Wednesday 24 April 2013

सौन्दर्य का मायाजाल बनाम् बल - बुद्धि ।

सुंदरता पर दिनरात
पुरूषों ने
इतना लिखा इतना बोला
इतनी मूर्तियाँ बनायीं कि
औरत
के सामने एक
प्रतिद्वंदी काल्पनिक औरत गढकर
खङी कर दी गयी
जो कि पुरुष की कल्पना थी
भारतीय नारी
औसत ठिगने कद की
मोटी जाँघें
पृथुल पेट वाली
और छोटी उंगलियों वाली
काली साँवली और अधिक हुआ
तो देशी गेंहूँ की रंगत वाली
अक्सर औरते
पूरी जिंदगी की जी तोङ केयर के
बाद भी बेजान रूखे दोमुँहे कमर से
ऊपर तक ही बाल बढा पाती हैं
नाक मोटी
होंठ भी मोटे और प्रायः दाँत
भी पीले और बेतरतीब
अमूमन
ये आम हिंदुस्तानी औरत है
नजर पसारो
चारो तरफ
गढवाल
और पहाङ पर पीली रंगत
पंजाब में गोरी लेकिन मोटी
दक्षिण और बंगाल मे
काला साँवला
मगर
गोरी हैं कलाईंयाँ
गोरी तेरा गाँव बङा प्यारा
गोरे मुखङा
के
लाखों करोङो गीत
और
रिजेक्टेड काली लङकियाँ
एक
मिथक
सौंदर्य को बॉलीवुड ने हसरत
बना दिया
जबकि
अधिकांश
अभिनेत्रियां काली सांवली और
गेंहुआ
रही
संक्रमित नस्ल से गोरे परिवार
आये मगर
करोङों में मात्र कुछ हजार
सीता द्रोपदी पार्वती साँवली
और
राजकुमारियों के पालन पोषण
की तुलना आम स्त्री से कैसे
की जा सकती है
नतीजा
एक नकली सौंदर्य बना
काजल लाली गाजा सुरमा
मिस्सी
और मेंहदी महावर आलता
जेवर कपङे पाउडर
क्रीम उबटन
आज
लगभग
पचास से ज्यादा उप साधन
एक शहरी स्त्री के टेबल पर
जरूरी हैं
गाँव में भी गोरेपन की क्रीम और
लिप्सटिक पाउडर अनिवार्य
हो चुकी है
एक रिपोर्टर तक बिना मेकअप के
स्क्रीन पर आना नही चाहती
ये
फल
है
उस मिथक का
सुंदर होना स्त्री होने की शर्त
बन गया
ये
भोगवाद
की
देन है कि सुदरता खोते ही स्त्री
आत्मविश्वास भी खो देती है
सङक छाप कङके को भी
कैटरीना
सी बीबी
चाहिये
जो उसकी चप्पल
तक
नही खरीद सकता
आप हमे नही जानते
वरना ऐसी बात सोचते भी नही
सुधाराजे के अलावा कोई
इतना जहर लिख भी नही सकता
और अभी ये अंगुल का पत्थर
भी नही कविता नही
बस भभकता सच है
और कविताये लगभग एक हजार हम
लिख चुके है
जो मंच पर टर्रायें वे
ही कवि नही होते
हमारी
नकल हम रोज पकङते है और
गरियाते ह
जिनका भगवान भी काला
देवी भी काली
उस देश में सबसे ज्यादा
गोरी गोरी बीबी की तमन्ना!!!!!!
गोरे रंग पर गीत!!!!
गोरे पन की क्रीम!!!
सौ उपाय करके फोटो में गोरी आये
बस्स
ये हालत!!!!!
हद है
मानसिक शोषण की
अफ्रीका में कोई नही मरता
ओह आप गलत
दिशा मेजा रही होबिना सुंदरता
भीलेडी डॉक्टरहो या टीचरलङका
आता हैऔर।हमेशा सादगी से
रहनेवाली बेटी को बापमाँ भी डप
कर कुछ ढंगका पहनो पोतो कह देते
हैमेरे पास कई केस ऐसे
आयेजिसमेपति अपनी बेहदमामूली श
देकरकमसिन सुंदर लङकी केचक्कर में
हुआतब क्या करेंगुण किसको दिखते
हैं???????!शादी बचानी है तो ॆघर
सेजादाचमङी चमकानीपङती हैइतने
परभी तो ये हाल
हैशादीशुदा लोग कितनेआलतू
फालतूभटकते हैब्यूटीजैसे प्यार
की गारंटी हैकोई किसीआम
लङकी के इश्ककी बाते करता है
क्याप्यार चाहिये???
तो सुंदररहो?????जागो ये
चमङी के ग्राहकमनमीत
नहीकुछनिजी उपलब्धियाँ भी बटो
की तारीफ नही
मलिन
मजदूर मजबूत
सावली का सौंदर्य
ही असली देश
किसी को हकली नही चाहिये
किसी को नाटी नही चाहिये
किसी को भेंगी नही चाहिये
जिसको देखो मॉडल चाहिये!!!!!!
और हो क्या रहा है
लङकियाँ लेबोरेटरी लायब्रेरी की
ब्यूटी पार्लर में फेसपैक पोते
पङी है
वैक्सिंग और स्किन पॉलिश पर
हजारो उङा रही है
लेकिन रोज बादाम दूध
नही खा पी सकती
इस पुरूष को जो चाहिये
वो तेरा प्यार है या
मांस ये सोचे
बिना गालो बालो होठो कू
तारीफ पर बेहोश
सारी तरक्की ठप्प
किचिन
बेड
और
शीशा बस??!!!!
जिस किसी साहित्य
को उठा लो नारी के विरह में
रोता नर प्रेमी दिख रहा है
लेकिन
जरा रुको सांवलियो कलूटियो मुट
और उदंत भारतीय बालाओं
क्षमा माफी मगर ये विरह गीत
तुम्हारे लिये नही हैं कोई चाँद
की याद में कोई
राधा की शीरी की महजबी की क
में किसी गुलाबी कँवल और गुलबदन
की याद में चुपचाप हट जाओ इन
मजनुओं के रास्तो से जाओ पढो कोई
आविषकार करो मजबूती से
पैसा कमाना और जमाने को ठोकर
लगाना सीख
सही कहा लेकिन अभी इंटरव्यू लेने
निकलूँ
तो किसी को मरदानी बीबी नही
और जहाँ रखती हो तुम पाँव पर
ख्बाव सजाये बैठे मिलेगे
जिसकी चूङी का नाप
जितना छोटा वो उतना पास
शादी में मार्केट में आके माँ बाप
भी चीखने लगते हैं और हिंद
की बेटी आज भी विवाह के आगे
बेबस है इब जो भी हो कोमल
कली ही सबकी पहली पसंद है
जो जागी है वो आफत और व्यंग्य
की शिकार है
©®सुधा राजे
7/1/13

Monday 22 April 2013

चलो सोचें।

जंगली जानवर नहीं हैं ये
शहर गाँव के पुरूष । ये रेप
भी नहीं है । एक मासूम
बच्ची को नोंचना खसोट
नारी अंगों में काट पीट
बाहरी सामान ठूँस
देना!!!!!!
ये किस तरह
की यौनक्रिया है?????
दरिंदा
हैवान
वहशी
पशु
ये सब नहीं करते ।
भेङिये भी नहीं करते ।
भूख लगने पर माँस खाने
वाले हैवान माँस पर निर्भर
है मारा औऱ खाया बस ।
इस तरह यातनायें
देना किसी जानवर
को नहीं आता ।
जानवर
अपनी ही जाति को प्रायः नहीं खाते।
क्या दुर्दान्त
बलात्कारी दामिनी क
का एयर फोर्स में
होना चाहिये??????
क्या एयर होस्टेस । लेडीज
स्टाफ उसकी मौज़ूदगी में
सहज सुरक्षित महसूस
करेंगी?????
क्या देश की आबरू
का लुटेरा देश
की बहिनों का रखवाला
देना चाहिये???
कानून
की बारीकियाँ
वकीलों का स्वर्ग
अपराधियों का अभयारण।
बलात्कार पुरूष नहीं करते ।
बच्चियों के साथ
जो होता है
वो बलात्कार
नहीं ही होता ।
उसके लिये नया ही शब्द
गढ़िये व्याकरणाचार्य
जी ।
क्योंकि वो पाँच से बारह
साल तक की लङकी और
लङके भी नहीँ जानते न
महसूस कर पाते हैं ना समझते
हैं ये क्या और
क्यों किया जा रहा उनके
साथ।
क्यों नोंचा भँभोङा खसो

इस यातना देने वाले
भयानक मनुष्य
देहधारी को क्या सुख
मिलता है!!!!
फाँसी
बधियाकरण
आजीवन कैद??????
कम हैं सब
ऐसे नारीभक्षी को
चौराहे पर बाँध कर ।
स्त्रियों के हाथों में
पत्थरों के तसले थमा देने
चाहिये ।
जब मरणासन्न हो जाये
पत्थर खाकर तब।
शहर के आवारा कुत्ते छोङ
कर चिथङे भँभोङने
को सौंप देना चाहिये ।
शराब करती है
बलात्कार??????
तो
माननीयो ।
प्रतीक रूप में शराब
की बोतल को फाँसी पर
लटका कर चौराहे पर टाँग
दीजिये ।
और वैधानिक चेतावनी पर

शराब स्वास्थ्य के लिये
हानिकारक है लिखने
की बजाय
लिखो ठोक कर शराब
पीना बलात्कारी बना

??????
अश्लील सी डी पर
लिखो
यही सब
और
फिल्मों का एक डिश प्लेट
चढ़ा दो फाँसी पर ।
पुरूष नहीं कर
सकता स्त्री पर
हमला ना ही नन्हें
लङकों पर ।
ये तो
नररूपधारी यौनबुभुक्षु
मानवभक्षी होते हैं ।
शराब
या
अश्लील सामग्री तो उस
इंन्फ्रारेड किरणों की तरह
है जो
इनके मानवदैहिक आवरण के
खोल में छिपा वीभत्स
नरपशु दिखाते जगाते हैं ।
शराब
बंद करो
अश्लील
सी डी डी वी डी ।
बहुअर्थी अश्लील
विज्ञापन बंद करो । भद्दे
नाच और गंदे
द्विअर्थी गीत बंद करो।
कामशक्ति बढ़ाने वाले
विज्ञापन दीवार लेख
पोस्टर ऐलान बंद करो ।
पुलिस?????
औरतों की रक्षा करेगी????
इससे बङा मजाक कुछ और
हो नही सकता भारतीय
परिप्रेक्ष्य में
बिना रिश्वत लिये
जो डौल मेंड़ तोङने तक
की रिपोर्ट
ना लिखती हो । जो एक
सम्मन चस्पां करने पर
भी पैसा माँगने से ना चूके ।
ज़मानत का परवाना आदेश
जेल ऑफिस तक ले जाने के
पेशे माँगे ।
जो घङी चोरी को आर्म्
एक्ट बना दे । जो रेप
की भरपूर कोशिश के
नाकामयाब होने
को छेङछाङ में और
छेङछाङ को रेप के प्रयास
में लिख दे । जो हर ट्रक पर
ओवर लोड होता देखकर
डंडा फटकारे
गाङी रूकी दस बीस
पचास का नोट टपका और
लोड सीमा में हो जाये ।
जो बिना हेलमेट के लिये
टोके और दस बीस रूपये में
हेलमेट
ही नहीं बिना ड्राईविंग
लायसेंस तक के
नाबालिगों को भी गाङ
लायक मान ले ।
जो शाम होते ही बोतल
अद्धी पाऊच में
ड्यूटी की थकान खोजने
लगे ।
जो
गणमान्य नागरिकों के
फंक्शन में दावतें उङाये और
त्यौहारों पर गिफ्ट वसूले

जो महिला पुलिस तक
का मजाक बनाये ।
जहाँ जाने से डर श्मशान
और कब्रिस्तान से
भी ज्यादा औरतों को लगे

जो बिना माँ बहिन
बेटियों की गाली के
बात तक न करती हो ।
माना सब नहीं
पर औसत चरित्र यही है ।
बेडोल शरीर
बङी तोंद
नशे में धुत्त शामें
घरवाली पर
ही पुलिसिया रौबदाब ।
और बिना पैसों के बात
तक ना करना ।
नयी रिपोर्ट मतलब
नया धंधा ।
बोनी नहीं हुयी आज
यानी पैसा नहीं मिला ।
सूखी बीट ।
यानि जहाँ कुछ
अतिरिक्त कमाई
का जुगाङ बेहद कम है ।
बढ़िया बीट।
मतलब रोज रूपिया ।
ये रक्षा कैसे करेगे???
तनख्वाह में गुजर
होती ही नही???
ऊपर से बिना सिफारिश
रिश्वत के भर्ती कब
होती है सबकी???
तो वो
जो पैसा लगाया??
कैसे सूखी तनख्वाह में चले???
बाकी खरचै पानी पेट्रोल
तो माँगना बनता है
ना आखिर पापी पेट
का सवाल है ।
जिन मलिन मजदूर निम्न
आर्थिक स्तर से अधिकांश
बलात्कारी आते हैं ।
उनके बीच रहन सहन जाकर
देखिये ।
शराब औरत और सेक्स
बस
तीन लक्ष्य है
तीन मंज़िलों को एक
साथ जीत
लेना ही सर्वोत्तम सुख है।
हमने चेयरपरसन का चुनाव
लङा और एक लाख
परिवारों में आँगन रसोई
घेर बाङे और
दुकानों फैक्टरियों तक में
गये ।
नारा था मेरा शराब बंद
जीना शुरू।
औरतों
पर लगातार दबाब
था पुरूषों का कि सुधा दी
सुनने ना जायें ।
चूँकि।
कुछ ही समय पहले हमने
शराबबंदी आंदोलन सफल
चलाया था ।
तो
हर ओर से शराब की बाढ़
ला दी गयी ।
तीन महीने हर वोटर शराब
की कई कई बोतलें घर में
पा रहा था ।
और
प्रत्याशियों के टैंट और
तहखानों पिछवाङों में
नाश्ते के नाम पर जमकर
शराब पी रहे थे लोग।
कोई मजदूरी पर
नहीं जा रहा था ।
औरतों के भरोसे चूल्हे जल रहे
थे ।
औरते पिट रही थी।
औरतों पर पाशविक यौन
अत्याचार हो रहे थे।
गली गली सिर फुटौवल
बस्ती बस्ती शराब
की भभक ।
हर वोटर धुत्त ।
किसी को होश नहीं ।
दिखावे
को छोटी मोटी पकङा ध
बाकायदै रजिस्टर मेनटेन थे

प्रत्याशियों पर जब
हमारी शिकायतों का दव
बना तो ।
परची सिस्टम चल पङा ।
मजदूर किसान जाते और
प्रत्याशी के चमचे
की दस्तखत संकेत
की परची लेते ठेके पर जाते
परची ठेके पर
जमा होती वहीं अंडा प्य
नमकीन मिलता पीते
खाते चले आते । हर वोटर हर
प्रत्याशी की परची पी र
डिक्कियों में बरामद
हुयी तस्करी की शऱाब।
वोटिंग के दिन पोलिंग
ऐजेंट हाथ पकङ कर वोट
डलवाते रहे कभी चुपके
कभी सामने ।
ड्यूटी सुरक्षा और
रिटर्निंग स्टाफ
मिठाईयाँ उङाते रहे ।
मजदूरों को शराबी कौन
बनाता है?????
जिन धनाढ्य वर्गों के
बलात्कारी पाये गये उनमें
से अधिकांश शराब
या ड्रग्स के आदी पाये गये

ये वे बिगङे नवाब
लोगों ही की बिगङी औ
थीं जो सोने का चम्मच
लेकर मुँह में पैदा हुयीँ ।
जिनके माता पिता के
पास अटूट पैसा तो रहा ।
लेकिन औलाद
की व्यक्तिगत जिंदगी में
झाँकने का वक्त
नहीं रहा ।
मौज
जश्न
और
नया रोमांचक
कारनामा ही जिनके
लिये जीने के मायने बनकर
रह गये ।
ये वे लोग थे ।
जिनके
माता पिता अपराध
बोध से ग्रस्त थे कि संतान
को समय नहीं दे पाते हैं
तो अंधाधुंध पैसा लुटाते
गये हर फरमाईश पूरी करते
गये ।
मंजिल??????
कोई नहीं
बस एनजॉय
नशा यहाँ ऊँचे से
ऊँची क्वालिटी का मौजू
रहने लगा ।
और जब बाजार के
सामानों से मन भर
गया तो ।
नौकरानी
स्टाफ कर्मचारी
सहपाठी
और राह चलती हाथ
लगी शिकार कार में
डालकर ले गये ।
कहीं भी।
फेंक दिया।
नशे का आदी इन
लोगों को किसने
बनाया??????
ये लङके सक्षम थे कोई
नया आकाश छू सकते थे
विश्व की कोई
उपलब्धि पा सकते थे ।
शराब ड्रग्स
यहाँ भी बहाना बन
ही गयी
रेप अक्सर नशे में???
घर में जिन पिताओं
मामाओं चाचाओं ने
अपनी ही बेटी का रेप कर
डाला ।
उनमें से
अधिकांश ने तुरंत ही कोई
अश्लील किताब
पढ़ी थी।
अश्लील
सी डी देखी थी।
शराब पीने के आदी थे ।
बीबी से मारपीट कलह
अनबन चलती रहती थी ।
और
या तो विधुर थे या लंबे
समय से पत्नी से पृथकाव
था।
बलात्कार एक बार नशे में
किया पापबोध
जाता रहा ।
बार बार किया
रिश्तों का बोध
जाता रहा।
नशा शराब
लक्ष्य विहीन जीवन
यहाँ भी बलात्कारी था।
ये
वे लोग थे जो कमाते थे
परिवार था संतानें थीं घर
था बीबी थी सामाजि
सम्मान था।
नशा कब शुरू किया?????
©® सुधा राजे

Friday 12 April 2013

सोच बदलो

समय आ चुका है कि अब
लङकियों के अभिभावक
सावधान हों।
1—बेटी बुढ़ापे
का सहारा बन सकती है ।
बेटे से भी ज्यादा ।
आप उसे पौष्टिक आहार
दीजिये । शारीरिक रूप से
कोमल और छुई मुई मत
बनाईये ।
उसको कसरत खेलकूद योग
और विशेष प्रशिक्षण से
योद्धा की तरह पालिये ।
कमजोर न बेटा काम का न
बेटी । ध्यान गर्भ से
ही दिया जाये
2—ससुराल जायेगी तो ये
होगा वो होगा ऐसे
सहना पङेगा वैसे
रहना पङेगा ये कौन
सहेगा वो कौन सहेगा । ये
ताने तत्काल बंद कीजिये ।
उसे ससुराल के अदृश्य
पिशाचों से डराकर उन्हें
खुश करने के लिये
पालना है????? तो पेट में
ही मार
डालना ज्यादा बेहतर
होता ।
आप को सोचना है आज
अभी इसी वक्त उसे
अत्याचार सहना और
पराये घर की पसंद
की कठपुतली नहीं बनाना

वह इंसान है जैसे बेटे
को कोई ताने
नहीं देता कि बहू कैसे
सहेगी ससुर सास कैसे सहेगे
बेटी को भी केवल
किसी अनदेखे की खुशामद
की दासी मत बनाईये ।
3-लङकी को विवाह करने
होने ससुराल जाकर
सबको खुश करने की ट्रैनिंग
मत दीजिये ।
उसे लङकों के समान
ही जल्द ब जल्द अपने
पैरों पर खङी होने और
अपने सारे काम खुद करने ।
समाज के बीच जाकर
सामान खरीदना बैंक
बिजलीघर गैसगोदाम
अस्पताल स्कूल
सब्जी मंडी सोना चाँदी
बरतन मशीने ।
जश्न और शोक सब अटैण्ड
करने दीजिये ।
हर जगह कल आप नही होगे

लोग अब स्त्री पर रहम
नहीं करते ।
मदद के बहाने गंदे लोग कई
बार नुकसान पहुँचाते हैं ।
उसे किसी अनदेखे
पति का मोहताज मत
बनाईये ।
पता नहीं वह कैसा निकले

साथ रहे या दगा दे दे ।
जिये या मर जाये
या तलाक दे दे । sorry.
4---ड्राईविंग
तैराकी
बिजली फिटिंग
घरेलू मशीने ठीक करना
अपने वाहन की सामान्य
मरम्मत करना । पुताई ।
निराई गुङाई । मीटर चैक
करना । और कम्प्यूटर
चलाना । हर हाल में
सिखायें ।
5-फायर बिग्रैड
अस्पतालों की सूची।
पुलिस थाना
पुलिस अधीक्षक
निकटतम चौकी
अदालत
दो तीन वकील
दो तीन पत्रकार
महिला संगठन
जरूर घुमायें नंबर याद
कराकर लिखवा दे । और
चाहे किसी दूसरे के मामले
में हो ।
ये तीर्थ जरूर दिखा दे ।
महिला आयोग
महिला बालविकास
मंत्रालय
मानवाधिकार आय़ोग
सूचना का अधिकार की
कुंडली बनवाकर समझायें
पता दें
6-कैमरा चाकू
मिर्ची पाउडर मोबाईल
और गन निशाना बाँध कर
चलाना ।
किसी भी सामान
को हथियार बनाकर कैसे
प्रयोग करें ये भी सिखाये
। खुद का शरीर एक घातक
हथियार कैसे हो सकता है
सिखायें ।
चीखना काटना नोंचना
हाथ चलाना सिखायें।
ऐसे कपङे ना पहनाये
जो दौङने कूदने छलाँग
लगाने किसी लुच्चे
को पीटने में परेशान करें
जूते मौजे पहनायें ।
हाईहील लंबी चोटी और
साङी तथा दूसरे बदन
दिखाऊ वस्त्रों से परहेज
करें।
हर मुद्दे पर बात करें
ताकि वह भरोसा करे आप
पर।
7-विवाह 23साल से पहले
नहीं करना है ।
क्योंकि हिसाब लगाईये
ग्रेजुएशन +++जॉब तब
शादी।
8--
शादी अपनी नहीं बेटी क
से करें । आप बूढ़े होकर मर
जायेंगे उस वर
को लङकी को निभाना
हर स्त्री पुरूष में कुदरत एक
यंत्र फिट रखती है
संवेदनशील मन मस्तिष्क इस
तरंग को महसूस करते हैं
जो प्रेम का सूत्र है । अगर ये
तरंग नहीं तो लाख
कुंडली मिला लो दहेज
दो पूजा पाठ करो जिस
सुख को विवाह कहते है
असंभव है । पाँच बच्चों के
बाद
भी दोनों तन्हा हो सकते
है ।
9-भूलकर
भी सङी गली मर्दवादी ध
संस्कार ना दें ।
--10--अविश्वास
करना सिखायें। औऱ बताये
सच कङवा लेकिन डरायें
नही उसे आपके
बिना इसी दुनियाँ से
जूझना है।
11_कानून की वे सब
जानकारियाँ दें
जो स्त्री के लिये रक्षक
और निराकरणकारी है
12-अनचाहे गर्भ से कैसे
बचा जाये जरूर बतायें।
औऱ विवाह
की पहली एनीवर्सरी तक
प्रैगनेंट ना होने की सलाह
दें । तब तक वह जीवन के नये
बदलाव को आत्मसात कर
चुकी होगी
विवाह के लिये जॉब
कभी न छोङे ।
नही पता कल
साथी धोखा दे दे
या समय
अतिरिक्त धनकमाऊ हुनर
जरूर सिखाये।
sudha Raje
©®
सुधा राजे

Wednesday 10 April 2013

हाँ हम डंके की चोट पर भारत को असभ्य कहते है।

हाँ हम डंके की चोट पर भारत
को असभ्य कहते हैं हम
आधा भारत
जिसको न घर न अपने आप
की इच्छा से जीने का हक न
सुरक्षा कैसा देश!!!!!!
पराया धन कह कर पाला पराये
घर आकर कहा जाता है
क्या तेरे बाप का घर है???
वंश तुझसे नहीँ चलेगा । और
जिस घर का वंश चलाती है
वहाँ सुनती है
क्या तेरे खानदान में
ऐसा ही होता है
दो साल से सत्तर तक
की स्त्री को किसी भी आयु
का पुरूष माँस की तरह भँभोङता है
और जब सजा की बात आती है
तो लेखक वकील पत्रकार spur
of moment crime कह देते हैं
नाबालिग रेप हत्या कर सकता है
सजा नहीँ होगी
तेजाब फेक देते है लङकी अगर
पटी नहीँ तो रेप
नहीँ रेप का मौका लगा तो तेजाब
औरत का हर जगह गालियों में
साले
ससुरे
हरामजादे
से
होकर शुरू हर तरह जलील प्रयोग
हँसी मजाक
पतिव्रता पत्नी सीता भाभी चाहिये
लेकिन
राम की तरह जरा सा सामाजिक
अपवाद सहने की क्षमता नहीँ
औरतों का कोई मुल्क नहीँ है
वे पिता के घर पति के घर पुत्र के
घर रहती हैं
अकेले रहने वाली औरत को नोचने
वाले हर तरफ बचाने वाले
कंकणों में बिखरी मुट्ठी भर दाल
Mar
25 · · Mar 26
Sudha Raje
हमें हमारी तरह जीने दें
रेप छेङछाङ गाली तेजाब फिकरे
अपहरण बदनामी दहेज भ्रूण
हत्या घरेलू हिंसा
पढ़ने न देना
जबरन पढ़ाई
नौकरी हॉबी छुङवा देना
स्त्री सूचक गालियाँ
बंद करो
औरतें अपने आप में सुखी है और
प्रसन्न।
जिसे देखो औरत पर भाषण
बाजी!!!
मर्दवादी!!
मर्द के जाये हो तो मर्दों पर
लिखते बोलते घिघ्घी क्यों बंद
हो जाती है???
नौकरी सरकारी चाहिये
लेकिन
सरकारी अस्पताल ।
सरकारी स्कूल । सरकारी राशन
नहीं???
क्यों??
क्योंकि हर
चौथा सरकारी कारिंदा काम
नहीं करता बिकाऊ है औऱ ऱिश्वत
माँगता है ।
पाँच सौ रुपये
वाली लङकी पढ़ाती है पब्लिक
स्कूल में जमकर । लेकिन तीस
हजार पाने वाले सरकारी मास्टर
के पढ़ाये बच्चे हिंदी में रसोई के
सामान की सूची औऱ
इमला नहीं लिख पाते
आठवी तक??
हमें दीजिये दस महीने हम पढ़ाकर
बताये कि शिक्षक खा रहे हैं नीव

लोग कहीँ भी मूतने खङे हो जाते
है।
कहीं भी थूक देते है ।
किसी को भी माँ बहिन
बेटी की गाली देते है
नेता संसद विधान सभा में
गुंडों की तरह चीखते हैँ।
बीबियों पर मारपीट को जायज
माना जाता है।
बेटी कत्ल करना स्वीकृत है ।
योग्य लङकी दहेज के लिये
नालायक मार डालते है
तेजाब फेंकना मरदानगी है।
औऱ रेप होने पर
लङकी को पापी मानकर कोई
अपनाता नही। औऱत के बिस्तर
पर चढ़ने को सब तैयार मगर
विधवा तलाकशुदा रेप विक्टिम
और बिना दहेज की शादी को कोई
तैयार नहीं ।
चुराकर प्रेमी मिलते है। शादी कर
लें तो नाक कटती है।
लङकी का पैदा होना दुख देता है
सभ्यता अर्थ है शांति विश्वास सुरक्षा सम्मान और सृजन को अवसर व शोषण से मुक्ति ।
©®Sudha Raje

Monday 8 April 2013

प्रौढ़ प्रेम :विवाह औरपरिवार सेविश्वासघात।

शादी के बीस साल
बाद???
किसी स्त्री का पर पुरूष से
प्यार के नाम पर
पति को धोखा देना ।
ठीक वैसा ही है जैसे चार
बच्चों की माँ होने पर रूप
रंग यौवन
खो चुकी स्त्री जो दिन
रात
खटती रही हो परिवार के
लिये बाल बिखेरे ।
उसे छोङकर किसी पर
स्त्री पर डोरे डाल
उसका हो जाये
कि बीबी को मेरी परवाह
नहीँ
प्रौढ़ आयु में बच्चे प्रधान
हो जाते हैं और
यही सार्थकता भी है
कुदरत का नियम भी पचास
तक आते मेनोपोज का अर्थ
है कुदरत अब
नहीं चाहती कि भोगवाद
हावी रहे ।
विवाह किया है
को निभाओ भी ।
बीस साल पहले
छोङा होता तो वह
किसी को अपना सकता था ।
रहा सवाल प्यार???!?
तो बच्चो?!!??!
जवानी में जब इश्क़ ने
पुकारा तो काहे
नाहीँ चला गया???
अरेंज मैरिज में प्यार
होता नहीँ करना पङता है
जरा सा प्यार खूब सारे
फर्ज़ और ढेर सारी परस्पर
निर्भरता से मिलकर
बनता है परिवार।
बुढौती में मन भटके
तो पराया मर्द
परायी नार नहीँ मन
को झाँकिये।
दिल के ऊपर दिमाग है।
और ये समाज आपके बाप
का नौकर नही जो आप
कुछ भी करें फिर भी नाम
सलाम चाहें ।
धोखा या अलगाव
का सही वक्त तो मार
खा के गुजार दिया । अब
जब पशुपन बंद
हो गया तो बजाय समाज
को सुधारने सृजन करने के ।
फुरसत का धोखा करने
चले???? ।
और वह दूसरा मर खप
रहा है??
दया ममता का पात्र है वह
तो । कि हाँ मैँ हूँ तुम्हारे
साथ
बुढ़ौती में पराये स प्रेम और
क्या
जिस्म को ही मकसद
मानने के मिजाज
की कथा है ।
एक व्यक्ति सिर्फ जिस्म
नहीँ होता । बहुत
अराजकता फैल
जायेगी अगर निरीह
पति पर पैसा मकान बच्चे
दवा आराम मनोरंजन
का बोझा छोङकर औरतें
सिर्फ
शरीर
की उपेक्षा का दुखङा चालीस
के बाद रोने लगी तो ।
पचास पर मेनोपोज
वासना को भी पोज करने
का संकेत है ।
अपने अनुभव से कोई
भी स्त्री समाज
का सुधार सृजन
छूटी तूली कलम और फीके
पङे रिश्तो में जान डाल
सकती है ।
माफ करे । फेस बुक के पहले
भी फटाफट
बुङौतिया इश्क़ होते रहे है

लेकिन ये एक
बङा विचित्र मोङ है ।
वीरान सुनसान स्थान पर
भोग ही नहीं । विचार
साधना सृजन और
सेवा भी की जाती है ।
अक्सर वे
बीबीयाँ ही दुखी होने
का दोष पति पर मढ़ती है
जो केवल पति के लिये रूज
लिपिस्टिक
मलती रहीं हो ।
पति का पौरूष और मन
भी ढाल पर प्रभावित
होता है । कैसे कोई बीस
साल साथ रहकर अपने
साथी की कुरबानियाँ बस
एक मुट्ठी वासना जी लेने
को भुला सकता है?!!!!!!!
अपवाद है हो रहे है
कहानी अपनी जगह है ।
अब भी साठ
का बूढ़ा बीस
की छोरी को इनबॉक्य
अश्लील चैट
करना चाहता है । परंतु
इसका समर्थन संस्कृति और
कला के नाम पर
नहीँ किया जा सकता ।
हम सब एक आयु पर
वैरागी हो जाते है । प्रेम
देह से हटकर मन की प्यास
बन जाता है । विचार
समान रखने वाले पर प्यार
आता है दोस्ती पर संदेह
नहीँ रहता । लेकिन इस
का अर्थ भोग नहीँ । मन
बाँटना है अनुभव विश्लेषण
बाँटना है । और यही इस
पकी आयु की सार्थकता है
। जीवन को मकसद देना ।
अब बिस्तर नहीँ समाज
की गलियाँ सजाओ ।
सचमुच ।ऐरे मन तोरे हाथ
पाँव
बाँधि बोरतो नियंत्रण
वाहन
पशुव्यवहार पर ही नहीँ मन
पर भी जरूरी है ।
एक
षोङसी खिलती तरूणाई
प्रसंशा की शै
है उकसा बहका छीन
भगा ले जाने की नहीं ।मन
की तनहाई को मनोरंजन
नहीँ दो डूबने दो ।और
ये
डूबना लायेगा कशीदाकारी बुनाई
कविता शिल्प बच्चों पर
पूरा प्यार अच्छे
कौटुम्बिक सामाजिक
रिश्ते परिपक्व स्नेह
बेबाक़ विचार
निष्कर्ष
लगाम छोङ मत
देना ये मन कभी पालतू
नहीँ और जहाँ मन पसंद
चीजें देखी ललकता है ।
जिन चीजों को तरसाये
गये वही माँगता है ।लेकिन
दिमाग हमेशा दिलसे ऊपर
है ।और मोक्ष कुछ
नहीँ सिर्फ स्व
का विसर्जन है ।
एक सरल सा बंधन है । जवान
मिले घर बनाया । प्रेम
किया बच्चे किये। बच्चे पल
गये । अब??????
वह सब करो जो हॉबी के
नाम पर छूट गया ।
पति बेचारा कहाँ जिम्मेदार
है???
वह भी तो खटता है दिन
रात!!!!!
अब एक लेखक
को सीधी घरेलू
बीबी मिलती है तो । वह
कविता में रस लाने के लिये
पर स्त्री को माध्यम
बनाने लगे तो????
यह गलत है विवाह के भरोसे
का कत्ल है ।
वैसे ही जटिल
चेतना वाली स्त्री का सरल
सीधा सामाजिक
पति दोषी नहीँ ।
ये रोक न पाये वह तो पशु
ही रहा
भारत जैसे देशों में
जहाँ विवाह वर खोज कर
जात बिरादरी गोत्र
कुंडली मिलाकर और कुटुंब
से बाहर किये जाते हैं तब
नितांत
अजनबी ही मिलते हैं
प्रायः । और ये
अजनबी लङकी के बाप
की औकात न
कि लङकी की मनःस्थिति को देखकर
प्रायः खरीदे जाते है ।
प्रारंभिक वर्षों में जहाँ ये
विपरीत माहौल
परेशानियाँ अनबन देता है
। वहीं एक दैहिक
रिश्ता बाँधता भी है।
विरले विवाह दैहिक बंधन
के बिना भी निभाये
जाते है । और एक
साथी दूसरे
की शारीरिक
तकलीफों के चलते अपने
जिस्म को भुला देता है ।
संताने भी हो लेती हैं और
भीष्म
या सुकन्या का सा जीवन
भी जी लिया जाता है
आज विज्ञान है कुंती के
आगे मंत्र थे । लेकिन परस्पर
विश्वास और निष्ठा में
कमी नहीँ आती ।
समस्यायें हैं तो । संसार के
सामान रिवाज़ और
बच्चों के हित । धोखे
की गुंजाईश कहाँ???
निष्कर्ष
यही कि कुरबानी और
जिम्मेदारी के बीच
ही कहीँ साथी की तरफ
खङे होकर
देखना भी जरूरी है । चाहे
पति हो या पत्नी ढलती उमर
में दुनिय़ादारी और परस्पर
रिश्तों की खींचतान के
बीच बढ़ी हुयी दैहिक
तकलीफें
कमजोरिया बेडौल और
अनाकर्षक
हो जाना मोटापा गंजापन
सफेद बाल झुर्रियाँ ये
पङाब है । उत्सव की तरह
हर दिन निरपेक्ष होकर
जीना और साथी के
प्रति संवेदनशीलता ये
ईमानदार रहना ही इंसान
होना है । जो पंद्रह बीस
साल साथ रहकर
भी धोखेबाज रहे चाहे
पति हो या पत्नी वह स्वयं
को तो छलता ही बने
बनाये संसार को भी अपने
हाथों मिटाकर
पछताता है ।
©®¶©®
सुधा राजे

Sunday 7 April 2013

आज तक

आखिरी इक बात जो मैं कह न
पायी आज़ तक ।
थी मुहब्बत सीने में चुपके
निभायी आज तक ।
दर्द ही ज़ीने का मेरे
था सहारा जी लिया ।
गीत वो छलके दो आँसू पी न
पायी आज तक।
रास्ते मंजिल औ साहिल सब अलग
होते गये ।
इसलिये दुनियाँ से भी नज़रें
चुरायीं आज तक।
आँसुओं का एक
ही दरिया रहा सैलाब पर ।
था किनारा सामने
कश्ती डुबाय़ी आज तक।
तू मेरा होता न होता मैं
किसी की भी नहीं।
इसलिये आगे तेरे पलकें
झुकायीं आजतक।
उम्र का हर दौर ग़म
पीती गयी जीती गयी ।
मार खा रोयी नहीं औऱ् चोट
खायी आज़ तक
थामकर उँगली किसी की चलने से से
क़तरा गयी
हर कदम वो हाथ आँखें याद आयी
आज तक
दर्द का हर गीत
अपना सा लगा पाले रही
जब तेरी चिट्ठी जलाई बुझ न
पायी
आज तक ।
एक बस तेरे ज़िकर से ओढ़
लीं ख़ामोशियाँ
जब किसी ने हाल पूछा मुस्क़ुरायी
आज तक ।
दर्द की दीवार के इस पार मैं उस
पार तुम
इस तरफ लिख्खी दुआ थी बे वफ़ाई
उस तरफ़।
उम्र की नादानियाँ कह कर
झिङक दी हर खुशी
दौरे सहरा में वो हिलकी रूक न
पायी आज तक
ये हुआ अच्छा कि हो गये
अज़नबी अपने "सुधा "।
अब मैं खुद को खोजती हूँ मिल न
पायी आज तक
©®¶
Sudha Raje
Dta★bjnr

Saturday 6 April 2013

सरस्वती वंदना

जय श्वेताम्बर
धारिणिमातर्शुभदे मधुस्वरदे ।
मातर्रमनसस्वर वरदे।
जय वीणा पाणी जय जय
वीणा पाणी
वागीशामम्भावंशुभ्रम्
शब्दांकित कर दे ।
मातर्मनसस्वर वरदे
भवपीङितहृदयाणाम् तवशरणमगहितां मातस्तवशरणंगहिता ।दत्वा मेधाशांतिम्
प्राप्तः आत्मसुखम्।
मातस्प्रापतः आत्म सुखम्
जय वीणा पाणी जय जय
वीणा पाणि ।
©®Sudha Raje