ ये सब
मिलकर बनता दिल से निकला आशीर्वाद
"दुआयें "
कि मेरा वीर जुग जुग जिये और
विजयी रहे ।
नयी फसल बोने का प्रारंभ
देवोत्थानी एकादशी से होता है और
पहला आशीर्वाद "बहिन से
लिया जाता ।
बहिन अभाव में न रहे ।अकेली और
उपेक्षित न रहे ।
दरिद्र और दुखी न रहे ।भाई भूल न जाये
कि उसकी हर शुभ शुरुआत पर सबसे पहले
बहिन का आशीष जरूरी है ।
मनीषियों ने सोच समझकर त्यौहार रचे
।लोगों ने कालान्तर में विकृत कर डाले ।
सब बंधुओं को आज भाईदूज पर
शुभकामना नमन और 'सन्देश कि ""पहल
कीजिये रिश्ता चाहे खून का हो या बस
मानी हुयी बहिन जाकर देखें दूज पर घर
और महसूस करें नवीन
होती रिश्तो की दुनियाँ । यह भी देखना समझना और महसूस
करना सुखद है कि ""जब सब दरवाजे बन्द
हो जाते हैं जाति धर्म और लिंग भेद के
नाम पर 'तब भी भारत में 'केवल रक्त
संबंधी ही नहीं दूसरे जाति मज़हब के लोग
भी भाई बहिन होकर निभा लेते हैं सुख
और दुख 'एक बिना शर्त
की स्थायी मैत्री मतलब --बहिन भाई।
©®सुधा राजे